Sunday, January 20, 2008

रहीम के दोहे:अक्षर हैं कम पर अर्थ है गहरा

दीरघ दोहा अरथ के, आखर थोरे आहिं
ज्यों रहीम नट कुंडली, सिमिट कूदि चढिं

कविवर रहीम कहते हैं की जैसे खेल दिखाते हुए नत कूद-कूदकर अपने आपको सावधानी से संभालता हुआ शीघ्रता से ऊपर की नोंक पर कूद-कूदकर अपने आपको सावधानी से संभालता हुआ शीघ्रता से ऊपर बांस की नोंक पर कुंडली मारकर चढ़ जाता है, उसी प्रकार रहीम के दोहों में शब्द तो कम हैं परन्तु अर्थ बहुत गहरा है.

Saturday, January 19, 2008

संत कबीर वाणी:माया के होते हैं नौ-नौ लंबे हाथ सींग

देखा देखी भक्ति का, कबहूँ न चढ़सी रंग
<विपत्ति पडे यों छाड्सी, केचुली तजत भुजंग

देखा-देखी की हुई भक्ति का रंग कभी भी आदमी पर नहीं चढ़ता और कभी उसके मन में स्थायी भाव नहीं बन पाता। जैसे ही कोई संकट या बाधा उत्पन्न होती है आदमी अपनी उस दिखावटी भक्ति को छोड़ देता है। वैसे ही जैसे समय आने पर सांप अपने शरीर से केंचुली का त्याग कर देता है।


कोटि करम लगे रहै, एक क्रोध की लार
किया कराया सब गया, जब आया हँकार


रेशम के कीडे द्वारा जैसे अत्यंत लंबा रेशम का धागा बँटा जाता है, उसी प्रकार एक क्रोध ही करोडों पाप कर्मों को उत्पन्न करता है। जब मनुष्य को अंहकार आ जाता है तो उसके पुण्य, तप, ज्ञान, गुण आदि सभी नष्ट हो जाते हैं।

माया माथै सींगड़ा, लम्बे नौ-नौ हाथ
आगे भारे सींगड़ा, पाछै मारै लात


माया के माथे पर मद और अंहकार रुपी, लोभ और अज्ञान रूपी सींग होते हैं जो नौ-नौ हाथ लम्बे होते हैं। आते समय वह सींग मारती और जाते समय लात मारती है।

Tuesday, January 15, 2008

संत कबीर वाणी: जो शूरवीर प्रेम में घायल होते हैं

घायल की गति और है, औरन की गति और
प्रेम बाण हिरदै लगा, रहा कबीर ठौर


संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं जो शूरवीर प्रेम में घायल होते हैं उनके तन-मन की गति अन्य लोगों से अलग होती है। हृदय में प्रेम-बाण लग जाने पर प्रेमी अपने स्थान पर ठहर जाता है।
भावार्थ- यहाँ आशय यह है कि जिसको भगवान से प्रेम होता है उसकी दशा सामान्य लोगों से अलग हो जाती है वह तो केवल भगवान की भक्ति में लीन हो जाते हैं। उन्हें तो बस सत्संग और स्मरण में ही मजा आता है।

चित चेतन ताज़ी करै, लौ की करै लगाम
शब्द गुरु का ताजना, पहुचाई संत सुठाम


अपनी चित्त वृत्ति को घोड़ी बनाएं, उस पर ध्यान लगाएं और सदगुरू के शब्द-ज्ञान का कोडा लें। इस प्रकार कुशल संत और साधक भगवान की भक्ति कर अपना लक्ष्य प्राप्त कर लेते हैं।

भावार्थ-आदमी अगर अपने चित्त पर नियंत्रण करना सीख ले तो उसके लिए कोई काम कठिन नहीं है बस इसके लिए भगवान में मन लगा चाहिए। उनका नाम स्मरण अपने आप में बहुत बड़ी शक्ति है और उससे भक्त में बहुत बड़ी शक्ति आती है।

Sunday, January 13, 2008

संत कबीर वाणी:गुरु के बिना भवसागर से मुक्ति नहीं

साबुन बिचारा क्या के, गांठे राखे मोय
जल सो अरसां नहिं, क्यों कर ऊजल होय


संत कबीर दास कहते हैं कि साबुन क्या करे बेचारा, जब उसको गाँठ अपने हाथ में बाँध रखा है. जल के स्पर्श करता ही नहीं फिर कपडा कैसे उज्जवल हो सकता है.
भाव-ज्ञान की बात तो कंठस्थ कर लेते हैं पर जब समय आता है तो सब भूल जाता है इसमें ज्ञान का कोई दोष नहीं हैं.

भौ सागर की त्रास तेक गुरु की पकडो बाँहि
गुरु बिन कौन उबारसी, भी जल धारा माहिं

संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि इस संसार सागर के दुखों से बचने के लिए गुरु का हाथ पकडो. गुरु के बिना इस भाव सागर से मुक्ति नहीं हो सकती.

Saturday, January 12, 2008

सब करो चिट्ठे की चर्चा, उसमें नहीं बुद्धि का खर्चा

अपरिहार्य कारणों से यह पोस्ट वापस ली गयी है, इसे कुछ समय बाद जारी करने पर विचार किया जा सकता है
दीपक भारतदीप

Friday, January 11, 2008

दीपक भारतदीप का मूल्यांकन करने वाले अपनी काबलियत बताएं

दिलचस्प बात यह है कल से मैंने जो पोस्ट डालीं हैं उनमें जो विवाद हैं उसे लोग पढ़ खूब रहे हैं पर कमेन्ट कोई नहीं दे रहा है. मतलब लोग रट्टा कौन मोल ले यही सोचकर चुप हैं-चौपालों पर डर का माहौल बनाकर रखा है.. अगर मेरी जगह कोई और होता तो उसकी तो हालात पतली कर देते पर मुझे देखकर उनकी आवाज बंद है, वैसे भी डरना क्या? कौन वह इसे पढ़ रहे हैं, पढ़ते होते तो मेरा सबसे हल्का ब्लॉग ले जाते. मालुम है कि इसके ब्लॉग सब भारी-भरकम हैं नहीं झेल पायेंगे. ले जाना भी जरूरी है आख़िर भारत का सबसे तेज ब्लोगर है पुरस्कार में वजन कहाँ से आयेगा?

मेरे इस सवाल का जवाब कोई नहीं दे रहा कि चाहे वह मेरा हल्का ब्लॉग था पर तुम्हें पता है उसमें गणेश जी पर एक पोस्ट है और उसे तुमने पढा? तुम्हें मेरा कोई ब्लॉग शामिल करना ही नहीं था. उसमें धर्म-कर्म से संबधित बहुत सामग्री है. तुम में अपने लिखने के अहंकार के साथ इसमें तमाम तरह के ग़लत फायदे उठाने का भाव है और दिखते किसी भी धर्म के हो पर उसका कोई सम्मान नहीं है. नहीं तो बताते तो क्यों नहीं कि तुम्हारी काबलियत क्या है कि तुम दीपक भारतदीप का मूल्यांकन करोगे? अब तुम मुश्किल में हो. चुपचाप एक पोस्ट डालकर माफ़ी मांग लो नहीं तो झेलते रहो. रोज तो तुम पर लिखूंगा नहीं पर चाहे जब आयेगा तुम पर लिख कर नए ब्लोगरों का मनोबल बढ़ाने का प्रयास करूंगा जिसे तुमने गिराने की कोशिश की हैं और मैं यह होने नहीं दूँगा. तुम यह तो बताओं कि क्या लिखते हों जो मेरे लिखे का मूल्यांकन करोगे. चाहे जिसे और जैसे पुरस्कार दो पर मेरा नाम क्यों जोडा. मुझसे पूछा. क्या तुमने ब्लॉग बना लिया तो क्या समझ लिया कि सब ब्लॉग तुम्हारी जागीर हो गए और उनका मूल्यांकन करोगे और पोस्ट पर छापोगे. मैं जानता हू कि ऐसे पुरस्कार कैसे दिए जाते हैं. इतने सारे पुरस्कार के लिए आवेदन मांगे जाते हैं पर मैं कभी नहीं करता, और तुम मेरा ब्लॉग मुझसे लिए बगैर उसका मूल्यांकन करने लगे. यार अपनी काबलियत बताओ कि आख़िर भारत के सबसे तेज ब्लोगर का मूल्यांकन कैसे किया ?

Thursday, January 10, 2008

संत कबीर वाणी:जहाँ कपट हो वहाँ न जाएं

जीव हनेँ हिंसा करेँ, प्रगट पाप सिर होय
पाप सबन जो देखिया, पुन्न न देखा कोय


संत शिरोमणि कबीरदास जे कहते हैं कि जो जीव को मारता है उसके पाप का भार प्रत्यक्ष रुप से उसके सिर पर दिखाई देता है पर उनके जो पुण्य कर्म हैं वह किसी को दिखाई नहीं देते क्योंकि हिंसा करने वाले पापी होते हैं और उन्हें किसी भी तरह पुण्यात्मा नहीं माना जा सकता।

कबीर तहां न जाइए, जहाँ कपट का हेत
जानो काले अनार के, तन राता मन सेत


इसका आशय यह है कि वहां कदापि न जाइए जहाँ कपट का प्रेम हो। उस प्रेम को ऐसे ही समझो जैसे अनार की कली, जो ऊपरी भाग से लाल परंतु भीतर से सफ़ेद होती है। वैसे हे कपटी लोग मुहँ पर प्रेम दिखाते हैं पारु उनके भीतर कपट की सफेदी पुती रहती है ।

कबीर तहां न जाइए, जहाँ कपट को हेत
नौ मन बीज जू बोय के, खालि रहिगा खेत


इसका आशय यह है कि वहाँ कतई न जाएँ जहां कपट भरे प्रेम मिलने की संभावना हो। जैसे ऊसर वाले खेत में नौ मन बीज बोने पर भी खेत खाली रह जाता है, वैसे ही कपटी से कितना भी प्रेम कीजिये परन्तु उसका हृदय प्रेम-शून्य ही रहता है।

Wednesday, January 9, 2008

जब सस्ती कार सड़क पर आयेगी

सुना है अब सस्ती कर सड़क पर आयेगी
जब महंगी ही थी तब भी
कोई कम कहर बरपातीं थीं
जो सस्तीं में रहम दिखाएंगी
मोटर साइकिल के झुंड ही
रास्ते पर पैदल चलना मुश्किल कर देते
कारों के हार्न ही कान बहरा कर देते
सस्ते होने से कारों के संख्या जो बढेगी
सांस लेना होता जायेगा मुश्किल
महंगाई के इस युग में
जिन्दगी हो गयी है सस्ती आदमी
सस्ती कारो से मुफ्त की हो जायेगी
पहिये तो कार में चार ही होंगे
पर कोई सड़क तो चौड़ी नही हो पायेगी
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रहीम के दोहे:स्त्री को दीपक की तरह आवरण में रखो

जो रहीम दीपक दसा, तीय राखत पट ओट
समय परे ते होत है, वही पट की चोट

कविवर रहीम कहते हैं कि अपनी स्त्री को दीपक की तरह आवरण में रखो। जैसे हवा लगने से दीपक बुझ जाता है उसी प्रकार पुरुष द्वारा किये गए बुरे व्यवहार से स्त्री का मन आहत हो जाता है।

जो रहीम पगतर परो, रगरि नाक अरु सीस
निठुर आगे रोयबो, अंस गारिबो खीस


कविवर रहीम कहते हैं कि मैं उसके चरणों में गिर पडा। अपना मस्तक और नाक भी रगड़ दी परन्तु निष्ठुर व्यक्ति के समक्ष रोने से अश्रुधारा प्रवाहित करना भी व्यर्थ हो गया।

भावार्थ-अगर किसी व्यक्ति का यह पता लग जाये कि वह निष्ठुर स्वभाव का है तो उसके पास जाकर किसी भी प्रकार की याचना और प्रार्थना करना व्यर्थ है।

Tuesday, January 8, 2008

चाणक्य नीति:भोजन के तत्काल बाद मेजबान का घर छोड़ दें

१.मन का संयम अर्थात शांति और स्थिर भाव के समान कोई दूसरा तप नहीं है, संतोष जैसा कोई सुख नहीं, तृष्णा जैसा दु:ख देने वाला और भयंकर रोग नहीं तथा दया जैसा स्वच्छ और अच्छा दूसरा कोई धर्म नहीं । अत: सुख के इच्छुक व्यक्ति को तृष्णा से बचना चाहिए तथा सफलतम जीवन में शांति,संतोष और दया को अपनाना चाहिए। इसी में महानता है।
२.जिस प्रकार सोने की चार विधियों-घिसना, काटना, तपाना तथा पीटने-से जांच की जाती है, उसी प्रकार मनुष्य की श्रेष्ठता की जांच भी चार विधियों-त्यागवृति, शील, गुण तथा सतकर्मो -से की जाती है।
३.संसार के दुखों से दुखित पुरुष को तीन ही स्थान पर थोडा विश्राम मिलता है- वह हैं संतान, स्त्री और साधूराजा की आज्ञा, पंडितों का बोलना और कन्यादान एक ही बार होता है।एक व्यक्ति का तपस्या करना, दो का एक साथ मिलकर पढ़ना, तीन का गाना, चार का मिलकर राह काटना, पांच का खेती करना और बहुतों का मिलकर युद्ध करनापक्षियों में कोआ, पशुओं में कुत्ता और मुनियों में पापी चांडाल होता है पर निंदा करने वाला सबसे बड़ा चांडाल होता है।

4.जिस प्रकार कोई गायिका निर्धन प्रेमी को नहीं पूछती, पराजित राजा को जनता मान नहीं देती, उसी प्रकार से सूखे और टूटे वृक्ष को पक्षी छोड़ जाया करते हैं। अत: अतिथि को चाहिए कि वह भोजन के तुरन्त बाद मेजबान का घर छोड़ दे।
5.यजमान के घर सर पुरोहित दक्षिणा लेकर और विद्या अर्जन के बाद विद्यार्थी गुरू के द्वार से चला जाता है उसी प्रकार से वन के जल जाने पर पहु-पक्षी वन का त्याग कर अन्यत्र पलायन कर जाते हैं।
लेखकीय अभिमत-चाणक्य एक महान विद्धान थे और इन अन्तिम दोनों संदेशों में उनका यही आशय है कि आदमी को और परिस्थियों को ध्यान में रखते हुए अपनी शारीरिक सुरक्षा और मान-सम्मान के लिए सतर्कता बरतना चाहिए।

Monday, January 7, 2008

चाणक्य नीति:कार्य में स्थिरता बिना सम्मान नहीं मिलता

१.जिसके कार्य में स्थिरता नहीं है, वह समाज में सुख नहीं पाता न ही उसे जंगल में सुख मिलता है. समाज के बीच वह परेशान रहता है और किसी का साथ पाने के लिए तरस जाता है.
२.गंदे पड़ोस में रहना, नीच कुल की सेवा, खराब भोजन करना, और मूर्ख पुत्र बिना आग के ही जला देते हैं.
३.कांसे का बर्तन राख से, तांबे का बर्तन इमले से,स्त्री रजस्वला कृत्य से और नदी पानी की तेज धारा से पवित्र होती है.
४.मनुष्य में अंधापन कई प्रकार का होता है. एक तो जन्म के अंधे होते हैं और आंखों से बिलकुल नहीं देख पाते और कुछ आँख के रहते हुए भी हो जाते हैं जिनकी अक्ल को कुछ सूझता नहीं है.
५.काम वासना के अंधे के कुछ नहीं सूझता और मदौन्मत को भी कुछ नहीं सूझता. लोभी भी अपने दोष के कारण वस्तु में दोष नहीं देख पाता. कामांध और मदांध इसी श्रेणी में आते हैं.
६.कुछ लोगों की प्रवृतियों को ध्यान में रखते हुए उनको वश में किया जा सकता है, और उनको वश में किया जा सकता है, लोभी को धन से, अहंकारी को हाथ जोड़कर, मूर्ख को मनमानी करने देने से और सत्य बोलकर विद्वान को खुश किया जा सकता है.

Sunday, January 6, 2008

संत कबीर वाणी:सिर दक्षिणा में दे सके वही प्रेम योग्य

प्रेम पियाला सो पियो, शीश दच्छिना देय
लोभी शीश न दे सकै, नाम प्रेम का लेय

संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि प्रेम का प्याला वही प्रेमी पी सकता है जो अपना सिर दक्षिणा दे सकता है और जो भगवान का नाम केवल दिखाने के लिए लेता है वह लोभी कभी भी प्रेम नहीं कर सकता।

भावार्थ-यहाँ कबीरदास जी का अपना सिर दक्षिणा में दिने से आशय निष्काम भक्ति से है। हमारे दिमाग में भक्ति के समय भी अनेक बाते भरी होतीं है और अगर उन चिंताओं का बोझ सिर से उतार कर भक्ति में लीन हुआ जाये तभी सच्ची भक्ति प्राप्त हो सकती है।

कथन थोथी जगत में, करनी उत्तम सार
कह कबीर करनी भली, उतरै भौजल पार
संत शिरोमणि कबीर दास जी कहते हैं कि अपने मुहँ से बातें करना बहुत आसन होता है परन्तु करना मुश्किल है। वास्तविकता यह है कि जब कोई अच्छा काम करेंगे, तभी इस जीवन रुपी भवसागर से पार हो सकेंगे।

Friday, January 4, 2008

संत कबीर वाणी:मान पाने की लालसा कुत्ते का लक्षण

मान बढाई जगत में, कूकर की पहचान
प्यार किए मुख चाटई, बैर किये तन हान


संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि मान पाने की लालसा, बडाई सुनने की इच्छा तो कुत्ते के लक्षण है। कुता पुचकारे जाने पर पुँछ हिलाता हुआ अपने मालिक के प्रति सम्मान प्रकट करता है और जब उसे फटकारा जाता है तो काटने लगता है।

बड़ा बडाई ना करे, बड़ा न बोले बोल
हीरा मुख से ना कहै, लाख टका मेरो मोल


संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते है कि जो व्यक्ति वास्तव में योग्य ज्_ंजानी, विद्वान और शक्तिशाली हैं वह कभी भी अपने मुहँ से अपनी बडाई नहीं करता जैसे कोई हीरा अपने मुहँ से अपने कीमती होने का बयान नहीं करता।

Thursday, January 3, 2008

चाणक्य नीति:सज्जन पुरुष अर्थाभाव में भी सज्जनता नहीं छोड़ते

1.दान, शक्ति, मीठा बोलना, धीरता और सम्यक ज्ञान यह चार प्रकार के गुण जन्म जात होते हैं, यह अभ्यास से नहीं आते।
2.जिसकी मन में पाप हैं, वह सौ बार तीर्थ स्नान करने के बाद भी पवित्र नहीं हो सकता, जिस प्रकार मदिरा जलाने पर भी शुद्ध नहीं होता।
3.जो वर्ष भर मौन रहकर भोजन करता है, वह हजार कोटी वर्ष तक स्वर्ग लोक में पूजित होता है।
4.पीछे-पीछे बुराई कर काम बिगाड़ने वाले और सामने मधुर बोलने वाले मित्र को अवश्य छोड़ देना चाहिए।
5.इस संसार में कट जाने पर भी चन्दन का वृक्ष अपनी सुगन्ध नहीं छोड़ता, हाथी बूढा हो जाने पर भी अपनी विलासिता नहीं छोड़ता, गन्ना कोल्हू में पिस जाने पर भी अपनी मिठास नहीं छोड़ता ऐसे ही सज्जन पुरूष अर्थाभाव में भी अपनी सज्जनता नहीं छोड़ते।

Wednesday, January 2, 2008

संत कबीर वाणी:साधू को वैरागी और गृहस्थ को उदार होना चाहिए

'कबीर' हरि कग नाव सूं , प्रीती रहे इकवार
तो मुख तैं मोती झडै , हीरे अंत न पार

संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि यदि हरिनाम पर अविरल प्रीती बनी रहे तो उसके मुख से मोती ही मोती झाडेंगे और इतने हीरे कि उनकी गिनती नहीं हो सकती।

बैरागी बिरकत भला, गिरही चित्त उदार
दुहूँ चूका रीता पडै, वाकूं वार न पार


बैरागी वही अच्छा है जिसमें सच्ची विरक्ति हो और गृहस्थ वह अच्छा जिसका हृदय उदार हो। यदि बैरागी के मन में विरक्ति नहीं और गृहस्थ के मन में उदारता नहीं तो दोनों का ऐसा पतन होगा कि जिसकी हद नही है।

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