परस्यं दण्डं नोद्यच्छेत्क्रुद्धोनैनं।
अन्यत्र पुत्राच्छिष्याद्वा शिष्टयर्थ ताडयेत्तु तौ।।
हिन्दी में भावार्थ-कभी क्रोध भी आये तब भी किसी अन्य मनुष्य को मारने के लिये डंडा नहीं उठाना चाहिये। मनुष्य केवल अपने पुत्र या शिष्य को ही पीटने का हक रखता है।
अन्यत्र पुत्राच्छिष्याद्वा शिष्टयर्थ ताडयेत्तु तौ।।
हिन्दी में भावार्थ-कभी क्रोध भी आये तब भी किसी अन्य मनुष्य को मारने के लिये डंडा नहीं उठाना चाहिये। मनुष्य केवल अपने पुत्र या शिष्य को ही पीटने का हक रखता है।
ताडयित्त्वा तृपोनापि संरम्भान्मतिपूर्वकम्।
एकविंशतिमाजातोः पापयेनिषु जायसे।।
हिन्दी में भावार्थ-अपनी जाग्रतावस्था में जो व्यक्ति अपने गुरु या आचार्य को तिनका भी मारता है तो वह इक्कीस बार पाप योनियों में जन्म लेता है।
एकविंशतिमाजातोः पापयेनिषु जायसे।।
हिन्दी में भावार्थ-अपनी जाग्रतावस्था में जो व्यक्ति अपने गुरु या आचार्य को तिनका भी मारता है तो वह इक्कीस बार पाप योनियों में जन्म लेता है।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-क्रोध मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है। अनेक बार यह क्रोध इतना बढ़ जाता है कि मनुष्य स्वयं ही अपने अपराधी को दंड देने के लिये तैयार हो जाता है। यह अपराध है। किसी भी मनुष्य को दंड देने का अधिकार केवल राज्य के पास है। मनुष्य केवल अपने शिष्य या पुत्र को पीट सकता है। अन्य व्यक्ति को सजा दिलाने के लिये उसे राज्य या अदालत की शरण लेना चाहिए। दूसरी बात यह है कि किसी भी व्यक्ति से वाद विवाद होने पर अपने पास कोई अस्त्र या शस्त्र नहीं रखना चाहिये क्योंकि जब क्रोध आता है तब उसकी उपस्थिति के कारण वह अपना विवेक खो बैठता है। मनोवैज्ञानिक मानते हैं कि जब आदमी के पास अन्य पर प्रहार करने वाली कोई वस्तु होती है तो वह क्रोध आने पर उसका उपयोग कर ही बैठता है। अगर वह अपने पास वैसी वस्तु ही न रखे तो वह स्वयं ही एक ऐसे अपराध से बच जाता है जिसके करने पर बाद में पछतावा होता है।
अगर हम अपने आसपास हो रही हिंसक घटनाओं को देखें तो वह होती इसी कारण है क्योंकि मनुष्यों के पास हथियार होता है और उनका उपयोग अनावश्यक रूप से हो जाता है जबकि मामला शांति से भी सुलझ सकता था। अतः दूसरे व्यक्ति पर क्रोध होने पर अपने पास डंडा या हथियार होने पर भी उसके उपयोग से बचना चाहिए।
संकलक,लेखक एवं संपादक-दीपक भारतदीप,Gwaliorhttp://anant-shabd.blogspot.com
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