Monday, June 22, 2009

भर्तृहरि शतक-ज्ञानी लोग विषयों से विचलित नहीं होते (bhartrihari niti shatak-gyani aur vishay)

सुधाशुभ्रं धाम स्फुरदमलरश्मिः शशधरः प्रियाववत्राभोजं मलयजरजश्चातिसुरभिः।
स्रजो हृद्यामोदास्तदिदमखिलं रागिणी जने करोतयन्तः क्षोभं न तु विषयसंसर्गविमुखे।।
हिंदी में भावार्थ-
सफेद रंग से पुता चमकता भवन, चंद्रमा की शीतल रौशनी, अपनी प्राणप्रिया का मुख कमल, चंदन की सुगंध, फूलों की माला जैसे विषय अनुरागियों के मन को तड़पाते हुए विचलित कर देते हैं लेकिन जिन्होंने अध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त कर लिया है वह इनसे प्रभावित नहीं होते।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय-जीवन में राग अनुराग के प्रति लगाव स्वाभाविक रूप से रहता है। मगर यही राग अनुराग कष्ट का कारण भी बनते हैं। एक अच्छा और बड़ा मकान रहने के लिये होना चाहिये। जिनके पास नहीं है वह ख्वाब देखते हैं पर जिनके पास महल जैसा आवास है वह भी खुश नहीं है। इतने बड़े मकान का रखरखाव नियमित रूप करना भी उनके लिये कष्टप्रद है। बड़े शहरों मे चले जाईये तो कई नई कालौनियां देखकर लगता है कि जैसे यहां स्वर्ग है। कुछ वर्ष बाद जाईये तो वही पुरानी लगती हैं। लोगों के पास धन है पर समय नहीं कि अपने मकानों की हर वर्ष पुताई करा सकें। हालांकि कहने के लिये ऐसे रंग आ गये हैं जो कई वर्ष तक चलें पर बरसात और धूप के सामने भला कौनसा रसायन टिक सकता है।

आदमी का मन है जो कभी न कभी ऊबता है और वह विश्राम चाहता है। देह को तो आराम मिल जाता है पर मन को नहीं। भौतिक जीवन की सत्यता को समझना ही अध्यात्म ज्ञान है और जो इसे जानता है वही सुख दुःख से परे होकर जीवन में आनंद उठा सकता है। कहते भी है कि इस समय विश्व में लोगों के दिमाग में तनाव बढ़ रहा है। आखिर यह सोचने का विषय है कि जब इतनी सारी सुविधायें हैं तो फिर इंसान विचलित क्यों हो जाता है? यह सब अध्यात्म ज्ञान की कमी की वजह से है।
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