Thursday, April 9, 2009

संत कबीरदास की वाणी-तेरा प्रीतम और बैरी तेरे अंदर ही है (kabir ke dohe-tera pritam aur dushman andar hai)

हरिजन सोई जानिए, जिव्हा कहैं न मार।
आठ पहर चितवन रहै, गुरु का ज्ञान विचार।।

संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि भगवान का सच्चा भक्त वही है जो अपनी जीभ से कभी यह नहीं कहता कि ‘इसे या उसे मार’। वह आठों पहर अपने गुरु के ज्ञान का विचार करते हुए अहिंसा भाव से रहता है।
शीतल शब्द उचारिये, अहं आनिये नाहिं।
तेरा प्रीतम तुझहि में, दुसमन भी तुझ माहिं

संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि अपने मूंह से हमेशा ही ऐसे शब्दों का उच्चारण करो जो दूसरे को श्ीतलता प्रदान करें। अपने अहंकार में भरकर किसी से कठोर वचन मत कहो। सच बात तो यह है कि अपना दुश्मन या प्रेमी अपने अंदर ही है।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-जीवन में सारा खेल हमार इंद्रियों का है। इनमें भी सबसे अधिक हमारी जीभ का है। यही जीभ हमें तपती धूप में खड़ा कर सकती है और यही किसी छत के नीचे छाया दिला सकती है। ऐसी अनेक धटनायें होती हैं जिसमें बात बेबात मूंहवाद होने पर कत्लेआम हो जाता है। कहते हैं कि ‘न सूत न कपास, जुलाहों में लट्टम लट्ठा’। इसका संबंध केवल बुनकरों से नहीं है बल्कि यह पूरे समाज पर लागू होता है। लोग अपने अहंकार की तुष्टि के लिये अपनी वाणी का दुरुपयोग करते हैं और फिर होता है झगड़ा। अगर आप आये दिन होने वाले झगड़ों का विश्लेषण करें तो पता लगेगा कि बात तो कोई खास है नहीं है बल्कि झगड़ा करने वाले लोग अपने अहंकार की तुष्टि करने के लिये वाणी की आजादी का दुरुपयोग करना चाहते हैं। वह चाहते हैं कि उनकी कटु बातों का कोई प्रतिकार न करे। वह अपशब्द बोलें तो लोग सहें।
सच बात तो यह है कि जो भक्ति और ज्ञानार्जन में लीन होते हैं वह इस तरह का व्यवाहर नहीं करते। उनकी वाणी हमेशा सार्थक वचनों का प्रवाह करती है। हालांकि ऐसे लोगों की संख्या अब बहुत कम है।
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