Wednesday, November 17, 2010

पतंजलि योग दर्शन-स्वशक्ति तथा स्वामीशक्ति का संयोग (patanjali yog dershan-swashakti and swamishakti ka sanyog)

स्वस्वामिशक्त्योः स्वरूपपोपलब्धिहेतुः संयोगः।
हिन्दी में भावार्थ-
स्वशक्ति और स्वामीशक्ति के स्वरूप की प्राप्ति का जो कारण है वह संयोग है।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-यह सृष्टि दो तरह के आधारों पर चलती है। एक तो उसकी स्वयं की शक्ति है दूसरा जीव का अस्तित्व। इस प्रथ्वी पर अन्न उत्पादन की क्षमता है पर वह तभी उपयोग हो सकता है जब कोई जीव परिश्रम कर उसका दोहन करे। खेती या बागवानी के माध्यम से मनुष्य अन्न, फल तथा अन्य भोज्य पदार्थों को उत्पादित करता है। यह खेती और बागवानी संयोग है क्योकि यह प्रकृति तथा जीव के परिश्रम के बीच में एक ऐसी क्रिया है जो उत्पादन का कारण है।
जब हम इस बात को योग साधना, प्राणायाम तथा ध्यान के विषय में विचार करते हैं तब इसका अनुभव होता है कि हमारी देह भी एक तरह से सृष्टि है जिसकी स्वशक्ति है । उसमें हमारा आत्मा या अध्यात्म की भी शक्ति है जिसे हम स्वामीशक्ति मानते हैं। देह और आत्मा के संयोग के लिये प्रयास की आवश्यकता है जिसे हम योग साधना भी कह सकते हैं। हमारी देह में मन, बुद्धि और अहंकार रूपी प्रकृति हैं जिनका दोहन करने के लिये आसन, प्राणायाम, ध्यान तथा मंत्रजाप एक ऐसी क्रियाविधि है जो संयोग का निमित बनती है। इनसे देह के विकार निकलने के बाद वह जीवन में वैसे ही परिणाममूलक बनती है जैसे कृषि या बागवानी करने के बाद प्रथ्वी फल, फूल तथा अन्न प्रदान करती है। हमारी देह की स्वशक्ति और आत्मा की स्वामीशक्ति के स्वरूप का आभास योगसाधना के माध्यम से ही संभव है। यही कारण है कि हमारे अध्यात्म में योगासन, प्राणायाम, ध्यान तथा मंत्र जाप के साथ ही तत्व ज्ञान को जानने के प्रयास को बहुत महत्व दिया गया है।
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संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com

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