Saturday, April 12, 2008

रहीम के दोहे:बोलने पर ही कोयल और कौए के भेद का पता चलता है

दोनों रहिमन एक से, जौ बोलत नाहिं
जान परत हैं काक पिक ऋतु बसंत के माहिं


कविवर रहीम कहते हैं कि जब तक मुख से बोल नहीं निकलते तब तक कौआ और कोयल एक समान ही प्रतीत होते हैं। ऋतुराज बसंत के समय कोयल की मीठी और कौए की कर्कश वाणी के अंतर का अनुभव होता है।

वर्तमान के संदर्भ में व्याख्या-इसमें मनुष्य के भ्रम में पड़ जाने की प्रवृत्ति की ओर संकेत है। आजकल तो कुछ लोग होते तो कौए की प्रवृति के है पर कोयल जैसी मीठी वाणी बोलते हैं। उनके मन काले होते हैं और जब शिकार उनके जाल में फंस जाता है तो फिर कौए की तरह कर्कश वाणी बोलने लगते हैं। कौआ अगर मूंह न खोले तो उसके कोयल होने की अनुभूति होती है उसी तरह कुछ लोग अपनी वाणी से मधुर होने का अहसास दिलाते हैं परंतु अपना काम निकलते ही वह अपना औकात पर आ जाते हैं। कविवर रहीम ने अपने जीवन रहस्यों को व्यंजना विधा में प्रस्तुत किया है। यहां कोयल और कौए का उदाहरण देते हुए वह मनुष्यों को अपने जीवन में सतर्क रहने का संदेश देते है।

आजकल खासतौर से युवक-युवतियों को ऐसे संदेशों से प्रेरणा लेनी चाहिए। आपने देखा होगा कि इश्क और प्यार की आड़ में वासना के वशीभूत होकर कुछ युवक अपनी मीठी वाणी से युवतियों को अपने जाल में फंसा लेते हैं और फिर पहले तो शादी नहीं करते और शादी करते हैं तो फिर पता लगता है कि वह वैसे नहीं है जैसी युवतियां अपेक्षा करतीं हैं। फिर शुरू होता है उनके नारकीय जीवन का दौर।

उसी तरह युवकों को रोजगार का लालच देकर कुछ लोग पैसा वसूल कर देते हैं या फिर ऐसी जगहों पर भेज देते है जहां से उनकी वापसी होना मुश्किल हो जाती है। कुछ युवकों ऐसे गलत कामों में फंसा दिया जाता है जो उनको अपराध की दुनियां में ले जाता है। इसलिये कोयल और कौए के भेद को समझकर ही किसी पर विश्वास करना चाहिए। यहां वाणी से तात्पर्य हम नीयत से भी ले सकते हैं। कौऐ की नीयत रखने वाला कुछ देर तक कोयल होने का आभास दे सकता है पर समय आने पर उसकी असलियत खुल जाती है।

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