Saturday, February 6, 2010

श्रीगुरु ग्रंथ साहिब-इस संसार में केवल परमात्मा का नाम ही सच है (shri guru granth sahib-pramatma ka naam sach)

‘आदि सच जुगादि सच।
हे भी सच, नामक होसी भी सच।।’
हिन्दी में भावार्थ-उसका नाम सत्य सत्य परमात्मा है, यह अतीत के युगों में भी सत्य था, वर्तमान काल में भी सत्य है और आने वाले अनेक युगों तक यह सत्य बना रहेगा।
‘सच पुराणा होवे नाही।’
हिन्दी में भावार्थ-
दुनियां में समय के साथ हर चीज पुरानी पड़ जाती है लेकिन परमात्मा का नाम कभी पुराना नहीं पड़ता।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या -हम इस संसार में जितनी भी वस्तुऐं और व्यक्ति देख रहे हैं समय के साथ सभी पुराने पड़ते हैं।  इसलिये उनमें मोह डालना या उनके आकर्षण के वशीभूत होकर उनको पाने के लिये अपना पूरा जीवन नष्ट करने कोई लाभ नहीं है।  व्यक्ति समय के हिसाब से भ्रुण, शिशु, बालक, युवा, अधेड़ तथा वृद्धावस्था को प्राप्त होता है।  कोई मनुष्य चाहे कितना भी श्रृंगार कर अपने को युवा दिखाये पर दैहिक रूप से उसमें समय के साथ शिथिलता आती है।  यही हाल वस्तुओं का है। कोई वस्तु हम अगर किसी दुकान से जिस भाव में खरीदते हैं उसी भाव में उसे घर लाकर नहीं बेच सकते।  इतना ही नहीं हम आजकल के आधुनिक विद्युतीय साधनों को बड़े चाव से खरीदते हैं पर जल्द ही उनका नया माडल आ जाता है और लोग उसे पुराने फैशन का कहना प्रारंभ कर देते हैं। 

अतः संसार के भौतिक पदार्थों के प्रति आकर्षण और मनुष्यों में मोह एक सीमा तक ही रखना चाहिये।  यहां केवल सच केवल परमात्मा का नाम है जिसे चाहे बरसों तक लेते रहे पर उसके पुराने होने का अहसास नहीं होता। भक्ति जितनी करो उतनी थोड़ी लगती है बल्कि दिन ब दिन उसमें नवीनता का अनुभव होता है।  दूसरी चीजों या मनुष्यों से स्वार्थ की पूर्ति न होने पर निराशा मन में आती है पर निष्काम भक्ति से कभी हृदय में तनाव नहीं आता बल्कि उससे दुनियां के दुःख दर्द को सहने की शक्ति आती है।

संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
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