Sunday, April 16, 2017

बड़े पदों पर बौनेचरित्र लोग पहुंच गये हें (Bade pade par baone charitra ke log)

                               एक बात समझ में नहीं आती। ऐसा क्या मजबूरी है कि योग प्रचार में शीर्ष पर पहूंचे विद्वान विश्व में जीवन जीने की इकलौती सर्वश्रेष्ठ कला कहलाने वाली इस साधना में दूसरे धर्मों की पूजा पद्धति से करने लगे हैं। बीस साल पूर्व हमने योग साधना प्रारंभ की तो अनेक ऐसी अनुभूतियां हुईं जो सामान्यतौर से नहीं हो सकतीं थीं। सबसे बड़ी बात यह कि योग साधना से आत्मविश्वास बढ़ता है।  जब देह, मन और विचार शुद्ध होते हैं तो मनुष्य की पूरे देह में उत्साह का संचार सदैव बना रहता है। अगर इसे एक पूजा पद्धति माने तो इसका रूप जिज्ञासा तथा ज्ञान की प्रकृति पर आधारित है।  हम अन्य धर्मों की ही क्या भारतीय धर्मों की ही बात करें तो अनेक प्रकार की पूजा पद्धतियां हैं पर वह सभी आर्त व अर्थार्थी भाव पर चलती हैं।  अगर हम इसे भारतीय धर्मों से अलग करके देखें तो यह इकलौती ऐसी कला है जो मनुष्य में चेतना की धारा सदैवा प्रवाहित करती है। मुख्य बात यह कि योग साधना में संकल्प का सर्वाधिक महत्व है जिसे धारण करना प्रारंभ में सहज नहीं होता पर जिसने धारण कर लिया वह कभी असहज नहीं होता। हम तो यह कहते हैं कि बाकी कोई करे या न करे पर भारतीय धर्मावलंबियों को यह अनिवार्य रूप से करना चाहिये।  बाहरी विचाराधारा वाले हमारी जीवन पद्धतियों को नहीं मानते पर हमारे विद्वान उनसे समानता बताकर आखिर कहना क्या चाहते हैं?
                          बड़ा आदमी जब छोटे पर हमला करता है तो अपना ही स्तर गिराता है। मार या गाली खाकर भी छोटा आदमी वहीं रहता है जहां था। इसके विपरीत उसे अन्य लोगों से सहानुभूति मिलती है चाहे वह स्वयं भी गलत रहा हो।
हमारे देश में यह भी एक समस्या है कि बौने चरित्र के लोग बड़े पदों पर विराजे हैं जिन्हें यह पता नहीं कि उनकी ताकत क्या है? वह तो इस चिंता में रहते हैं कि कहीं उनकी औकात सार्वजनिक न हो जाये। इस तनाव में वह ऐसी गल्तियां कर बैठते हैं जो अंततः उनके अंदर का बौना चरित्र बाहर ला देती हैं। रहता तो वह वहीं है पर लोग उसे छोटा और हल्का मानने लगते हैं।

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