Sunday, April 8, 2012

कौटिल्य का अर्थशास्त्र-उपेक्षा के भाव से भी हित होता है (kautilya ka arthshastra-upeksha ka bhav hitkar)


         यह जीवन अनेक रंगों से भरा हुआ है। मनुष्य का स्वामी है उसका मन है जिस पर नियंत्रण कर लिया जाये तो फिर उसकी सारी देह हाथ आ जाती है। ज्ञानी लोग अपने मन पर नियंत्रण रखते हैं तो विषयों के व्यवसायी उनको अपने जाल में फंसा नहीं पाते पर सामान्य लोगों के चंचल मन का वश करना आसान है इसलिये अनेक लोग मनोरंजन का व्यापार कर उससे मालामाल हो जाते हैं। आजकल के आधुनिक युग में हम यह देखते हैं कि सभी प्रकार के प्रचार माध्यम हास्य, श्र्रृंगार, वीभत्स, करुणा धर्म तथा सनसनी से सजी विषय सामग्री प्रस्तुत करते हैं। अनेक प्रकार की कल्पित कहानयों से मनोरंजन के कार्यक्रमों का निर्माण जाता है। उसका परिणाम यह है कि पूरा विश्व समुदाय आज प्रचार तंत्र के मार्गदर्शन को मोहताज हो गया है। सही और गलत का निर्णय तर्क के आधार पर नहीं बल्कि शोर के आधार पर होने लगा है।
               कौटिल्य के अर्थशास्त्र में कहा गया है
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              अन्याये व्यसने युद्धे प्रवृत्तास्यान्त्विरणम्।
               इत्युपेक्षार्थकुशलैरुपेक्षा विविधा स्मृता।।
             ‘‘जब अन्याय, व्यसन तथा युद्ध के लिये तत्पर व्यक्ति से सामना हो तो कुशल पुरुष के लिये उसकी उपेक्षा करना ही एक मार्ग है।’’
              अकायसज्जमानस्तु विषयान्धीकृतेक्षणः।
                 कीचकस्तु विराटेन हन्यतामित्युपेक्षितः।।
           ‘‘जब अकार्य में फंसे होने के साथ ही जिसके नेत्र विषयासक्ति में अंधे हो रहे हो रहे थे उस कीचक की जब द्रोपदी बुरी दृष्टि पड़ी भीमसेन ने उसका वध कर दिया। उसे मरता देख राजा विराट ने उपेक्षा का भाव दिखाया और चुप बैठे रहे।’’
            अनेक लोग सवाल करते हैं कि आजकल के मनोरंजन के साधनों के दुष्प्रभाव से आखिर किस प्रकार बचा जाये? दरअसल हमारे अंदर जब मनोरंजन, उत्सकुता और द्वंद्व देखने की इच्छा का भाव चरम पर होता है तब उपेक्षा करने की प्रवत्ति समाप्त हो जाती है। इसका कारण यह है कि हम बहिमुर्खी होने के कारण यह चाहते हैं कि हमारी आंखों के सामने हमेशा कुछ न कुछ चलता रहे। इसका लाभ लोग उठाते हैं जिनका लक्ष्य ही मनुष्य मन का हरण करना है। इससे बचने का उपाय यह है कि थकान या ऊब होने पर ध्यान लगाकर अपने मन पर नियंत्रण किया जाये। जिन लोगों ने ध्यान की कला को नहीं समझा वह शायद यह पढ़कर हंसेंगे कि इससे हम अपने मन को विराम देकर जो मनोरंजन प्राप्त कर सकते हैं वह अन्यत्र संभव नहीं है। यह विराम जहां संसार के विषयों के प्रति उपेक्षा का भाव पैदा कर मन को शांति प्रदान करता है वहीं तन और मन की थकावट को भी हरता है।
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 

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