Thursday, September 8, 2011

कौटिल्य का अर्थशास्त्र-परशुराम की तरह प्रतापी ही सर्वत्र राज्य करते हैं (kautilya ka arthshastra-parshuram ki tarah pratapi raja hona cnahiye)

            कौटिल्य का अर्थशास्त्र न केवल राज्य की अर्थव्यवस्था बल्कि राजकाज संचालन के सिद्धांतों   का भी बयान करता है। राज्य प्रमुख के आचरण से ही प्रजा सुखी होती है, यह बात तो कौटिल्य महाराज कहते हैं पर साथ उनका यह भी मानना है कि वीर राजा के प्रताप से ही राज्य की सुरक्षा होती है। हमारे देश में राजनीति करने का विषय बन गयी है पर अध्ययन करना कोई नहीं चाहता। पद पाने की रणनीति सभी अपनाते हैं पर उस बैठकर प्रजा का हित कैसे हो इसका बहुत कम लोग विचार करते हैं। एक बात यहां यह भी बता दें कि प्रजा का हित सोचना या ऐसा दावा करना आसान है पर अपनी व्यवस्था के व्यवहारिक धरातल पर उसे उतारना कोई आसान काम नहीं है। सबसे बड़ी बात यह है कि युद्ध जीतकर प्रजा में अपने प्रति विश्वास पैदा करना आवश्यक है। शत्रु चाहे अंदर हों या बाहर उन पर कड़े प्रहार कर ही कोई राज्य प्रमुख प्रजा का विश्वास जीत सकता है। 
कौटिल्य के अर्थशास्त्र में कहा गया है कि
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जमदग्नेः सृतस्येव सर्वः सर्वत्र संवदा।
अनेकवृद्धजविन प्रतापदेव भुज्यते।।
            ‘‘जमदग्नि के पुत्र परशुराम के समान सब ही सर्वत्र अनेक युद्ध जीत चुके राजा ही अपने प्रताप से ही शासन करते हैं।’’
अनेकयुद्धविजयी सन्मानं यस्यमच्छति।
तत्प्रतापेन तस्माशु वशं गच्छन्ति शत्रवः।।
          ‘‘अनेक युद्ध जीतने वाले के प्रताप से अनेक अन्य राजाओं से उसकी संधि हो जाती है और शत्रु तक उसका पक्ष स्वीकार करते हैं।’’
           जो राज्य प्रमुख राज्य और प्रजा के शत्रुओं को परास्त करता है वह न केवल प्रजा का विश्वास जीतता है वरन् दूसरे राजा भी उससे संधि करने लगते हैं। अगर कोई राज्य प्रमुख युद्ध नहीं करता और अपने आंतरिक शत्रुओं से नरमी बरतता है तो उसका पतन जल्दी होता है। इसलिये यह आवश्यक है कि राज्य की रक्षा तथा प्रजा का विश्वास बनाये रखने के लिये राज्य प्रमुख को अपनी मानसिक तथा वैचारिक दृढ़ता का परिचय देना चाहिए।
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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