Wednesday, August 15, 2012

विदुर नीति-जैसे सा साथ तैसा व्यवहार ही धर्मं (vidru neeti-jaise ke sath taisa vyavahar)

    मनुष्य जीवन में समय का बहुत महत्व है।  समय का विभाजन समझने वाले अपने कर्म का सहजता से संपन्न कर सकते हैं।  प्रातःकाल का समय धर्म, दोपहर का अर्थ, सांयकाल का ध्यान चिंतन  तथा रात्रि को मो़क्ष यानि निद्रा के लिये हैं।  जब हम अर्थ के लिये कार्य करते हैं तब उस समय हमारे अंदर राजस कर्म के भाव होता है तब  उसके नियमों का पालन करना आवश्यक है।   राजस कर्म में जीवन यापन  के लिये धन कमाना होता है। उस समय हमारे अंदर अपनी देह के लिये भौतिक साधन जुटाना ही लक्ष्य होता है। ऐसे में हमारा वास्ता ऐसे लोगों से पड़ता है जो राजस बुद्धि से काम करते हैं जिनका लक्ष्य भी वही होता है।  उनसे सात्विकता की आशा व्यर्थ हैं।  उस समय जो कपट करे उसका प्रतिवाद करना चाहिये। जो ईमानदारी से पेश आये तो उसकी प्रशंसा करना चाहिए।
यस्मिन यथ वर्तते यो मनुष्यस्तस्मिस्तथा वर्तित्व्यं स धर्मेः।
मायाचारी मायया वर्तितव्यः साध्वाचारः साधुना प्रत्युपेयः।।

           हिन्दी में भावार्थ-जैसा व्यवहार दूसरा मनुष्य करे वैसा ही हमें भी करना चाहिए यही धर्म है। अगर कोई कपट से पेश आये तो उसका प्रत्युत्तर भी उसी तरह देना चाहिए। जिसका व्यवहार अच्छा हो उसे सम्मान देना चाहिए।
न निह्नवं मन्त्रतस्य गच्छेतफ संसृष्टमन्त्रस्य कुसङ्गतस्य।
न च ब्रुयान्नश्वसिमि त्वयीति सकारणं व्यपदेशं तु कुर्यात्।।

        हिन्दी में भावार्थ-जब कोई राजा दुष्ट सहायकों के साथ मंत्रणा कर रहा हो तब उस समय उसकी बात का प्रतिवाद न करे। उसके सामने अपना अविश्वास भी न जताये तथा कोई बहाना बनाकर वहां से निकल आयें।
           समाज में राज्य, अर्थ तथा धर्म के शिखर पुरुषों पर बैठे लोगों के साथ व्यवहार करते समय अपनी तथा उनकी स्थिति पर विचार करना चाहिए।  आजकल हर क्षेत्र में तामसी प्रवृत्ति के लोग सक्रिय हैं।  प्रकृति का नियम है कि सज्जन लोगों का संगठन सहजता से नहीं बनता क्योंकि उसकी उनको आवश्यकता भी नहीं होती। इसके विपरीत दुष्ट तथा स्वार्थी तत्वों का संगठन आसानी से बन जाता है।  ऐसे में अपने सार्वजनिक जीवन में इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि हमारे व्यवहार में आने वाले लोगों का कर्म किस प्रकृत्ति के हैं।  जहां दुष्ट लोगों का समूह हो वहां अपनी बुद्धिमानी, चातुर्य तथा ज्ञान बघारना ठीक नहीं है।  चुपचाप वहां से निकल जायें।  ऐसे लोगों केवल अपना काम निकालने के लिये तत्पर होते हैं।  उनसे सात्विकता और सहृदय की आशा करना स्वयं को धोखा देने के अलावा कुछ नहीं है।
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 

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