Thursday, March 24, 2016

बंदरिया बहुत भोली है-होली पर तीन कवितायें (Three ShortHindiPoem on Holi)

बंदरिया बहुत भोली है।
बंदर दिन में ही
वाइन पीकर
पराई बंदरियाओं पर
गरिया रहा है
वह समझती 
यही सचमुच की होली है।
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कवि पी रहा
सुबह सुबह वाइन
घर में ही हिम्मत से
बोतल खोली है।

चेले ने कहा
‘गुरु हर पैग के साथ
लिखते भी जाओ
साल भर में एक ही बार
आती होली है।
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रंग भी नकली हुए
गंध हुई भ्रष्ट
स्पर्श से देह को सताते
बीमार बोली है।

आनंद में सराबोर
होने को तैयार मन
डरते हुए कहे
इससे तो बेहतर सूखी होली है।
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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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Saturday, March 12, 2016

जनवाद व परिवाद छात्रों की शिक्षा में बाधक-चाणक्य नीति के आधार पर चिंत्तन लेख (JanWad va Pratiwad destroyed Student Mind-A Hindi Thought Article based on Chankyapolicy)

                        हमारे देश में कार्ल मार्क्स के अनुयायी स्वयं को जनवादी कहते हैं। इनके संगठन छात्रों में अपने विचारों का प्रचार कर उन्हें समाज सेवक के रूप में तैयार करने का काम करते हैं। इनका मानना है कि छात्रों को चुनावी राजनीति की शिक्षा शैक्षणिक काल के दौरान ही दी जानी चाहिये। वैसे हमारे अध्यात्मिक दर्शन के अनुसार हर मनुष्य में राजसी चतुराई स्वाभाविक रूप से होती है पर जनवादी मानते हैं कि वह भी पशु पक्षियों की तरह होता है जिसे आधुनिक ज्ञान देना जरूरी है।  छात्रों को ज्ञानी बनाने के क्रम में यह विमर्श नीति के  क्रियान्वयन में यह संवाद कार्यक्रम करते हैं-जिसमें वाद प्रतिवाद या कहें परिवाद  होता है। इसमें समाज के उच्च वर्ग व वर्णों के कथित रूप से एतिहासिक अत्याचारों का वर्णन कर कमजोर वर्ग के छात्रों को सशक्त बनने की प्रेरणा दी जाती है।
चाणक्य नीति में कहा गया है कि
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द्यूतं च जनवादं च परिवादं तथाऽनुतम्।
स्त्रीणां च प्रेक्षणालम्भावपघातं परस्व च।।
                        हिन्दी में भावार्थ-विद्यार्थी को जुआ, जनवाद (दूसरों से विवाद करने), परिवाद(दूसरे की निंदा व बुराई करने), झूठ बोलने, स्त्रियों से परिहास व किसी को भी हानि पहुंचाने को दोषों से दूर रहना चाहिये।
                        चाणक्य नीति के अनुसार तो जनवाद दूसरों से विवाद व परिवाद निंदा करना ही होता है।  इस तरह तो जनवाद व उनका परिवाद कार्यक्रम छात्रों की शिक्षा में व्यवधान उत्पन्न करता है। अब धीरे धीरे यह बात समझ में आने लगी है कि जनवादी भारतीय अध्यात्मिक दर्शन का विरोध करते हुए आक्रामक क्यों हो जाते हैं? दरअसल भारतीय अध्यात्मिक दर्शन में सहज जीवन बिताने की प्रेरणा दी जाती है जबकि विदेशी विचारधारा के प्रवाहक मनुष्य में सहजता का भाव पैदा कर उसकी बुद्धि अपने अधीन कर लेते हैं। वह छात्रों को अपना अनुयायी बनाकर उनके सामने आधुनिक विद्वान की छवि बनाते हैं।  विदेशी विचाराधारा के विद्वान भारतीय पूजा पद्धति कर जरूर विरोध करते हैं पर अपने सम्मान के कार्यक्रमों में पूज्यनीय बनकर प्रस्तुत होते हैं।
                        इसलिये हमारी राय है कि समस्त लोगों को हमारे प्राचीन ग्रंथों के साथ ही चाणक्य तथा विदुर नीति का अध्ययन अवश्य करना चाहिये।
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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
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