Saturday, June 20, 2015

योग साधना से दृष्टिकोण बदलता है-विश्व योग दिवस 21 जून पर विशेष संपादकीय लेख(yoga sadhana se drishtikon badalata hai-A Hindu hindi thoughta article on world yoga day, internation yoga day21 june 2015)

                                                        ’‘योग हमारे जीवन की स्थितियां नहीं बदलता पर उन्हें देखने को दृष्टिकोण बदलता है।’’योगाचार्य आंयगार की एक शिष्या ने अपने गुरु का संदेश सुनाते हुए कहा।  टीवी पर उनका यह विचार देखकर खुशी हुई।  इसे सुनकर एक विचार हमारे मन में आया कि योग से जुड़े लोगों का चिंत्तन एक ही दिशा में इसलिये होता है क्योंकि उनके कदम एक ही धरातल पर होते हैं।  योग साधक सहज होते हैं इसलिये उनका चिंत्तन सीमित दायरे में होने के बावजूद व्यापक दृष्टिकोण वाला होता है जबकि सामान्य मनुष्य अनेक धरातलों पर कदम रखते हुए असीमित दायरों में सोचते हैं इसके बावजूद उनका दृष्टिकोण संकुचित हो जाता है।
                              योग से साधक के चिंत्तन को वायु जैसी गति, अग्नि जैसी शक्ति और जल जैसी निर्मल भक्ति प्राप्त होती है और वह जीवन में वैचारिक रूप से स्वतंत्र होकर आकाश में विचरते हुए  विषयों में प्रवेश करता है जबकि सामान्य मनुष्य विषयों की बोतल में सदैव बंद रहता है-एक तरह से कूंऐं का मेंढक हो जाता है।  लगातार योग तथा ज्ञान साधना करते हुए इस लेखक ने भी यह निष्कर्ष निकाला कि योग साधना से कोई सिद्ध नहीं बनता वरन् साधक का दृष्टिकोण सबसे अलग और सटीक हो जाता है इसलिये वह सिद्ध दिखता है।  एक योग साधक की हमेशा ही सत्संग चर्चा में रहती है। दूसरों के विचार सुनने पर यह पता लगता है कि हम अकेले ऐसा सोचने वाले नहीं है। साथ ही यह भ्रम भी दूर होता है कि हमने ही ऐसा सोचा था।
21 जून को विश्व योग दिवस पर टीवी पर अनेक ऐसे कार्यक्रम देखने को मिले जो रुचिकर थे। कुछ चैनल तो इस योग दिवस में भारत से बाहर उत्पन्न वैचारिक धाराओं के विद्वानों को इसके विरोध में लाकर अपने कार्यक्रमों में निष्पक्षता का रस विष की तरह घोलते रहे-यह अलग बात है कि दृढ़ संकल्पित योग साधकों में विष पचाने की क्षमता होती है- पर कुछ ने वाकई ऐसे कार्यक्रम प्रसारित किये जिससे लगा कि योग साधना का वैश्वीकरण तो बहुत पहले ही चुका है जबकि अब जाकर उसे स्वीकार किया गया है। अनेक विदेशी योग शिक्षकों को योग कराते देखकर अच्छा लगा।  योग के अनेक नाम सुनने को मिले-जैसे नृत्य और मुक्केबाजी योग आदि। योग के प्रति अंग्रेज तथा अमेरिकन लोगों की निष्ठा ने हृदय को इतना प्रभावित किया कि लगने लगा कि हम भारतीय योग की नहीं वरन् विश्व योग की बात कर रहे हैं।
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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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