Friday, April 18, 2008

रहीम के दोहे:समुद्र में मिलने से गंगा का महत्व हो जाता है कम

कौन बड़ाई जलधि मिलि, गंग नाम भो धीम
केहि की प्रभुता नहिं घटी, पर घर गये रहीम


कविवर रहीम कहते है कि पवित्र नदी गंगा जब समुद्र में मिलती है तो उसका महत्व नहीं रह जाता। उसी तरह किसी दूसरे के घर जाने पर अपना भी महत्व कम हो जाता है।

वर्तमान संदर्भ में व्याख्या-हमें अपने काम के सिलसिले में दूसरों के घर जाना ही पड़ता है और वहां अगर हमें सम्मान नहीं मिलता तो उसे हृदय में नहीं रखना चाहिए। यह स्वाभाविक बात है कि हर कोई अपने घर, क्षेत्र और देश में ही राजा होता है। जब काम या रोजगार के सिलसिल में अपना मूल स्थान या घर छोड़ना पड़े तो आत्म सम्मान का मोह भी छोड़ देना चाहिए। अक्सर अपना क्षेत्र या देश छोड़कर गये कुछ लोग वहां बराबरी का सम्मान न मिलने की शिकायत करते हैं उन्हें यह समझना चाहिए कि यह स्वाभाविक मनोवृति है कि अपने क्षेत्र में बाहर से आये आदमी का बहुत कम लोग सम्मान करते हैं क्योंकि उनको लगता है कि हम तो निस्वार्थ भाव से रहते हैं और बाहर से आया आदमी तो अपनी रोजी-रोटी कमाने के उद्देश्य से आया है।

विदेशों में गये कई भारतीयों ने ऊंचे ओहदों के साथ बहुत सारा धन और प्रतिष्ठा अर्जित की है पर उनका वैसा सम्मान नहीं है जैसा कि यहां अपने लोग करते हैं। कुछ तो सत्य स्वीकारते हैं पर कुछ लोग इस तरह यहां प्रचारित करते हैं कि जैसे उनको विदेश में लोगों का बहुत सम्मान प्राप्त है जो कि उनका स्वयं का ही भ्रम होता है। उनका वहां वही लोग सम्मान करते हैं जो उनसे अपना स्वार्थ निकालते हैं। विदेशों में कई देश ऐसे हैं जो धर्म पर आधारित हैं और वहां इस देश के किसी भी धर्म के पालन की अनुमति नहीं है। जहां यह अनुमति नहीं है वहां के लोग भी अपने स्वार्थ की खातिर अपने खुश होने का प्रमाण पत्र देते हैं पर अगर उनका वहां सम्मान होता तो भला उनको सार्वजनिक रूप से अपने धर्म पालन की अनुमति होती कि नहीं। हम यह नहीं कह रहे कि यह अनुमति मिलना चाहिए। हां यह वास्तविकता उनको स्वीकार कर लेना चाहिए कि वहां वह अपने काम और रोजगार के सिलसिले में हैं और उनको किसी भी मान सम्मान की चाहत नहीं है। जब आप अपना घर या देश छोड़कर दूसरी जगह जाते हैं तो सम्मान का मोह छोड़ना ही सत्य के साथ चलना है।

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