Sunday, December 27, 2009

श्री गुरुग्रंथ साहिब-कुटिल लोगों की विपत्ति में सहानुभूति जताना व्यर्थ (kutil admi se sahanubhuti n dikhayen-shri guru granth sahib)

‘जिना अंतरि कपटु विकार है तिना रोइ किआ कीजै।’
हिन्दी में भावार्थ-
श्री गुरु ग्रंथ साहिब के अनुसार जिन लोगों के मन में कपट भरा है उनकी विपत्ति में उनसे सहानुभूति जताना व्यर्थ है।
‘हिरदै जिनके कपटु बाहरहु संत कहाहि।
तृस्ना मूलि न चुकई अंति गए पछुताहि।।
हिन्दी में भावार्थ-
श्री गुरु ग्रंथ साहिब के अनुसार जो संत होने का दिखावा करते हैं वस्तुतः उनके हृदय में कपट भरा होता है जिसके कारण उनकी तृष्णा कभी शांत नहीं होती। अंतकाल में ऐसे लोगों को पछताना पड़ेगा।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-मनुष्य मन में कपट रखकर दूसरों से सहानुभूति की आशा करता है। अपना काम निकालने के लिये मीठा बोलना या दूसरे से झूठा वादा करना और फिर मुकर जाना मनुष्य के लिये क्लेश का कारण बनता है। अगर हम अपने पौराणिक ग्रंथों का अध्ययन करने के बाद अपने समाज की स्थिति पर नजर डालें तो यह तथ्य सामने आता है कि अधिकतर लोगों का व्यवहार कपटपूर्ण हो गया है। खास तौर से बड़े स्तर पर बैठे लोग छोटे लोगों के साथ कपट, चालाकी तथा बेईमानी का व्यवहार कर उनका दोहन करते हैं।
हम आज पूरे विश्व समुदाय में जो अशांति देख रहे हैं वह ऐसे ही कपटपूर्ण व्यवहार का परिणाम है। कहीं मजदूरों, कामगारों तथा छोटे व्यवसायियों से अभद्र व्यवहार की तो कहीं स्त्रियों के दैहिक शोषण से अनेक समाचार आते रहते हैं। दरअसल सभ्रांत वर्ग ने कपटपूर्ण व्यवहार को राजनीति का नाम दिया है। जो कपटपूर्ण तथा अहंकार का व्यवहार करता है उसे ‘पहुंच वाला’ माना जाता है। ‘कौटिल्य का अर्थशास्त्र’ की जगह ‘कुटिलता का अर्थशास्त्र’ सभी जगह काम कर रहा है। कुटिलता और कपट को ‘दृढ चरित्र’ का प्रमाण मानना पूरे विश्व समुदाय के लिये आत्मघाती साबित हो गया है। वैसे देखा जाये तो जितनी कुटिलता जिसमें अधिक है वही अधिक प्रगति करता है और यही कारण है कि बड़े लोगों से कोई हादसा होने से उनके प्रति लोगों की वैसी सहानुभूति भी नहीं रहती जैसे कि पहले रहती थी। बल्कि बड़े लोगों की बदनाम या उनसे हादसे पर लोग उनके प्रतिकूल ही टिप्पणियां देकर इस बात को प्रमाणित करते हैं कि वह इस आधुनिक प्रचार माध्यमों से सभी की कुटिलता जान चुके हैं भले ही उनके सामने व्यक्त नहीं करते। सच है कि कुटिल लोगों से सहानुभूति जताना अपने आपको ही कष्ट पहुंचाना है।
संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://anantraj.blogspot.com
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