Friday, December 28, 2007

मोबाइल की बैटरी का चक्कर

मोबाइल की बैटरी में खराबी की
खबर ने उसे हिला दिया
मिलता था वह जिन गर्लफ्रैंडस से
अलग दिन और अलग जगह पर
बैटरी फटने के भय ने
सबको एक ही दिन
उसके होस्टल के कमरे के छत के नीचे
आपस में मिलवा दिया

उसने सबको एक ही कंपनी के
मोबाइल तोहफ़े में दिये थे
जिनकी बैटरी फटने के चर्चे
टीवी चैनलों ने किये थे
भय से काँपती सब उसके कमरे में पहुँची
जो देखा वहां का मन्जर
वह सब भूल गयीं और मिलकर
उसे छठी का दूध याद दिला दिया


वह पिटा-कुटा अपने कमरे में पडा था
एक दोस्त ने आकर उसे उठाया
वजह पूछी पर वह कुछ नहीं बता रहा था
बस एक ही बात रोते हुए दोहरा रहा था
'मोबाइल वालों तुमने यह क्या किया'
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Wednesday, December 26, 2007

दृश्य-अदृश्य

शूटिंग-हूटिंग
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सुरा, सुंदरी और सता के खेल में
अब ऐसे दृश्य सामने आने लगे हैं
कि पता ही नहीं लगता
असल हैं या फिल्म की शूटिंग है
दौलत, शौहरत और ताकत के सहारे
करने वालों का हर कर्म
शानदार अभिनय कहलाये
गरीब के बुरे क्या अच्छे कर्म पर भी
लोग करते हूटिंग है
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दृश्य-अदृश्य
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प्रचार प्रबंधक रचते हैं
शब्दों का ऐसा मायाजाल कि
फिल्मी हीरो
असल जिन्दगी में विलेन होते हुए भी
लोगों के दिल में हीरो होते हैं
अखबार और टीवी में खबरों की
ऐसी चाल रचते हैं गोया कि
हीरो के जग जाहिर काले कारनामे भी
ऐसे प्रस्तुत होते हैं जैसे
कोई काल्पनिक दृश्य हैं
देश , समाज और मर्यादाओं का
कोई लेना-देना नहीं
हीरो से लड़ने वाली
उसे सताने वाली
ऎसी शक्ति है जो अदृश्य है
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प्रचार प्रबंधन
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असली दृश्य नकली लगे
और नकली लगे असली
इसी करामात को
कहते हैं प्रचार प्रबंधन
खलनायक को फिल्म में पीटकर
बनता है नायक
करता है असल जिंदगी में खलनायकी
पर अखबार रहते हैं खामोश
और टीवी पर ऐसे दृश्य आते जैसे
लोग देख रहे हैं स्वपन
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ख्याल हमेशा हकीकत नहीं हुआ करते
अगर ऐसा होता तो
लोग आसमान में ही उड़ते

जमीन की तरफ नजर तक नहीं करते

Tuesday, December 25, 2007

मोबाइल का माडल दिल का माडल

उसने कई बार राह चलते हुए
उस लडकी को लव लेटर थमाया
पर लडकी की तरफ से कभी
कोई जवाब नही आया
उसने लव में एक्सपर्ट अपने दोस्त
से जब इस बारे में बात की तो
वह बोला
'क्या बाबा आदम के जमाने में रहते हो
मोबाइल के जगह लडकी के हाथ में
सडे-गले कागज़ वाला प्रेमपत्र रखते हो
अब तो गिफ्ट देकर प्रेम का इजहार
करने का ज़माना आया'
दोस्त की बात से उसकी समझ
में पूरा माजरा आया

उसने बाजार से खरीदा मोबाइल
फिर जाकर लडकी के हाथ में थमाया
उसे गौर से देखने के बात वह बोली
'पुराना माडल है समझ में नहीं आया'
बिचारा सकपकाया
फिर निकला बाजार में
भटका इधर उधर
आख़िर ऐक नया माडल समझ में आया
बहुत महंगा था
फिर भी खरीद कर जा पहुंचा उस रास्ते पर
जहाँ से गुजरी वह तो उसे दिखाया
उसने उलट-पुलट कर देखा
फिर पूछा
'बेटरी फटने वाली तो नहीं
क्या इसे चेक कराया'

उसने ना में गर्दन हिलायी
मुहँ से प्रेम के इजहार के रुप में
प्रथम शब्द की उसकी अभिव्यक्ति
नहीं निकल पायी
लडकी ने वह माडल भी लौटाया
वह तत्काल भागा फिर बाजार की तरफ
बेटरी चेक कराकर लॉट आया
और वापस घर जाती लडकी को दिखाया
लडकी ने अपने पर्स से निकाल कर
उसे दूसरा मोबाइल दिखाया
'सौरी, तुम्हारे इस प्रेजेंट से पहले ही
यह एकदम नए माडल का मोबाइल
एक दोस्त ही
मेरे पास प्रेजेंट देने आया
मुझे पहली नजर में भाया'
उसके जाते ही लड़का आकाश में
देखकर हताशा में चिल्लाया
'शाश्वत प्रेम की इतनी गाथाएं सुनता हूँ
पर इस आधुनिक प्रेम का माडल किसने बनाया
जिस पर है मोबाइल के माडल की छाया
यह कभी मेरे समझ में नहीं आया'
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साबित करना होगा कबूतरनी नहीं पत्नी

बडे लोगों की कबूतरबाजी के
यही हाल रहे तो
विदेश में हर भारतीय को
अपने साथ ले जाने में दिक्कत होगी पत्नी
विदेश में हवाई अड्डे पर
साबित करना होगा नहीं है
वह उड़ाकर लाई कबूतरनी
शादी का एलबम सीडी या कोई
सबूत साथ रखना होगा
यह बताने के लिए
उड़ाकर लाई कबूतरनी नहीं
ब्याह कर लाई पत्नी यही
बार-बार साबित करना होगा
कहना पडेगा चीख-चीख कर'यही है मेरी पत्नी'
कितना हैरान होगा जब कोई
विदेशी पूछेगा
'यह आपकी कौन'
भारतीय कहेगा'पत्नी '
विदेशी पूछेगा'क्या अपनी'
अपने घर में ही उनसे डरते हैं
भला उन विदेशियों से कैसे लड पायेंगे
जब अपने ही समाज के चरित्र पर
लगा दाग वह दिखायेंगे
उनके घर में पलटकर
कैसे पूछ पायेंगे'क्या पराई भी होती है पत्नी'
हवाई अड्डों पर शुरू होगी चेकिंग
'कौन लाया है पत्नी और 'कौन कबूतरनी '
कितनी बार सबूत माँगता है आदमी
अपनी पत्नी से उसके पतिव्रता होने के
वह दिन भी आयेगा जब
पत्निव्रता होने के सबूत उसे
अपने साथ रखने होंगे
हवा में उड़ने से पहले और बाद
उसे कदम-कदम पर
करना होगा साबित
'जो स्त्री मेरे साथ है
उसे लाने का खर्चा मैंने ही उठाया है
कोई नहीं खाया है कमीशन
इसे लाने के लिए इसके
माँ-बाप से भी
लाया हूँ लिखित परमीशन
यह कोई कबूतरनी नहीं
मेरी है अपनी पत्नी'
इस तरह विदेशी दौरे पर आदमी की
जान तो सांसत में रहेगी
हंसती रहेगी पत्नी

Monday, December 17, 2007

नये खेल के नये मदारी

मैंने रास्ते पर कई मदारी देखे हैं जो जोर-जोर से चिल्लाकर लोगों का ध्यान अपनी और आकर्षित करते हैं और फिर कभी बंदरिया का नाच दिखाकर, कभी सांप नेवले की जंग दिखाकर और कभी कुछ अन्य दिखाकर लोगों की जेब से पैसा निकालते हैं-इनमें कुछ खेल दिखाकर बाद में अपनी दवा वगैरह भी बेचते हैं। ऐसे मदारियों को आमतौर से सम्मान की तरह नहीं देखा जाता है।



मैं आजकल टीवी पर चैनलों को देखता हूँ तो मुझे मदारियों और उनके कार्यक्रमों में कोई अंतर नहीं दिखाई देता। खासतौर पर नृत्य और गानों की प्रतियोगिताएं तो मदारियों की तरह ही चलाई जा रहीं है। इसके एंकर इतनी जोर से चिल्लाते हैं जैसे मदारी की तरह अपने आसपास भीड़ एकत्रित करना हो। अगर घर में कोई बैठकर नहीं सुन रहा है तो वह भी आ जाये और कोई टीवी के सामने बैठकर भी कोई देख-सुन नहीं रहा है वह भी देखने लगे शायद इसलिए ही उसके एंकर इतनी जोर से चिल्लाते हैं। प्रतियोगियों को कोइ परिणाम सुनाने से पहले ऐसी धुन बजती है जैसे कोई सस्पेंस का सीन सामने हो और कई बार ऐसे बात की जाती है मानो अभी वह बाहर होने वाला हो फिर उसे रख लिया जाता है। इस तरह वह सारे काम किये जाते हैं जो मदारी करते हैं। इन प्रतियोगिताएं में धर्मवाद, क्षेत्रवाद और भाषावाद का उपयोग इतनी चालाकी से किया जाता है कि कोई समझ ही नहीं सके कि कैसे उनकी प्रशंसा कर एस.एम्.एस.कर उनकी जेब से पैसे निकल रहे हैं।



हालांकि यह भी नये तरह के मदारी हैं पर वहाँ मौजूद प्रतियोगियों के साथ उनके माता-पिता को भी भावुक कर उनकी आंखों से गम और खुशी की आंसू निकलवाकर दर्शकों को बाँध देते हैं। इनको एंकर कहा जाता है और लोग बडे चाव से देखते हैं जबकि इनकी वजह से अपने देश के पुराने मदारियों का काम मंदा होता जा रहा है। समस्या यह है कि कि पुराने मदारियों को देखना या न देखना अपनी इच्छा पर निर्भर था पर यह तो जबरन घर में घुसे हुए हैं। घर के दो सदस्यों को पसंद हो और दो को नहीं तो आखिर इनकों वह भी झेलते हैं जो नहीं देखना चाहते। कुल मिलकार इन्हें नये खेल के नये मदारी ही कहा जा सकता है।

Friday, December 14, 2007

ब्लोगर चाय की दुकान का नहीं तो क्या ब्यूटी पार्लर का उदघाटन करेगा

वह ब्लोगर अपने घर से पैदल्-पैदल सड़क से जा रहा था और एक जगह चायकी दुकान देखकर रुक गया उसने देखा कि दुकान के बाहर रिबन बंधा था पर उसने इस पर ध्यान नहीं दिया और वहां खडे बीडी पी रहे एक आदमी से कहा-''बंधुवर, एक कट चाय बना दो।''
''अभी नहीं बाबूजी''-उस आदमी ने बीडी का धूआं उडाते हुए कहा-''अभी इस दुकान का इनोग्रेशन नहीं हुआ। जब प्रापर ढंग से इनोग्रेशन हो जायेगा तभी काम शुरू करेंगे।''
ब्लोगर ने पूछा -''कब होगा उदघाटन?''
वह फ़िर धूआं छोड़ते हुए बोला- ''उदघाटन नही इनोग्रेशन। आप नैक रुक जाओ हमारे बाबूजी इनोग्रेशन करने वाले को लेने गये हैं। एक बहुत बडे लेखक हैं उनसे यह रिबन कटवाने का काम कराना है।
''उन लेखक महोदय क्या नाम है। और कौन लेने गया है उनको?''ब्लोगर इस फिराक में था कि कुछ मसाला मिल जाये ब्लोग पर लिखने के लिये।
जब उसने नाम बताये तो ब्लोगर के हाथ के तोते उड गये। लेखक के रूप में उसका और उसको लेने गये व्यक्ति के रूप में दूसरे ब्लोगर नाम उसने लिये थे।
ब्लोगर को याद आया कि इसने इस दुकान वाले को उस दूसरे ब्लोगर के घर के आसपास देखा है-उसे यह समझते देर नहीं लगी यह दूकान उसके और ब्लोगर के घर की लगभग बीच की दूरी स्थित है और उसने इस दुकानदार से अपनी जुगाड़ बिठाने के लिए उसका इस्तेमाल करने की योजना बनाई है। अब तो ब्लोगर वहां से खिसकने को हुआ कि किसी तरह इस मुसीबत से निकल जाये। वह अभी कुर्सी से उठा कर ही थोडा चला था कि दूसरा ब्लोगर उसके सामने पहुंच गया और बोला-''वाह यार अच्छा ही हुआ कि तुम यहां मिल गये। अभी मैं तुम्हारे घर से ही वापस लौटा हूं। तुम यार ज़रा इसके चाय की दुकान का इनोग्रेशन कर दो। अपना ही आदमी है। कोई इसके लिये तैयार नहीं हो रहा था मैंने सोचा तुमसे बढिया केंडीडेट और कौन हो सकता है?"
पहले ब्लोगर ने मन ही मन खुश होते हुए कहा-"यार, मैं अदना सा ब्लोगर भला इस सम्मान के योग्य कहां?"
दूसरा ब्लोगर बोला -"चुप हो जाओ। मैने इससे कहा कि तुम बहुत बडे लेखक हो। यह मेरे ससुराल के रिश्ते वाला है और मेरी पत्नि ने उनको ऐसे भर रखा है कि ब्लोगर के नाम से ही चिढ़ने लग्ते हैं।''

पहला ब्लोगर घबडा गया और बोला-"फ़िर तो मैं नहीं करता उदघाटन। अगर कहीं इसे बाद में पता चला तो।"
दूसरा ब्लोगर उसे आश्वासन देते हुए बोला-"नहीं कौन बतायेगा।''
पहले ब्लोगर ने अपने बचाव करने के लिहाज से कहा-''पर क्या तुम्हें ठीक लगता है कि हम किसी चाय की दुकान का उदघाटन करें। अरे कुछ तो ब्लोगरों की इज्जत का ख्याल करो।"

दूसरा ब्लोगर गुस्सा होकर बोला-''धीरे-धीरे ही आदमी प्रगति करता है। वैसे भी क्या कोई ब्लोगर चाय की दुकान का नहीं तो क्या किसी फ़ाईव स्टार ब्यूटी पार्लर का उदघाटन करेगा? एक तो मैं तुम्हारा सम्मान करा रहा हूं और तुम हो कि नखरे दिखा रहे हो।''पहले ब्लोगर ने भी गुस्से से कहा-"तुम खुद ही क्यों नहीं कर लेते?''

दूसरे ब्लोगर फ़िर बडे प्रेम से बोला-''यार मेरा सम्मान तो हो चुका है अब मेरे मन मे यह इच्छा थी कि तुम्हारा सम्मान हो जाये। आओ, चलें अब बहुत टाईम हो गया है।"
पहला ब्लोगर यंत्रवत उसके पीछे उस दुकान पर फिर वापस आया और उसने दुकान का फीता काटा।

वहां मौजूद दोनों दर्शकों ने तालिया बजाईं। दुकान वाले ने चाय बनाई तो तीनों ने पी। पहला ब्लोगर वहां से चला तो दूसरा ब्लोगर पीछे से आया और बोला-"देखो यार, उस बिचारे को कमाई की शुरुआत तो कराते जाओ। तीन चायके उसे बारह रूपये दे दो। वह मेरी इज्जत के कारण मांग तो नहीं पाया"

पहला ब्लोगर्-''पर यार मैने तो एक चाय पी थी।"

दूसरा ब्लोगर बोला-'यार एक दुकान का इनोग्रेशन करने का सम्मान मिलने पर तुम इतना पैसा खर्च नहीं कर सकते। चलो मेरे साथ उसे पैसे दो।

पहला ब्लोगर बोला-''पर मैने तो उसे कट कही थी। तुम तो पूरे तीन कप के पैसे दिलवा रहे हो। कहाँ में दो रूपये कट की चाय पीने आया था और तुम तो बारह रूपये का झटका दिलवा रहे ho।"
दूसरा ब्लोगर''यार कुछ अपनी इमेज का ख्याल करो, अरे इतने बडे ब्लोगर क्या कट चाट पीयेंगे।

पहला ब्लोगर लौट पड़ा और दुकान वाले को बारह रूपये देकर घर की तरह चला तो फ़िर पीछे से दूसरा ब्लोगर आया और बोला-''यार इस ब्लोगर मीट पर भी रिपोर्ट जरूर लिखना।
पहला ब्लोगर गुस्से में बोला-क्या लिखूं यहीं न कि ब्लोगर एक चाय की दूकान का नहीं तो क्या ब्युटी पार्लर का उदघाटन करेगा। ''
दूसरा ब्लोगर उसका गुस्सा देखकर चला गया। उसके जाने के बाद पहले ब्लोगर का गुसा शांत हुआ तब उसे याद आया कि यह तो उससे पूछा नहीं कि इस पर हास्य कविता लिखूं कि नहीं? फ़िर उसने सोचा अगली बार पूछ लूंगा।

नोट-यह एक हास्य व्यंग्य रचना है और किसी घटना या व्यक्ति से कोई लेनादेना नहीं है,अगर किसी की कारिस्तानी से मेल खा जाये तो वही इसके लिए जिम्मेदार होगा।

Wednesday, December 12, 2007

क्रिकेट और फिल्म के हीरो बन रहे हैं जीरो

खिलाडियों का मैदान में खेलना
अब पर्याप्त नहीं
जब तक दर्शकों में हीरो की
छबि अब पहले जैसी व्याप्त नहीं
इसलिए मैदान में लगाओ
किसी हीरो की छाप
फ्लाप होने की तरह बढ़ रहे हीरो
क्रिकेट भी देखते
खिलाडियों को भी
रंगीन चश्में से देखते
फिल्मी दर्शकों को देते सन्देश
उनकी फिल्में भी देखते रहो
क्रिकेट को अभी भी सहते रहो
हिट बनाने का यह नया फार्मूला है
फ्लाप से जोड़ दो फ्लाप
फिल्म में फ्लॉप होने के भय से
क्रिकेट के मैदान में जाते हीरो
रैंप पर कमर नचाते क्रिकेट खिलाड़ी
मैदान में बनाते जीरो
इसलिए फिल्म और क्रिकेट
मिलाकर परोसा जा रहा है पब्लिक के सामें
भले ही दोनों का आपस में कोई नाता नहीं

Sunday, December 2, 2007

कहेका भला आदमी

वह सुबह जाने की लिए घर से निकले, तो कालोनी में रहने वाले एक सज्जन उनके पास आ गए और बोले-''मेरी बेटी कालिज में एडमिशन लेना चाहती है उसे कालेज में प्रवेश का लिए फार्म चाहिये। आपका उस रास्ते से रोज का आना-जाना है। आप तो भले आदमी हैं इसलिए आपसे अनुरोध है कि वहाँ से उसका फार्म ले आयें तो बहुत कृपा होगी।''
वह बोले-''इसमें कृपा की क्या बात है? आपकी बेटी तो मेरी भी तो बेटी है। मैं कालिज से उसका फार्म ले आऊँगा।''

समय मिलने पर वह उस कालिज गए तो वहाँ फार्म के लिए लाइन लगी थी। वह फार्म लेने के लिए उस लाइन में लगे और एक घंटे बाद उनको फार्म मिल पाया। वह बहुत प्रसन्न हुए और घर आकर अपना स्कूटर बाहर खडा ही रखा और फिर थोडा पैदल चलकर उन सज्जन के घर गए और बाहर से आवाज दी वह बैठक से बाहर आये तो उन्होने उनका फार्म देते हुए कहा-"लीजिये फार्म''।
सज्जन बोले-"अन्दर तो आईये। चाय-पानी तो लीजिये।''
वह बोले-"नहीं, मैं जल्दी में हूँ। बिलकुल अभी आया हूँ। फिर कभी आऊँगा।''
सज्जन फार्म लेकर अन्दर चले गए और यह अपनी घर की तरफ। अचानक उन्हें याद आया कि'फार्म भरने की आखरी तारीख परसों है यह बताना भूल गए'।
वह तुरंत लौट गए तो अन्दर से उन्होने सुना कोई कह रहा था-'आदमी तो भला है तभी तो फार्म ले आया ।'
फिर उन्होने उन सज्जन को यह कहते हुए सुना-''कहेका भला आदमी है। फार्म ले आया तो कौनसी बड़ी बात है। नहीं ले आता तो मैं क्या खुद ही ले आता। जरा सा फार्म ले आने पर क्या कोई भला आदमी हो जाता है।"
वह हतप्रभ रह गए और सोचने लगे-'क्या यह सज्जन अगर कह देते कि भला आदमी है तो क्या बिगड़ जाता। सुबह खुद ही तो कह रहा था कि आप भले आदमी हो।''
फिर मुस्कराते हुए उन सज्जन को आवाज दी तो वह बाहर आये उनके साथ दूसरे सज्जन भी थे। वह बोले-''मैं आपको बताना भूल गया था कि फार्म भरने की परसों अन्तिम तारीख है।''

वह सज्जन बोले-'अच्छा किया जो आपने बता दिया है। हम कल ही यह फार्म भर देंगे।''-फिर वह अपने पास खडे सज्जन से बोले''यह भले आदमी हैं। देखो अपनी बिटिया के लिए फार्म ले आये।
वह मुस्कराये। उनके चेहरे के पर विद्रूपता के भाव थे। वह सज्जन फिर दूसरे सज्जन से मिलवाते हुए बोले-''यह मेरा छोटा भाई है। बाहर रहता है कल ही आया है।''
वह मुस्कराये और उसे नमस्ते की और बाहर निकल गए और बाहर आकर बुदबुदाये-'' काहेका भला आदमी!

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