या मन गहि जो थिर रहे, गहरी धूनि गाडि़
चलती बिरियां उठि चला, हस्ती घोड़ा छाडि़
संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि जो अपने मन को स्थिर कर ज्ञान की की गहरी धूनि गाड़ता है वह वही श्रेष्ठ मनुष्य है। मरने के बाद तो सब हाथी, घोड़े और संपदा यही छोड़कर सभी खाली हाथ चले जाते हैं।
दीप गंवायो संग, दूनी न चाली हाथ
पांव कुल्हाड़ी मारिया, मूरख अपने हाथ
संत शिरोमणि कबीरदास के जिन लोगों के साथ रहते हुए आदमी अपना धर्म कर्म छोड़कर सांसरिक कामों में व्यस्त रहता है वे भी अंतकाल में काम नहीं आते। भक्ति और सत्संग छोड़कर केवल सांसरिक कामों में अपना समय बर्बाद करना अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारना जैसी मूर्खता है।
संक्षिप्त व्याख्या-यह एक वास्तविकता है कि बिना भक्ति और सत्संग के मनुष्य के मन को शांति नहीं मिलती। सुबह शाम आदमी अपना समय केवल संसार के पदार्थों क संचय में व्यस्त रहता है। वैसे देखा जाये तो प्रातःकाल का समय अपने तन, मन और विचारों में विकार बाहर निकालने का है पर आदमी सुबह से ही सांसरिक कार्यों में लिप्त होकर या उनकी चर्चा कर उसमें लिप्त हो जाता है। उसे लगता है कि जीवन का आनंद सुबह से उठाना चाहिए। सच तो यह है कि यह आनंद कोई लाभदायक नहीं होता। अगर ऐसा होता तो भला आजकल क्यों लोग मानसिक अवसाद की शिकायत करते हैं। जितना ही सांसरिक कार्यों में व्यस्त होंगे उतना ही मस्तिष्क में तनाव बढ़ेगा। हाड़ मांस के बने इस मस्तिष्क को रात को सोते समय भी चैन नहीं देते और सांसरिक बातों की चर्चा करते या सोचते हुए सोने का प्रयास करते हैं और निद्रा भी ठीक ने नहीं आती। इस तरह अपना पूरा जीवन केवल निरर्थक होता जाता है। इसलिये अपना समय भक्ति और सत्संग में भी अवश्य लगाना चाहिये।
समाधि से जीवन चक्र स्वतः ही साधक के अनुकूल होता है-पतंजलि योग सूत्र
(samadhi chenge life stile)Patanjali yog)
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*समाधि से जीवन चक्र स्वतः ही साधक के अनुकूल होता
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