Wednesday, November 11, 2015

अनुपम खेर के सहिष्णुता मार्च पर ट्विटर (Twitter on Subject march of Anupam Kher) MarchForIndia


            अनुपमखेर के नेतृत्व में देश की प्रतिष्ठा खराब करने वालों के प्रतिकूल  किये गये प्रदर्शन को सहिष्णुता मार्च कहना चाहिये। अनुपमखेर में नेतृत्व में निकलने वाले भारत के लिये मार्च पर सकारात्मक रुख अपनाते हुए उनकी प्रशंसा करना चाहिये। अब यह सवाल तो पूछा ही जायेगा कि एक अभिनेता को देश में असहिष्णु माहौल कैसे दिखेगा जबकि दूसरा उसे नकार रहा है। देश के असहिष्णु माहौल के प्रचार का उत्तर भारत के लिये मार्च से दिया जाना इस बात का प्रमाण है कि देश लोकतांत्रिक रूप से सहिष्णु व परिपक्व है। असहिष्णु वातावरण के प्रचार का भारत के लिये मार्च से जवाब! अनुपम खेरजी की बौद्धिक योजना का जवाब नहीं! इसमें कोई संदेह नहीं है कि भारत के लिये मार्च में एकत्रित भीड़ ने भारत की सहिष्णुता की मर्यादित सीमा भी बता दी है। समस्या यह है कि प्रगतिशील और जनवादी शैली की रचनाओं को राज्य प्रबंध से समर्थन नहीं मिलने वाला। यह कुछ रचनाकार सहन नहीं कर पा रहे।
                                   अनुपमखेर के नेतृत्व में बुद्धिजीवियों के  सहिष्णुता मार्च से भारत की अंतर्राष्ट्रीय पटल पर प्रतिष्ठा बढ़ती है तो अच्छी बात होगी। अनुपम मार्च से  एक बात तय हो गयी कि बौद्धिक दृष्टि से भी सुविधानुसार घटनाओं पर राय कायम की जा सकती है। आपकीबात अनुपम मार्च यह ट्विटर  दिखाई दिया।

भारत में सहिष्णुता के प्रश्न उठाकर कथित बुद्धिमानों ने प्रचार में नाम जरूर पाया पर उनकी छवि देशविरोधी बन रही है। अब तो यह सवाल दिमाग में आता है कि सहिष्णुता का मसला उठाने के पीछे असली वजह क्या है? पर्दे के पीछे का राज बाहर आना चाहिये। आप जोर से चिल्लायें तो यह अभिव्यक्ति का अधिकार है, पर लोग सुनने से इंकार कर दें तो मानना पड़ेगा कि समाज सहिष्णु है। आप चिल्लाकर बोलें यह अभिव्यक्ति का अधिकार है, उसे कोई न सुने यह यह समाज की असहिष्णुता का प्रमाण नहीं हो सकता। समाज में जागरुकता बढ़ी पर चेतना कम हुई है अब कोई कहे तो कहता रहे कि  असहिष्णुता बढ़ी है।
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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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Monday, November 2, 2015

दक्षिणपंथी और राष्ट्रवादी लेखकों को सम्मान देना आवश्यक(Rashtrawadi Dakishinpanthi Lekhkon ko Samman Dena Awashyak)


                                   इंटरनेट पर अनेक दक्षिणंपथी राष्ट्रवादी लेखक सक्रिय हैं, इस दीपावली पर सम्मानित कर जनमानस के हृदय पटल पर स्थापित किया जाये। हम जैसे अध्यात्मिकवादी लेखक मानते हैं कि इससे सम्मान वापसी कर रहे कथित बुद्धिजीवियों के प्रचार को चुनौती दी सजा सकती है।  इनमें से अनेक तो ऐसे हैं जिनके ब्लॉग है जिनमें किसी सामान्य पुस्तक से अधिक रचनायें हैं। यह लोग निष्काम भाव से काम करते हैं। सबसे बड़ी बात यह कि उन्हें अब वैसे ही प्रोत्साहन की आवश्यकता है जैसा कि उनके अनुसार ही जनवादियों और प्रगतिशीलों को मिलता है। इनमें से कुछ लोग सम्मान मिलने पर राष्ट्रीय प्रचार पटल पर आ जायेंगे तो उन्हें अपनी बात कहने के लिये व्यापक क्षेत्र मिलेगा। इससे परंपरागत प्रकाशन जगत का महत्व भी कम होगा और वहां लिख कर सम्मानित लोगों का महत्व भी अधिक नहीं रहेगा।
                                   हम अध्यात्मिकवादी लेखक है अंतप्रेरणा से लिख लेते हैं पर दक्षिणपंथी राष्ट्रवादी लेखकों राजसी समर्थन की आवश्यकता प्रतीत हो।  प्रचार माध्यमों में जो सार्वजनिक  बहस होती है वह राजसी कर्म की श्रेणी के होते हैं।  हमारा मानना है कि राजसी कर्म राजसी बुद्धि और साधनों से संपन्न होते हैं। वहां सात्विक तत्व ढूंढना या रखते हुए दिखना स्वयं को धोखा देना है। राजसी कर्म में जस की तस नीति अपनाना ही श्रेयस्कर है। इन दक्षिणपंथी राष्ट्रवादी लेखकों को अपना अभियान जारी रखने के लिये राजसी समर्थन की आवश्यकता है-यह हमारा विचार है। यहां यह भी स्पष्ट कर दें कि हमारा इसमें कोई निजी स्वार्थ नहीं है। न ही हमारा सम्मान पाने के लिये कोई ऐसा लिख रहे हैं।  हां, यह सही है कि दक्षिणपंथी  राष्ट्रवादी लेखकों से अपनी रचनाओं की वजह से करीबी रही है पर इसका मतलब यह नहीं है कि हमारा  उनमें स्वार्थ है।
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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
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