Saturday, July 19, 2008

रहीम के दोहे-अपने कार्य और व्यवहार में अति न कीजिये

रहिमन अति न कीजिए, गहि रहिए निज कानि
सैंजन अति फूलै तऊ, डार पात की हानि

कविवर रहीम कहते हैं कि कभी भी किसी कार्य और व्यवहार में अति न कीजिये। अपनी मर्यादा और सीमा में रहें। इधर उधर कूदने फांदने से कुछ नहीं मिलता बल्कि हानि की आशंका बलवती हो उठती है

यही रहीम निज संग लै, जनमत जगत न कोय
बैर प्रीति अभ्यास जस, होत होत ही होय


कविवर रहीम कहते हैं कि प्रीति, अभ्यास और प्रतिष्ठा में धीरे धीरे ही वृद्धि होती है। इनका क्रमिक विकास की अवधि दीर्घ होती है क्योंकि यह सभी आदमी जन्म के साथ नहीं ले आता। इन सभी का स्वरूप आदमी के व्यवहार, साधना और और आचरण के परिणाम के अनुसार उसके सामने आता है।

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