१.मन के संयम के बिना कोई दूसरा तप नहीं है, संतोष जैसा कोई सुख और तृष्णा जैसा कोई भयंकर रोग नहीं है और दया जैसा कोई धर्म नहीं है.
२.कोई राजवंश का व्यक्ति मणि रुपी रत्न को पैर की उँगलियों में धारण करे और कांच को सिर पर मुकुट में जड्वाकर धारण करे तो भी मणि का मूल्य कम नहीं हो जाता और बाजार में उसकी कीमत वही रहती है और कांच का मूल्य भी कम ही रहता है.
संक्षिप्त व्याख्या- यहाँ अभिप्राय यह है की किसी गुणी व्यक्ति का उच्च वर्ग के लोग सम्मान न करे तो यह समझ नहीं लेना चाहिऐ कि उसके गुण का कोई मोल नहीं है और उसी तरह दुष्ट व्यक्ति को अगर उसके भय और दुर्गुणों के कारण सम्मान मिलता तो भी उसका कोई मोल नहीं है. वैसे आजकल हम देख रहे हैं कि अनुचित तरीके से धन बटोरने वाले और दूसरों को भय देने वाले लोग समाज में अधिक सम्मान पा रहे हैं. लोग किसी भले की बजाये गुंडे से संबंध रखकर अपने को सुरक्षित समझते हैं पर मन से उनका सम्मान नहीं करते. समाज को अपने रचनात्मक कार्यों के लिए अंतत: गुणी और ज्ञानी व्यक्ति की ही आवश्यकता होती है. वैसे भी जिन्होंने दुष्ट व्यक्तियों का संग किया उन्हें अपने जीवन से हाथ धोना पडा है ऐसे एक नहीं हजारों उदाहरण हमारे सामने हैं.
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समाधि से जीवन चक्र स्वतः ही साधक के अनुकूल होता है-पतंजलि योग सूत्र
(samadhi chenge life stile)Patanjali yog)
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