Saturday, October 24, 2009

रहीम के दोहे-पानी निभाता है दूध से मित्रता (milk and water-rahim ke dohe)

जलहि मिलाइ रहीम ज्यों, कयों आपु सग छीर
अगवहि आपुहि आप त्यों, सकल आंच की भीर।।
भावार्थ-
कविवर रहीम कहते हैं कि दूध अपने साथ पानी को मिलाकर अंतरंग बना लेता है। जब आग की आंच आती है तो पानी अपना साथ निभाते हुए दूध को तब तक बचाता है जब तक स्वयं स्वाह नहीं हो जाता।
जहां गांठ तहं रस नहीं, यह रहीम जग जोय।
मंडप तर की गांठ में, गांठ गांठ रस होय।।
भावार्थ
-कविवर रहीम कहते हैं कि सभी लोग जानते हैं जहां गांठ होती है वहां रस नहीं होता किन्तु विवाह मंडप में गांठ ही गांठ होती है तब भी उसमें रस होता है।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-लोग रिश्ते तो बड़ी आसानी से बना लेते हैं पर निभाने की क्षमता सभी में नहीं होती। स्वार्थ से बने संबंध विपत्ति के समय लापता हो जाते हैं। व्यवसाय और नौकरी वाले स्थानों पर अनेक लोग प्रतिदिन मिलते है। उनके बोलने के तरीके और व्यवहार से ऐसा लगता है कि वह हमारे अच्छी साथी हैं पर यह केवल भ्रम होता है। जब तक सब ठीक है सभी लोग हमेशा ही साथ निभाने का वादा करते हैं पर पर विपत्ति आये तो सभी खामोशी से देखते हैं। अगर उनसे मदद की याचना की जाये तो वह साफ इंकार कर देते हैं। कई तो कह देते हैं कि ‘काम की वजह से हमारी निकठता है। घर के मामले में हम क्या जानते हैं?
इसके अलावा लोग जरा जरा बात पर झगड़कर अपने संबंध खराब कर लेते हैं। तनाव का समय आने वह यह नही सोचते कि थोड़ा सब्र कर समझ के साथ संबंध बढ़ायें। यही कारण है कि आजकल सभी के आसपास मित्रों और रिश्तेदारों की भीड़ है फिर भी लोग अपने अंदर अकेलापन अनुभव करते हैं। लोग यह नहीं समझ पाते कि एक बार विश्वास टूट गया या संबंध में गांठ पड़ गयी तो फिर वह सामान्य नहीं हो सकते।
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संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://rajlekh.blogspot.com
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