Sunday, June 20, 2010

चाणक्य नीति-दृष्टिकोण में भिन्नता स्वाभाविक

एक एव पदार्थस्तु त्रिधा भवति वीक्षितः।
कुणपः कामिनी मांसं योगिभिः कामिभिः श्वभिः।।
हिन्दी में भावार्थ-
नीति विशारद चाणक्य कहते हैं कि एक ही वस्तु को तीन अलग अलग दृष्टि से देखा जाता है। स्त्री का शरीर यागियों के लिये शव के समान, कामियों के लिये सौंदर्य का भंडार तथा कुत्तों के लिये मांस का एक पिण्ड है।
धर्म धनं च धान्यं च गुरोर्वचनमौषधम्।
सुगृहीतं च कर्तव्यमन्यथा तु न जीवति।
हिन्दी में भावार्थ-
धर्म का पालन, धन का अर्जन तथा नाना प्रकार के अन्न का संग्रह गुरु के संदेश तथा विविध प्रकार औषधियों का का सेवन विधि विधान से करना चाहिये। ऐसा न करने पर ही कोई भी व्यक्ति ठीक से नहीं रह सकता।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या- मनुष्य जीवन में सबसे ज्यादा महत्व उसके दृष्टिकोण का है। सच बात तो यह है कि इस दुनियां में कोई वस्तु अच्छी या बुरी नहीं है। महत्वपूर्ण बात यह है कि हमारे देखने का दृष्टिकोण कैसा है? गोबर की बदबू से आदमी त्रस्त हो जाता है पर वही खाद बनाने के काम आता है। मनुष्य का पेशाब कितना बुरा है पर अनेक लोग अपने स्वास्थ्य के लिये उसे प्रातः पीते हैं। चाणक्य महाराज यहां आदमी को अपने दृष्टिकोण को स्वच्छ रखने के लिये सुझाव दे रहे है।
हमारे विचार से दृष्टिकोण अत्यंत महत्वपूर्ण है। अगर आप किसी व्यक्ति में बुराई देखेंगे तो धीरे धीरे उसके प्रति मन में घृणा भाव पैदा होगा। यह बुरा भाव आंखों में परिलक्षित होगा जिसे दूसरा आदमी देखेगा तो उसके मन में भी बुराई का भाव आयेगा। अगर किसी व्यक्ति के प्रति अच्छा भाव रखें तो उसके मन में भी अच्छी बात आयेगी। सच बात तो यह है कि हम अपने ही दृष्टिकोण से अपना संसार बनाते हैं। अपना दृष्टिकोण स्वच्छ न होने पर जब हमारा जीवन कष्टमय होता है तब दूसरों पर दोषारोपण करते हैं। अगर आत्मंथन करें तो पता लगेगा कि अपना संसार हमने अपने मन के संकल्प और दृष्टिकोण से ही बनाया है।  यह अलग बात है कि अज्ञान के कारण उसे समझ नहीं पाते।
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संकलक,लेखक एवं संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://anant-shabd.blogspot.com
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