Monday, October 19, 2009

रहीम के दोहे-दो फांक हो जाने वाला प्रेम न करना ही अच्छा (aisa prem n karen-rahim ke dohe)

रहिमन प्रीत न कीजिए, जस खीरा ने कीन।
ऊपर से तो दिल मिला, भीतर फांके तीन।।
भावार्थ-
कविवर रहीम कहते हैं कि कभी भी खीरे जैसी प्रीति न कीजिए। ऐसी दिखावटी प्रीति से क्या लाभ जिसमें आदमी मन ही मन एक दूसरे से जलते हों।
रहिमन नीच प्रसंग ते, नित प्रति लाभ विकार।
नीर चोरावै संपुटी, भारू सहै धरिआर।।
भावार्थ-
कविवर रहीम के मतानुसार नीच व्यक्ति की संगत या विचार करने से आदमी को नित नये संकटों का सामना करना के साथ ही मानसिक संताप भी झेलना पड़ता है। पानी जलघड़ी की संपुटी चुराता है और उसका दंड घड़ियाला को भोगना पड़ता है।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-सच बात तो यह है कि इस संसार में शायद ही कोई किसी से सच्चा प्रेम करता हो। अधिकतर लोग एक दूसरे से दिखावटी प्रेम करते हैं। वैसे तो प्रेम के गीत बहुत गाये जाते हैं पर क्षणिक आवेश या काम वासना से युक्त आकर्षण में प्रेम का तत्व नहीं मिल सकता। जब तक काम नहीं निकला तब तक लोग एक दूसरे के प्रति प्रेम भाव का प्रदर्शन करते हैं और जैसे ही काम निकला पहचानते नहीं या फिर आपस में झगड़े करने लगते हैं। जिस समय स्वार्थयुक्त प्रेम का भाव चरम पर होता है उस समय लगता है कि लोग एक हैं पर जैसे ही सच सामने आता है उनका झुंड की दो फांक साफ दिखाई देती हैं। सच बात तो यह है कि प्रेम कभी भी स्वार्थ पूर्ति के लिये नहीं होता। जब करें तो ऐसा ही प्रेम करें वरना दिखावा कर एक दूसरे को धोखा देकर अपना नाम न बदनाम करें। निस्वार्थ प्रेम ही जीवन में सहजता का बोध कराता है। स्वार्थ की वजह से हुआ प्रेम उसके पूरा होते ही समाप्त होता है और अगर स्वार्थ नहीं पूरा होता तो उससे मानसिक संताप दिल में छा जाता है।
उसी तरह जीवन में न तो नीच प्रकृत्ति के इंसान से संगत करना चाहिये न विचारों में कलुषिता का भाव रखें। दोनों ही स्थितियां अपने लिये बुरी होती हैं। नीच प्रकृत्ति के आदमी की संगत कभी न कभी अपने साथ संकट लाती है और अगर विचार बुरे हों तो उससे सारी दुनियां ही बुरी लगती है और इससे जीवन का आनंद जाता रहता है।
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संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप, Gwlior
http://rajlekh.blogspot.com
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