Friday, June 6, 2008

भृतहरि शतकःअकारण बैर लेना दुष्टता का प्रतीक

मृगमीनसज्जनानां तृणजलसन्तोष विहितवृत्तीनाम्।
लुब्धकधीवरपिशुना निश्कारणवैरिणोजगति


हिंदी में भावार्थ मृग वन में घास खाकर और मछली जल में उसका सेवन का अपना जीवन शांति के साथ बिताते हैं पर शिकारी और बहेलिये फिर भी उनसे बैर कर उनका जीवन नष्ट करते हैं। ऐसे ही दुष्ट लोगों का स्वभाव होता है कि वह अकारण ही दूसरों से बैर लेकर उनको कष्ट पहुंचाते हैं।

वर्तमान संदर्भ में व्याख्या-आजकल हम पूरे विश्व में आतंकवाद का प्रकोप देख रहे हैं उसका कारण यह है कि उन लोगों की मानसिकता है कि वह अकारण ही दूसरों पर हमला करते हैं। ऐसे दुष्ट लोग स्वयं भी जल्दी नष्ट होते हैं पर जब तक देह धारण करते हैं तब तक दूसरों को कष्ट देते हैं। वैसे हर जगह ऐसे लोगों की बहुतायत है जो दूसरों से बैर लेते हैं पर कई ऐसे लोग भी हैं जो अकारण ही मन में दूसरों के प्रति द्वेष रखते हैं। कई बार कई सामान्य मनुष्यों के मन में भी दूसरे की हानि होते देखने की इच्छा पैदा होती है। ऐसे में सभी लोगों को यह देखना चाहिए कि उनके मन में भी किसी के प्रति द्वेषभाव पैदा न हो। यह ठीक है कि मन में आने से कोई किसी को हानि नहीं पहुंचाता पर आखिर किसी की हानि का भाव मन में भी लाना तो दुष्टता का ही प्रतीक है।

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