Saturday, January 8, 2011

मणि का मूल्य कांच से अधिक ही रहता है-चिंत्तन आलेख (mani ka moolya kaanch se adhik rahega-hindi chinttan alekh)

मनुष्य का यह स्वभाव है कि वह दूसरों से मान और बढ़ाई पाना चाहता है। यही कारण है कि वह अपने अंतर्मन में ज्ञान उसी सीमा तक धारण करता है जिससे दूसरों के सामने अपने को ज्ञानी सिद्ध कर सके। मान पाने की इच्छा श्वान प्रवृत्ति का प्रमाण भी मानी जाती है। जिस तरह श्वान अपने मालिक को खुश करने की इच्छा से उसके आगे पीछे घूमा करता है उसी तरह मनुष्य अपने समुदाय में सम्मान के लिये उसके इर्दगिर्द अपना कर्म संसार बना लेता है जिससे उसकी मानसिकता संकीर्ण हो जाती है। इस प्रयास में न केवल वह ज्ञान के अभ्यास से विरक्त हो जाता है बल्कि अपने नियमित काम में सदाचार नहीं ला पाता। जीवन से लड़ने की उसकी शक्ति का भी हृास होता है। उसे लगता है कि अपने अंदर योग्यता या प्रतिभा का भंडार एकत्रित करने की बजाय सीमित मात्रा की क्षमताओं के माध्यम से ही अपना आत्मप्रचार कर किसी तरह सम्मान पाया जाये।
यह ज्ञान की कमी मनुष्य में आत्मविश्वास की कमी का प्रमाण है। इसके विपरीत कुछ असाधारण लोग सम्मान की परवाह किये बिना ही अपने नियमित कर्म करने के साथ ही भक्ति तथा सत्संग में व्यस्त रहने के साथ ही ज्ञान संचय भी किया करते हैं। उनको पता होता है कि अगर अपने अंदर ही प्रतिभा है तो उसका सम्मान होगा और न ही भी होगा तो वह उसका स्वयं आनंद उठायेंगे। वैसे इस बारे में नीति विशारद चाणक्य का कहना है कि
मकणिर्लुण्ठति पादाग्रे काचः शिरसि धार्यते।
क्रयविक्रयवेलायां काचः काचो मणिमेणिः।।
‘‘मणि यदि पैरों में भी लुढ़कती रहे और कांच को सिर पर धारण कर लिया जाए तब भी बाज़ार में सौदे के दौरान मणि की कीमत कांच से बहुत अधिक ही रहेगी।’’
जिन लोगों को अपने जीवन में सफलता प्राप्त करनी है उनको समय रहते ही अपने अंदर गुणों का संचय करना चाहिये। यह बात सही है कि चाटुकारिता के कारण अनेक लोग कम योग्यता के कारण ही पुज रहे हैं। इतना ही नहीं कला, साहित्य, तथा अन्य क्षेत्रों में गिरोह बन गये हैं जहां सामान्य योग्यता के दम पर ही प्रचार मिल जाता है पर जिससे अपने मन को संतुष्टि मिले तथा जिस काम की इतिहास में जगह दिखे वह केवल प्रतिभाशाली लोगों के हिस्से में ही आता है। इतना ही नहीं योग्य तथा प्रतिभाशाली अपने दम पर हमेशा ही अपना स्थान बनाये रखते हैं उनको किसी पितृपुरुष या मातृमहिला की आवश्यकता नहीं होती।
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संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com

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