Saturday, April 24, 2010

कौटिल्य का अर्थशास्त्र-भंवरा मरने के लिये ही हाथी के कान में ध्वनि करता है (hathi aur bhavra-kautilya darshan)

कौटिल्य का अर्थशास्त्र में कहा गया है कि
-----------------------------------
स्निग्धदीपशिखालोकविलेभितक्लिचनः।
मृत्युमृच्छत्य सन्देहात् पतंगः सहसा पतन्।।

     हिन्दी में भावार्थ-दीपक की स्निग्ध शिखा के दर्शन से जिस पतंगे के नेत्र ललचा जाते हैं और वह उसमें जलकर जान देता है। यह रूप का विषय है इसमें संदेह नहीं है।

गन्धलुब्धो मधुकरो दानासवपिपासया।
अभ्येत्य सुखसंजवारां गजकर्णझनज्झनाम्||

     हिन्दी में भावार्थ-गंध की वजह से लोभी हो चुका दान मद रूपी आसव पीने की इच्छा करने वाला भंवरा सुख का अनुभव कराने वाली झनझन ध्वनि हाथी के कान के समीप जाकर मरने के लिये ही करता है।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-इस संसार में रहकर विषयों से परे तो रहा नहीं जा सकता। देह तथा मन की क्षुधायें इस बात के लिये बाध्य करती हैं जीवन में निरंतर सक्रिय रहा जाये। विषयों से परे नहीं रहा जा सकता पर उनमें आसक्ति स्थापित करना अपने लिये ही कष्टकारक होता है। यही आसक्ति मतिभ्रष्ट कर देती है और मनुष्य गलत काम कर बैठता है।
सच बात यह है कि पेट देने वाले ने उसमें पड़ने वाले अन्न की रचना भी कर दी है पर मनुष्य का यह भ्रम है कि वह इस संसार के प्राणियों द्वारा ही दिया जा रहा है। जो ज्ञानी लोग दृष्टा की तरह इस जीवन को देखते हैं वह विषयों से लिपटे नहीं रहते। कथित रूप से अनेक संत मनुष्यों को विषयों से परे रहने का उपदेश जरूर देते हैं पर स्वयं भी उससे मुक्त नहीं हो पाते। दरअसल विषयों से दूर रहने की आवश्यकता नहंी बल्कि उनमें लिप्त नहीं होना चाहिये। अज्ञानी लोग आसक्ति वश ऐसे काम करते हैं जिनमें उनकी स्वयं की हानि होती है। धनी, बाहूबली, तथा उच्च पदारूढ़ लोगों के पास जाकर चाटुकारिता इस भाव से करते हैं जैसे कि कोई उन पर मुफ्त में कुपा करेगा। नतीजा यह होता है कि उनके हाथ निराशा हाथ लगती है और कभी कभी तो अपमानित भी होना पड़ता है।
      इस संसार में सुंदर दिखने वाली हर चीज एक दिन पुरानी पड़ जाती है। सुखसुविधाओं के साधन चाहे जितने जुटा लो एक दिन कबाड़ में बदल जाते हैं। अलबत्ता यह साधन मनुष्य को आलसी बना देते हैं जो समय आने पर मनुष्य को तब शत्रु लगता है जब विपत्ति आती है क्योंकि उनका सामना करने का सामर्थ्य नहीं रह जाता। अतः जीवन की इन सच्चाईयों को समझते हुए एक दृष्टा की तरह समय बिताना चाहिये।संकलक,लेखक एवं संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior http://anant-shabd.blogspot.com
------------------------

यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द लेख पत्रिका
2.शब्दलेख सारथि
3.दीपक भारतदीप का चिंतन

समस्त ब्लॉग/पत्रिका का संकलन यहाँ पढ़ें-

पाठकों ने सतत अपनी टिप्पणियों में यह बात लिखी है कि आपके अनेक पत्रिका/ब्लॉग हैं, इसलिए आपका नया पाठ ढूँढने में कठिनाई होती है. उनकी परेशानी को दृष्टिगत रखते हुए इस लेखक द्वारा अपने समस्त ब्लॉग/पत्रिकाओं का एक निजी संग्रहक बनाया गया है हिंद केसरी पत्रिका. अत: नियमित पाठक चाहें तो इस ब्लॉग संग्रहक का पता नोट कर लें. यहाँ नए पाठ वाला ब्लॉग सबसे ऊपर दिखाई देगा. इसके अलावा समस्त ब्लॉग/पत्रिका यहाँ एक साथ दिखाई देंगी.
दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका


इस लेखक की लोकप्रिय पत्रिकायें

आप इस ब्लॉग की कापी नहीं कर सकते

Text selection Lock by Hindi Blog Tips

हिंदी मित्र पत्रिका

यह ब्लाग/पत्रिका हिंदी मित्र पत्रिका अनेक ब्लाग का संकलक/संग्रहक है। जिन पाठकों को एक साथ अनेक विषयों पर पढ़ने की इच्छा है, वह यहां क्लिक करें। इसके अलावा जिन मित्रों को अपने ब्लाग यहां दिखाने हैं वह अपने ब्लाग यहां जोड़ सकते हैं। लेखक संपादक दीपक भारतदीप, ग्वालियर

विशिष्ट पत्रिकायें

Blog Archive

stat counter

Labels