Sunday, July 29, 2012

संत कबीर के दोहे-ज्ञान प्राप्त करने वाले रात को सोते भी नहीं है (sant kabir ke dohe-gyai log rat ko bhee nahin sote hain)

            भारतीय दर्शन में अध्यात्म का अत्यंत महत्व है।  पंचतत्वों से बनी हमारी देह में मन, बुद्धि और अहंकार तीन ऐसी प्रकृतियां स्वतः आती हैं जिनसे हम संचालित होते दिखते हैं पर इसे धारण करने वाला आत्मा है जिससे हम परिचित नहीं होते। यही आत्मा अध्यात्म भी कहा जाता है।  इसका ज्ञान ही अध्यात्मिक ज्ञान है। कहने को यह सरल लगता है कि हम अपने आत्मा को जानते हैं पर अगर विषयों में हमारी लिप्तता इतनी अधिक रहती है कि कभी हम यह अनुभव ही नहीं कर पाते कि हम स्वयं ही आत्मा है और यह क्षणभंगुर देह धारण की है जो विषयों में लिप्त होने से हमेशा कष्ट झेलती है।
         सांसरिक विषयों में जो अनुभव होता है उसे ही हम अध्यात्म ज्ञान मान  लेते हैं। यह भ्रम अनेक लोगों पूरी जिंदगी रहता है कि वह बहुत ज्ञानी हैं। जिन लोगों को ज्ञान प्राप्त करने की ललक है वह समय मिलते ही अपना काम शुरु कर देते हैं।  अनेक लोग तो अपना समय निकालकर यह प्रयास करते हैं कि उनको आत्म ज्ञान मिल जाये।
संत कबीर कहते हैं कि
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अनराते सुख सोचना, रातें नींद न आय।
ज्यों जल छूटो भाछरी, तलफत रैन बिहाय।।
               जो लोग आत्मज्ञान प्राप्त करने की सोचते हैं वह रात को सोते भी नहीं है। जो जल में मछली की तरह विषयों मे लिप्त हैं वह रात को आराम से सोते हैं यह अलग बात है कि अंततः वह तकलीफदेह साबित होगा।
मुख आवै सोई कहै, बोलै नहीं विचार।
हते पराई आत्मा, जीभ बांधि तलवार।।
                 जिनके पास ज्ञान नहीं है वह मुख में जो आता है बोल देते हैं।  उनकी बातों से दूसरों की आत्मा आहत होती है। वह अपनी जीभ में एक तरह से तलवार बांधकर चलते हैं।
               आजकल के आधुनिक युग में अध्यात्म की बातें बहुत होती हैं पर उसके ज्ञान का मूल स्वरूप क्या है यह विरले ही जानते हैं। प्रगति के साथ कृत्रिम रौशनी, रंग तथा रवैया बदला है।  लोग इस संसार के आकर्षक पक्ष में मन इस तरह फंसाये हुए हैं कि उनके लिये अध्यात्म ज्ञान एकदम गूढ़ है और वह तो केवल फालतू लोगों के लिये बना है। यही कारण है कि समाज में परस्पर विद्वेष, निंदा तथा शत्रुता के माहौल में सांस ले रहा है। लोगों के लिये कठोर और मजबूत व्यवहार में अंतर नहंी रहा है।  कायरता और धैर्य  की समझ नहीं है।
             हालांकि एकदम निराशाजनक स्थिति भी नहीं है। देश में अभी भी अध्यात्म में रुचि रखने वालों की कमी नहीं है हालांकि जनंसख्या की दृष्टि से यह स्थिति अधिक संतोषजनक मान लेना गलत होगा। आजकल समाज  में आधुनिक सुविधाओं, वस्तुओं तथा संपति का संग्रह करने की होड़ लगी हुई है।  इस स्थित से उबरने के लिये आवश्यक है अध्यात्म ज्ञान प्राप्त करने का अधिक से अधिक लोग प्रयास करें।
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 

Sunday, July 8, 2012

ख़ामोशी में बहुत बड़ी ताकत-चाणक्य नीति

            इस संसार में मनुष्यों को अन्य जीवों की अपेक्षा बुद्धि तथा विवेक की अथाह शक्ति प्राप्त है। इसके परिणामस्वरूप उसमें अहंकार का भाव भी बहुत है। अपनी श्रेष्ठता साबित करने के लिये उसे वाणी के रूप में एक ऐसा हथियार मिला है जिसका उपयोग करते हुए वह कभी नहीं थकता। सच बात तो यह है कि जीभ के साथ कान भी सुनने को मिले हैं पर बहुत कम लोग उसका सार्थक उपयोग करते है। कहीं आप अपने खेत की बात करिये तो दूसरा भी अपने खेत की सुनाने लगेगा। आप अपने व्यापार की चर्चा करें दूसरा बात पूरी से होने पहले ही अपनी कहने लगेगा। अपनी बात को शोर के साथ कहने के आदी मनुष्यों के बीच में बैठकर मौन तो एक बहुत बड़ा शत्रु लगता है। स्थिति यह है कि उत्सवों के अवसर पर भोजन करते हुए लोग भी अपनी वाणी का उपयोग करने से बाज नहीं आते।
नीति विशारद चाणक्य कहते हैं कि
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ये तु संवत्सरं पूर्ण नित्यं मौनेन भुंजते।
युगकोटिसहस्त्रं तु स्वर्गलोके महीयते।।
‘‘जो मनुष्य एक वर्ष तक मौन रहकर बिना बोले भोजन करता है, वह अवश्य ही जीवन में मान सम्मान प्राप्त करने के अलावा बाद में भी स्वर्ग भोगता है।’’
आधुनिक चिकित्साशास्त्री कहते हैं कि भोजन करते समय मौन रहना चाहिये जिससे पेट का हाजमा ठीक रहता है। हालांकि चाणक्य का मानना है कि मनुष्य को अपने जीवन में एक वर्ष मौन भी रखना चाहिए पर हमारा मानना है कि अगर यह संभव नहीं हो तो कम से कम भोजन, स्नान तथा कोई अन्य काम करते समय जहां तक हो सके अपनी इंद्रियों  की शक्ति बढ़ाने के लिये मौन रहना ही श्रेयस्कर है। कुछ विद्वान तो यह भी मानते हैं कि जीवन में जितना मौन रहा जाये उतनी ही शक्ति का अपव्यय कम होता है जिससे सृजनात्मक कार्य करने में सुविधा होती है।
संकलक, लेखक एवं संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर
writer and editor-Deepak Raj Kukreja 'Bharatdeep', Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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