Wednesday, January 25, 2012

पतंजलि योग सूत्र-साधन से सिद्धि में भेद आता है (sadhna se siddhi-patanjali yoga sahitya)

          इस संसार में सभी मनुष्य का जीवन एक जैसा दृष्टिगोचर नहीं होता। इसका कारण यह है कि हर मनुष्य की संकल्प शक्ति प्रथक प्रथक है। वैसे देखा जाये तो मनुष्य इस संसार से जुड़ता है जिसे योग ही कहा जा सकता है। अर्थात योग तो हर मनुष्य कर रहा है पर कुछ लोग अभ्यास के माध्यम से स्वयं ही अपनी सक्रियता तथा परिणाम निर्धारित करते हैं जबकि कुछ मनुष्य परवश होकर जीवन में चलते हैं। जो स्वयं योग करते हैं वह सहज योग को प्राप्त होते हैं जबकि अभ्यास रहित मनुष्य असहज होकर जीवन गुजारते हैं। स्वयं योग करने वालों की सिद्धि भी एक समान नहीं रहती। जिनका संकल्प प्रबल है उनके मानसिक साधन अत्यंत शक्तिशाली होते हैं और उनको सिद्धि तीव्र गति से मिलती है। जिनकी संकल्प शक्ति मध्यम अथवा निम्न है उनको थोड़ा समय लगता है।
                                            पतंजलि योग में कहा गया है कि
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                                            तीव्रसंवेगानामासन्नः।।
             ‘‘जिसके साधन की गति तीव्र है उनकी शीघ्र सिद्धि हो जाती है।’’                                   मृदुमध्याधिमात्रत्वात्तोऽपि विशेषः।।
        ‘‘साधन की मात्रा हल्की, मध्यम और तीव्र गति वाली होने से भी सिद्धि में भेद आता है।’’
                     मुख्य बात यह है कि मनुष्य को अपनी साधना में निष्ठा रखना चाहिए। यह निष्ठा संकल्प से ही निर्मित होती है। जब मनुष्य यह तय करता है कि वह योग साधना के माध्यम से ही अपने जीवन को श्रेष्ठ बनायेगा तब उसका मन अन्यत्र नहीं भटकता, ऐसे में उसका साधन शक्तिशाली हो जाता है। जहां मनुष्य ने यह माना कि अन्य साधन भी आजमाये जायें वहां उसकी साधना क्षीण होती है। जब कोई साधक केवल इसलिये योग साधना करता है कि इससे कोई अधिक लाभ नहीं होगा तब उसका संकल्प कमजोर होता है। एक बात तय है कि अभ्यास करते करते मनुष्य अंततः पूर्ण सहज योग को प्राप्त होता है पर यह उसकी मनस्थिति पर निर्भर है कि वह कितनी तेजी से इस राह पर बढ़ेगा।
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 

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