माया सेती मति मिली, जो सोबरिया देहि
नारद से मुनिवर गले, क्याहि भरोसा तेहि
संता शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि कभी माया के चक्कर में मत पड़ो चाहे वह कितनी भी आकर्षक देह वाली क्यों न हो। इसने तो मुनिश्रेष्ठ नारद तक को भी भ्रमित कर दिया था इसलिए इस पर भरोसा नहीं करना चाहिए।
माया दीपक नर पतंग, भ्रमि भ्रमि माहिं परन्त
कोई एक गुरु ज्ञानते, उबरे साधु सन्त
संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि माया तो जलते दीपक की लौ के समान है है और मनुष्य उन पतंगों की तरह है जो उसके आसपास मंडराते रहते हैं। इसका ज्ञान तो गुरुओं को होता है और कोई संत ही हैं जो इसके मोह से बच पाते हैं।
कबीर माया डाकिनी, सब काहू को खाय
दांत उपारुं पापिनी, सन्तो नियरै जाय।
संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि माया तो एक डायन की तरह है जो अपना शिकार ढूंढकर खा जाती है। यही माया जब सिद्ध संतों के पास जाती है तो वह इसके दांत उखाड़ देते है।
समाधि से जीवन चक्र स्वतः ही साधक के अनुकूल होता है-पतंजलि योग सूत्र
(samadhi chenge life stile)Patanjali yog)
-
*समाधि से जीवन चक्र स्वतः ही साधक के अनुकूल होता
है।-------------------योगश्चित्तवृत्तिनिरोशःहिन्दी में भावार्थ -चित्त की
वृत्तियों का निरोध (सर्वथा रुक ज...
3 years ago