Wednesday, April 9, 2014

विदुर नीति के आधार चिंत्तन लेख-दुर्जन की संगत में सज्जन भी बिगड़ जाता है(vidur neeti-durjan ki sangat mein sajjan bhi bigad jaata hai)



      अक्सर देखा गया है कि लोग अपने संगी साथियों की छवि तथा आचरण को लेकर यह सोचते हुए उदासीन रहते हैं कि इससे उन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। उनको शायद इस बात का ज्ञान नहीं होता कि अंततः मनुष्य पर उसकी संगत का प्रभाव पड़ता ही है।आमतौर से लोग एक दूसरे के प्रति सद्भाव दिखाते ही है। कोई अनावश्यक विवाद नहीं चाहता इसलिये परस्पर मैत्री भाव दिखाना बुरा नहीं है पर दूसरे के कर्म में दोष होने पर उसे न टोकना एक तरह से उसे धोखा देना ही है। संग रहने वाले व्यक्ति का यह दायित्व है कि वह मित्र को उसके कर्म के प्रति सचेत करे पर कोई इसके लिये करने को तैयार नहीं होता।  हालांकि आजकल लोगों की सहनशीलता भी कम हो गयी। कोई अपनी आलोचना को सहजता से नहीं लेता। यदि किसी मित्र ने आलोचना कर दी तो लोग मित्रता तक दांव पर लगाकर उससे मुंह फेर लेते हैं। जिस व्यक्ति में सहनशीलता या वफादारी का भाव नहीं है उससे वैसे भी संपर्क रखना गलत है। यह  सोचना ठीक नहीं है कि असहज या असज्जन व्यक्ति का हम पर प्रभाव नहीं पड़ेगा।
विदुरनीति में कहा गया है कि

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यदि सन्तं सेवति वद्यसंन्तं तपस्विनं यदि वा स्तेनमेव।

वासी था रङ्गबशं प्रयानि तथा स तेषां वशमभ्यूवैति।।

     हिन्दी में भावार्थ-यदि कोई सज्जन, दुर्जन, तपस्वी अथवा चोर की संगत करता है तो वह उसके वश में ही हो जाता है। संगत का रंग चढ़ने से कोई बच नहीं सकता।
      एक बात निश्चित है कि हम जैसे लोगों के बीच उठेंगे और बैठेंगे उनका रंग चढ़ेगा जरूर चाहे उससे बचने का प्रयास कितना भी किया जाये।  किसी से मित्रता करें या किसी की सेवा करें उसके साथ रहते हुए उसके हाव भाव तथा वाणी की शैली का हम पर प्रभाव अवश्य पड़ता है। कई बार हमने देखा होगा कि कुछ लोग अपने संपर्क वाले व्यक्तियों की बोलने चालने की नकल कर  सुनाते हैं। अनेकों के हावभाव और चाल की नकल कर भी दिखाई जाती है। इससे यह बात समझी जा सकती है कि संगत का असर तो होता ही है। यह अलग बात है कि कुछ लोग अपने संगी या मित्र की पीठ पीछे नकल कर मजाक उड़ाते हैं पर सच यह है कि अपने सामान्य व्यवहार में भी उसकी नकल उनसे ही हो जाती है।
      अगर हम चाहते हैं कि हमारी छवि धवल रहे और हम हास्य का पात्र न बने तो सबसे पहले अपनी संगत पर दृष्टिपात करना चाहिये। जीवन में सहजता पूर्वक समय निकालने के लिये यह एक बढ़िया उपाय है कि अपनी निरंतर भलाई का क्रम बनाये रखने के लिये हम ऐसे लोगों से दूर हो जायें जिनसे हमारे आसपास वातावरण विषाक्त होता है।

दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 

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