Wednesday, June 25, 2008

संत कबीर वाणीः दूसरे के मांस से खिचड़ी बेहतर भोजन

खुश खाना खीचड़ी, मांहि पड़ा टुक लौन
मांस पराया खाय के, गला कटावै कौन

संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि खिचड़ी शरीर को स्वस्थ करने वाली होती है जिसमेंं थोड़ा नमक पड़ना होना चाहिए। किसी दूसरे जीवन का मांस खाकर अपना गला कटवाना बेकार है।

कहता हूं कहि जात हूं, कहा जू मान हमार
जाका गला तुम काटि हो, सो फिर काटि तुम्हार

संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि हम जो कह रहे हैं वह बात मान लो जिसका गला तुम काटते हो वह भी समय आने पर (अगले जन्म में भी) तुम्हारा गला काट सकता है।

वर्तमान संदर्भ में व्याख्या-मांसाहार के पक्ष में तर्क देने वाले अक्सर यह तर्क देते हैं कि अगर पशुओं का मांस नहीं खाया जाये तो वह इतनी संख्या में हो जायेंेगे कि मनुष्य का जीना ही दुश्वार हो जायेगा। यह मूर्खतापूण तर्क है। अपने पापों की वजह से कुछ जीव पशुओं के रूप में जन्म लेते हैं और वह अपने भोजन की वजह से दूसरें के मांस पा निर्भर रहते हैं। वह इस धरती पर प्रकृति का संतुलन स्थापित करने के लिए पर्याप्त हैं। यह अलग बात है कि मनुष्य ने वनों का क्षेत्र संकुचित कर दिया है औरा शेर, चीता, बाघ और अन्य पशु अब गिनती के लिये ही रह गये हैं। कुछ विद्वान तर्क देते हैं कि जो जीभ बिना निकाले पानी पीते हैं वह शाकाहारी होते हैं। मनुष्य भी ऐसा ही जीभ है अतः उसे मांसाहार से बचाना चाहिए। मांसाहार के समर्थन मेंं एक कथित विद्वान ने बेकार तर्क दिया था कि हमारी आतें मांसाहार को पचा सकतीं हैं इसलिये हमें मांस खाकर प्रकृति को अपना जीवन उपहार के रूप में देने के लिये पशुओं का मांस खाना चाहिए ताकि उसका संतुलन बना रहे।
स्वास्थ्य विज्ञान ने इस बात की पुष्टि कर दी है कि आदमी की आंतों को मांस खाने से भारी तकलीफ होती है।

जब पेट खराब होता है तो खिचड़ी से शरीर को भारी लाभ होता है अतः यह समझना चाहिए कि हमारी देह में अनेक विकास खाने से उत्पन्न होते है और मांस के बारे में यह कहना कठिन है कि वह किसी स्वस्थ पशु का है या नहीं। ऐसे में बीमारियों का खतरा तो रहता ही है और यह पाप अनवरत चलता है। हो सकता है किसी पशु का मांस विकृत हो और पेट में जाकर वह ऐसा विकास उत्पन्न करे जो मनुष्य को अपनी जान देनी पड़े। यह विचार करना चाहिए। अंततः यह समझ लेना चाहिए कि मांस खाने के दुष्परिणाम होते ही हैं।

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