‘पाकिस्तान से छीना ताज, शहीदों को श्रद्धांजलि’ जैसे शीर्षक देकर हमारा मीडिया यह साबित करना चाहता है कि वह देशभक्ति भी चतुराई से बेचता है। कानपुर टेस्ट में भारत की न्यूजीलैंड पर जीत का पाकिस्तान से बस इतना ही लेनादेना है कि विश्व की टेस्टमैच रैकिंग में वह एक नंबर से दूसरे नंबर पर आ गया है। हम तो यह भी कहते हैं कि यह विजय अगर पाकिस्तान पर होती तो भी शहीदों के खून का बदला इसे नहीं माना जा सकता था। हालांकि समाचारों के अनुसार भारतीय सैनिकों ने सीमा पर हिसाब किताब बराबर करने की कार्यवाही शुरु कर दी है और सच तो यह है कि वही अपने साथियों की शहादत का बदला ले सकते हैं। क्रिकेट या हॉकी में हराना कोई बदला नहीं होता है।
पाकिस्तान ने यह नंबर भी अब दो चार दिन पहले इंग्लैंड को हराकर प्राप्त किया था। इस तरह की उठापटक एकदिवसीय तथा बीसओवरीय क्रिकेट मैचों की रैकिंग में भी होती रहती है। अन्य खेलों में खिलाड़ियों की इसी तरह की रैकिंग होती है जिसमें कभी कभी बेहतर से बेहतर खिलाड़ी भी निजी कारणों से जब अधिक मैच नहीं खेलता तब वरीयता सूची में उसका स्थान नीचे आ जाता है जिसे समय आने पर फिर प्राप्त करता है। खिलाड़ियों व उनके प्रशंसकों के लिये रैकिंग कोई महत्व नहीं होता।
पाकिस्तान का बौद्धिक समाज एक वर्ग चाहता था कि नवाज अपने भाषण में आतंकवाद के साथ उरी की घटना की निंदा करें पर वह केवल कश्मीर में भारत तक आरोप लगाने तक सीमित रहे। दरअसल नवाज शरीफ ने राहिल शरीफ का तैयार किया हुआ भाषण पढ़ा। वहां के सैन्य अधिकारी देश की बजाय अपने भविष्य को लेकर चिंतित हैं जो केवल कश्मीर मुद्दे पर ही टिका है। पाकिस्तानी चैनलों की बहस को देखें तो वहां बौद्धिक समाज और सेना के बीच मतभेद हैं पर वक्त डरते और शब्द चबाते हुए अपनी बात कह रहे हैं।