Friday, April 16, 2010

मनुस्मृति-जुआ और सट्टा राष्ट्र में डकैती के समान (juaa aur satta desh ke liye bura-manu smruti)

प्रकाशमेतत्तास्कर्य यद्देवनसुराहृयौ।
तयोर्नित्यं प्रतीवाते नृपतिर्यत्नवान्भवेत्।।
हिन्दी में भावार्थ-
द्युत और समाहृय (जुआ और सट्टा)दिनदहाड़े डकैती के समान माने जाने चाहिए। यह देवता और असुर दोनों का विनाश कर देते हैं। अतः राज्य को इन पर रोक लगाने का प्रयास करना चाहिए।
एते राष्ट्रे वर्तमाना राज्ञः प्रच्छन्नतस्कराः।
विकर्म क्रियवानित्य वाधन्ते भद्रिकाः प्रजाः।
हिन्दी में भावार्थ-
जुआ तथा सट्टे में लोग राज्य के लिये एक तरह से प्रच्छन्न डाकू की तरह होते हैं। इससे खिलाड़ियों में शत्रुता बढ़ती है। अतः विवेकवान लोगो को ऐसे खेलों से दूर रहना चाहिए जिसमे जुआ या सट्टा खेला जाता है।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-पश्चिम की आधुनिक सभ्यता को शायद यहां लाया ही इसलिये आ गया है कि यहां की प्राचीन संस्कृति, संस्कार तथा राजकीय नीति को विलोपित कर असुरों का राज्य कायम किया जाये। पश्चिम के अनेक देशों में जुआ और सट्टा वैध माना जाता है। इतना ही नहीं अनेक शहर तो अपने जुआघरों के कारण ही विश्व में लोकप्रिय हैं। इससे पूंजीपति वर्ग आसानी से पैसा कमाता है। यही कारण है कि धीरे धीरे भारत के प्राचीन ग्रंथों के संदेशों को अप्रासंगिक कहकर उनको आम शिक्षा से बाहर कर दिया गया। विदेशों की विचारधारायें यह लायी गयी जो कि मनुष्य में आत्म नियंत्रण पैदा करने की बजाय उसे डंडे के जोर पर नियंत्रित करने की प्रवर्तक हैं। राज्य के लिये वैचारिक स्वरूप कैसा भी हो पर उसमें ईमानदारी का कोई स्थान नहीं रह गया है। ऐसा लगता है कि विदेशी आक्रांता यहां पहले चरित्र को तहस नहस कर यहां के लोगों का आर्थिक दोहन करने के लिये ऐसे विचारक लाये जो आम आदमी को केवल हाथ उठाकर भगवान की तरफ ताकने के लिये प्रेरित करे रहे और समाज सुधार और कल्याण का जिम्मा राज्य पर छोड़ दिया। कहने को तो कहते हैं कि मुगल और अंग्रेज यहां पर आधुनिक सभ्यता लाये पर सच यह है कि इनके आने के बाद इस देश में शोषण, जुआ तथा हिंसा की मनोवृत्ति बढ़ी है क्योंकि उसके बाद ही भारत के प्राचीन ग्रंथों से यहां के लोगों के विरक्त करने की योजनायें बनीं
आजकल तो हालत यह है कि अनेक खेलों में सट्टे का बोलाबाला हो गया है। टेनिस, फुटबाल, कार रेस, घुड़दौड़, कुश्ती तथा क्रिकेट में अनेक बार सट्टे की बात सुनाई देती है। अनेक विदेशी खिलाड़ी तो स्वयं ही सट्टा चलाने वाली कंपनियों से जुड़े हैं। हैरानी की बात यह है कि भारत में उनकी पैठ हो गयी है। जुआ और सटटे के लिये मनुस्मृति में कठोर प्रावधान है और शायद इसलिये ही इसके कुछ विवादास्पद श्लोक(कुछ लोग मानते हैं कि वह मनु द्वारा रचित नहीं है) रटकर सुनाये जाते हैं कि उसमें महिलाओं, दलितों तथा अन्य कमजोर वर्गों के लिये अपमान भरा पड़ा है ताकि लोग इसे पढ़कर यह न समझें कि जुआ और सट्टा कितने बड़े अपराध है। आधुनिक शिक्षा के बाद जिस तरह भारत में अपराध बढ़े हैं उससे तो यही लगता है कि उसको जारी रखने के लिये वह वर्ग प्रयत्नशील है जो बुरे धंधों में लिप्त रहकर आसानी से पैसा कमाना चाहता है। सट्टा और जुआ को डकैती जैसा जुर्म माना गया है पर पाश्चात्य सभ्यता को अंगीकार कर चुका हमारा समाज उसे एक फैशन मानकर उसके दुष्परिणामों से अनभिज्ञ हो गया है।
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संकलक,लेखक एवं संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://anant-shabd.blogspot.com
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