Saturday, November 20, 2010

पतंजलि योग विज्ञान-दूसरे के चित्त का ज्ञान होना संभव (patanjali yoga vigyan-doosre ke chitta ka gyan sanbhav)

प्रत्ययस्य परचितज्ञानम्
हिन्दी में भावार्थ-
चित्त की वृत्ति का ज्ञान होने पर दूसरे के चित्त को भी जाना जा सकता है।
न च तत्सालब्बनं त्साविषयीभूतत्वात्।
हिन्दी में भावार्थ-
किन्तु वह ज्ञान आलम्बनसहित नहीं होता क्योंकि वह योगी के चित्त का विषय नहीं है। मतलब यह कि दूसरा किसी वस्तु पर चिंतन कर रहा है इसका आभास नहीं होता।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-योगी अपने योगासन, ध्यान, प्राणायाम तथा मंत्रजाप का अभ्यास करते हुए अपने चित्त का साक्षात्कार करने लगते हैं। इस साक्षात्कार से उनके दूसरों के चित्त की भी सारी वृत्तियों का स्वरूप उनकी समझ में आ जाता है। इसी आधार पर वह अपने व्यवहार और संपर्क में पास आने वाले लोगों के चित्त की भावनाओं का आभास करने लगते हैं पर वह उसके अंदर चल रही भौतिक विषय का आभास नहीं करते। कोई व्यक्ति अपने साथ व्यवहार में बेईमान करने वाला है यह तो समझ में आ जाता है पर इससे वह कौनसा भौतिक लक्ष्य वह प्राप्त करना चाहता है इसका आभास नहीं होता। किसी ने ठगी कि या भ्रष्टाचार किया इसका पता चल जाता है पर उसने अपने लिये कौनसा सामान जुटाया यह पता नहीं लगता। मतलब यह कि दूसरे के चित्त की अभौतिक वृत्ति जानने तक ही उस ज्ञान की एक सीमा है।
प्रसंगवश हम यहां धूर्त तांत्रिकों की भी बात कर लें जो कहीं बच्चा खो जाने या धन चोरी हो जाने पर उसका पता बताते हैं। यह उनके लिये संभव नहीं है। जब बड़े बड़े योग में पूर्णता प्राप्त करने वाले योगी भी इतना भौतिक आभास नहीं पा सकते तो वह ढोंगी तांत्रिक यह काम कैसे कर सकते हैं। हां, इतना अवश्य है कि योगी अन्य मनुष्य की वाणी, चाल चलन तथा विचारों से उसके व्यक्तित्व और भावना का मूल्यांकन आसानी से कर लेते हैं और उसके अनुसार ही उससे व्यवहार और संपर्क की सीमा तय करते हैं।
---------------------
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com

यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द लेख पत्रिका
2.शब्दलेख सारथि
3.दीपक भारतदीप का चिंतन

समस्त ब्लॉग/पत्रिका का संकलन यहाँ पढ़ें-

पाठकों ने सतत अपनी टिप्पणियों में यह बात लिखी है कि आपके अनेक पत्रिका/ब्लॉग हैं, इसलिए आपका नया पाठ ढूँढने में कठिनाई होती है. उनकी परेशानी को दृष्टिगत रखते हुए इस लेखक द्वारा अपने समस्त ब्लॉग/पत्रिकाओं का एक निजी संग्रहक बनाया गया है हिंद केसरी पत्रिका. अत: नियमित पाठक चाहें तो इस ब्लॉग संग्रहक का पता नोट कर लें. यहाँ नए पाठ वाला ब्लॉग सबसे ऊपर दिखाई देगा. इसके अलावा समस्त ब्लॉग/पत्रिका यहाँ एक साथ दिखाई देंगी.
दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका


इस लेखक की लोकप्रिय पत्रिकायें

आप इस ब्लॉग की कापी नहीं कर सकते

Text selection Lock by Hindi Blog Tips

हिंदी मित्र पत्रिका

यह ब्लाग/पत्रिका हिंदी मित्र पत्रिका अनेक ब्लाग का संकलक/संग्रहक है। जिन पाठकों को एक साथ अनेक विषयों पर पढ़ने की इच्छा है, वह यहां क्लिक करें। इसके अलावा जिन मित्रों को अपने ब्लाग यहां दिखाने हैं वह अपने ब्लाग यहां जोड़ सकते हैं। लेखक संपादक दीपक भारतदीप, ग्वालियर

विशिष्ट पत्रिकायें

Blog Archive

stat counter

Labels