Friday, January 23, 2009

विदुर नीति:धर्मप्रिय लोग शुष्क वाणी नहीं बोलते

1.दूसरों के अभद्र शब्द सुनकर भी स्वयं उन्हें न कहे। क्षमा करने वाला अगर अपने क्रोध को रोककर भी बदतमीजी करने वाले का नष्ट कर और उसके पुण्य भी स्वयं प्राप्त कर लेता है।
2.दूसरों से न तो अपशब्द कहे न किसी का अपमान करें, मित्रों से विरोध तथा नीच पुरुषों की सेवा न करें।सदाचार से हीन एवं अभिमानी न हो। रूखी तथा रोष भरी वाणी का परित्याग करं।
3.इस जगत में रूखी या शुष्क वाणी, बोलने वाले मनुष्य के ही मर्मस्थान हड्डी तथा प्राणों को दग्ध करती रहती है। इस कारण धर्मप्रिय लोग जलाने वाली रूखी वाणी का उपयोग कतई न करें।
4.जिसकी वाणी रूखी और शुष्क है, स्वभाव कठोर होने के साथ ही वह जो दूसरों के मर्म कटु वचन बोलकर दूसरों के मन पर आघात और मजाक उड़ाकर पीड़ा पहुंचाता है वह मनुष्यों में महादरिद्र है और वह अपने साथ दरिद्रता और मृत्यु को बांधे घूम रहा है।
5.कोई मनुष्य आग और सूर्य के समान दग्ध करने वाले तीखे वाग्बाणों से बहुत चोट पहुंचाए तो विद्वान व्यक्ति को चोट खाकर अत्यंत वेदना सहते हुए भी यह समझना चाहिए कि बोलने वाला अपने ही पुण्यों को नष्ट कर रहा है।
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