Saturday, December 3, 2011

मलूकदास के दोहे-सुदंर शरीर देखकर बहको मत (malukdas ke dohe-sundar sharir dekhkar bahako mat)

           हमारे अध्यात्मिक ज्ञान के अनुसार इस संसार में समस्त दृश्यव्य वस्तुऐं नश्वर हैं। बाकी की बात क्या करें यह प्रथ्वी, सूर्य, चंद्रमा और अन्य ग्रह भी नश्वर माने गये हैं। आधुनिक विज्ञान भी यह मानता है कि प्रथ्वी और इस पर विचरण करने वाले समस्त जीवों के साथ ही अन्य ग्रहों का भी एक जीवन है जो अंततः नष्ट होता है। अमेरिकन वैज्ञानिकों ने तो एक ब्लैकहोल का पता भी लगाया है जो प्रतिदिन सैंकड़ों तारों को लील जाता है। कहने का अभिप्राय यह है कि यहां कुछ भी स्थिर नहीं है।
            इस संसार में विचरण करने वाले समस्त प्राणियों की देह भले ही बाहर से आकर्षण लगती है पर अगर उसे आधुनिक सूक्ष्म यंत्रों से देखा जाये तो अंदर का ढांचा अत्यंत गंदगी भरा रहता है। वहां हड्डियां, रक्त, कीचड, और मांस के टुकड़ों के साथ कीड़े मकौड़े रैंगते दिखाई देते हैं। कम से कम अंदर का दृश्य दर्शनीय नहीं होता। इतना ही नहीं समय के अनुसार सभी की देह पतन की तरफ बढ़ती जाती है। इसके बावजूद अनेक लोग सुंदर देह के अनेक दीवाने हैं। कुछ मनुष्यों को अपनी सुंदर देह पर अत्यंत अहंकार भी रहता है। हमारे अध्यात्मिक महर्षि सदैव इस तरफ ध्यान दिलाते रहे हैं कि यह मनुष्य देह जहां नश्वर है वहीं आत्मा अमर है अतः मनुष्य को योग ध्यान तथा जाप से स्वयं पर नियंत्रण करना चाहिए।
मलूकदास कहते हैं कि
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सुंदर देही देखि कै, उपजत है अनुराग।
मढ़ी न होती चाम की, तो जीवन खाते काम।।
          ‘‘मनुष्य का स्वभाव है कि वह किसी भी सुंदर शरीर को देखकर उससे प्रीति करने को लालाचित होने लगता है जबकि इसमें मांस, खून और हड्डी भरे हुए हैं। अगर इस कचड़े के ऊपर यह देह न हों तो कौऐ इसे जीते जी खाने लगें।
सुंदर देही पाइ कै, मत कोइ करै गुमान।
काल दरेरा खायगा, क्या बूढ़ा क्या जवान।।
            ‘‘सुंदर शरीर पाकर किसी को इतरना नहीं चाहिए। आदमी बूढ़ा हो या जवान काल किसी को भी खा सकता है।’’
         हम देख रहे हैं कि हमारे देश में आधुनिक शिक्षा तथा मनोरंजन के साधनों की वजह से पूरा समाज अपने अध्यात्मिक ज्ञान को भूलकर माया तथा सौंदर्य के पीछे भाग रहा है। ऐसा लगता है कि लोगों ने अक्ल के द्वारा बंद कर दिये हैं। ऐसे में भारतीय अध्यात्मिक ज्ञान पर दृष्टिपात करते है तो लगता है कि अज्ञानियों का झुंड चहुं ओर फैला है। स्थिति यह है कि स्त्रियों के नग्न चित्रों को देखने के लिये लोग मरे जा रहे हैं। जिन लोगों को तत्वज्ञान है वह ऐसी स्थिति में हंसते हैं।
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 

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