Tuesday, December 22, 2009

श्रीगुरुग्रंथ साहिब संदेश- हृदय में धारण किये बिना राम नहीं मिलते (ram ka nam-shri gurugranth sahib)

‘राम-राम करता सभ जग फिरै, राम न पाया जाये।
गुरु कै शाब्दि भेदिआ, इन बिध वसिआ मन आए।।’
हिन्दी में भावार्थ-
श्री गुरु ग्रंथ साहिब के अनुसार केवल जीभ से राम का नाम लेने से परमात्मा प्राप्त नहीं होते जब तब गुरुओं के शब्द ज्ञान से विधिपूर्वक उनको अपने दिल में न बसाया जाये। गुरु के द्वारा प्राप्त ज्ञान ही परमात्मा के भेद का पता सकता है।
‘दुर्लभ देह पाई बड़भागी।
नाम न जपहि ते आत्मघाती।
हिन्दी में भावार्थ-
श्री गुरु ग्रंथ साहिब के अनुसार परमपिता परमात्मा की कृपा से ही यह मनुष्य यौनि मिली है और जो उसका नाम नहीं लेता वह एक तरह से आत्मघाती है।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-अगर हम अपने देश के लोगों की दिनचर्या का देखें तो भगवान का नाम जितना यहां लिया जाता है अन्यत्र कहीं दिखाई नहीं देगा। अनेक लोगों को यहां धर्म के नाम पर होने वाले सार्वजनिक कार्यक्रम बहुत गौरव का प्रतीक लगते हैं। जबकि हमारे समाज का यह कालापक्ष भी है कि हमारे देश का भ्रष्टाचार की दृष्टि से विश्व में बहुत ऊंचा स्थान है। इतना ही नहीं विवाह जैसे पवित्र संस्कार में खुलेआम दहेज का लेन देन होता है। अगर आप बड़ी राशि में दहेज लेने और देने वालों पर दृष्टिपात करें तो यकीनन वह पैसा उनके पास एक नंबर से नहीं आया होता। देश का पूरा समाज पैसे की दौड़ में केवल इसलिये नहीं शामिल कि उसे रोटी खाना है बल्कि इसके पीछे सोच यही होती है कि अधिक पैसा है तो बेटे की शादी में अच्छा दहेज मिले ओर अगर बेटी है तो उसका बड़े घर में विवाह करवायें। यह दहेज रूपी भ्रष्टाचार समाज का एक बहुत बड़ा हिस्सा है। कहने का तात्पर्य यह है कि लोग धर्म और समाज के नाम पर दिखावा करते हैं। सच तो यह है कि दिखावे की भक्ति बहुत है। लोग जुबान से खाली नाम लेकर यह समझते हैं कि भगवान पर अहसान किया।

धर्म,अध्यात्म तथा भक्ति का सही ज्ञान लोगों को नहीं है। यह सच है कि अध्यात्मिक अभ्यास और भक्ति नितांत एकाकी प्रक्रिया है पर उससे जो ज्ञान और शक्ति हमें प्राप्त हो उसे दूसरे भी लाभान्वित हों-यह आवश्यक है। इसके विपरीत लोग सार्वजनिक रूप से अध्यात्मिक अभ्यास तथा भक्ति का दिखावा करते हुए केवल प्रतिष्ठा अर्जित करने के लिये प्रयास करते हैं। अतः यह जरूरी है कि भगवान का नाम लेने के साथ ही उसके स्वरूप और गुणों को हम अपने अंतर्मन में स्थापित करें।
संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://anantraj.blogspot.com
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