Saturday, September 27, 2014

तन मन के साथ ही साधना और कर्म के स्थान की शुद्धि आवश्यक-2 अक्टूबर गांधी जयंती पर स्वच्छता अभियान के लिये विशेष लेख(tan man ke sath he sadhan aur karma ke sathan ke shuddhi awashayak- 2 october gandhi jayanti par swachchhata abhiyan ke liye vishesh hindi lekh, clean and green city nececary-A Special hindi religion thought article on gandhiji's birth day)




                    देश में 2 अक्टूबर महात्मा गांधी की जयंती दिवस से स्वच्छता अभियान प्रारंभ होने वाला है। हमारी आधुनिक शिक्षा पद्धति में भारतीय अध्यात्मिक दर्शन नहीं पढ़ाया जाता इसलिये लोग अपनी प्राचीन मान्यताओं का ज्ञान नहीं रखते।  हमारे अधिकतर प्राचीन ग्रंथों ने दैहिक तथा मानसिक स्वच्छता के साथ ही कर्म के स्थान की स्वच्छता पर भी जोर दिया है। यह अलग बात है कि हमारे प्रचार माध्यमों में अक्सर हमारे देश में सार्वजनिक स्थानों, मार्गों तथा उद्यानों में भारी गदंगी होने के समाचार आते हैं। अनेक पुराने लोग यह शिकायत करते मिलते हैं जो राजतंत्र के समय शहर के साफ होने की बात कहते हुए आधुनिक लोकतंत्र में व्यवस्था चौपट होने का दावा करते हैं पर सच यह है कि उस समय उपभोग की ऐसी प्रवृत्ति नहीं थी जैसी कि आज है।  लोगों का खान पान अब घर से अधिक बाहर हो गया है।  अंडे, मांस, सिगरेट, शराब, तथा तैयार  खान पान के सामानों का उपभोग बाजारों में धड़ल्ले से होने लगा है जिससे कचरे का भंडार कहीं भी देखा जा सकता है।  ऐसा नहीं है कि बाजारों में ऐसी वस्तुओं का उपभोग बढ़ा हो वरन् लोग घरों में मंगवाकर भी इन्हें सड़क पर ही फेंकते हैं।
            वर्षा ऋतु में पिकनिक मनाने की परंपरा बन गयी है, यह अलग बात है कि यही ऋतु भोजन के पाचन की दृष्टि से संकटमय मानी जाती है।  आजकल पंचसितारा निजी चिकित्सालयों में इसी ऋतु में भीड़ लगती है।  हर जगह कचरा कीचड़ में तब्दील हो जाता है और इससे महत्वपूर्ण जलस्थल तथा उद्यान सामान्य पर्यटकों के सामने बुरे दृश्य लेकर उपस्थित रहते हैं।  कहा जाता है कि प्लास्टिक कभी नष्ट नहीं होती मगर सभी वस्तुओं को इसी में बांधकर उपभोक्ता को दिया जाता है। अनेक शहरों में  इस प्लास्टिक ने सीवर लाईनों को अवरुद्ध करने के साथ ही नदियों और नालों को प्रदूषित कर दिया है।  हमारे यहां पर्वतों तथा नदियों को पूज्यनीय बताया जाता है पर हिमालय और उससे निकलने वाली नदियों पर जाने वाले कथित भक्तों ने किस तरह वहां अपनी उपभोग प्रवृत्तियों से प्रदूषण फैलाया है उस पर अनेक पर्यावरण विशेषज्ञ नाखुशी जताते रहते हैं।
मनुस्मृति में कहा गया है कि

-----------

समुत्सृजेद्राजमार्गे यस्त्वऽमध्यमनापदि।

स द्वौ कार्यापर्णे दद्यादमेध्यं चाशुशेधयत्।।

            हिन्दी में भावार्थ-सार्वजनिक मार्ग पर कूड़ा फेंकने वाले ऐसे नागरिक जो अस्वस्थ न हों उन पर अर्थ दंड देने के साथ ही उसकी सफाई भी करवाना चाहिये।

आपद्गतोऽधवा वृद्धो गर्भिणो बाल एव वा।

परिभाषणमर्हन्ति तच्च शोध्यमिति स्थितिः।।

            हिन्दी में भावार्थ-यदि कोई संकट ग्रस्त, वृद्ध, गर्भवती महिला तथा बालक सड़क पर कचरा फैंके तो उसे धमकाकर सफाई कराना चाहिये।
            हमारे देश में मनस्मृति का विरोध एक बुद्धिमानों का समूह करता है। यह समूह कथित रूप से आम आदमी की आजादी को सर्वोपरि मानता है।  उस लगता है कि मनुस्मृति में जातिवादी व्यवस्था है जबकि सच यह है कि इसमें ऐसे अनेक महत्वपूर्ण संदेश है जो आज के समय भी अत्यंत प्रासांगिक हैं। एक तरफ समाज प्लास्टिक के रंग बिरंगे रूपों में बंधे सामानों को देखकर विकास पर आत्ममुग्ध हो रहा है  जबकि अनेक प्रकार के विषाक्त, मिलावटी तथा सड़े खानपान से जो बीमारियां पैदा हो रही हैं उस पर किसी का ध्यान नहीं है।  उससे अधिक यह महत्वपूर्ण बात है कि अनेक लोग सार्वजनिक स्थानों को स्वच्छ रखने की बजाय वहां कचरा डालकर न केवल अपने लिये वरन् दूसरों को भी कष्ट देते हैं।  इसलिये जागरुक लोगों को इस बात पर ध्यान देना चाहिये कि वह कचरा उचित स्थान पर डालकर पुण्य का काम करें।

दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 

Saturday, September 20, 2014

राज्यकर्म में लगे लोगों में धूर्तता का भाव आ ही जाता है-मनुस्मृति के आधार पर चिंत्तन लेख(rajya karma mein logon mein dhoortata ka bhav aa hi jata hai-A Hindu hindi religion thought based o manu smriti)



      हमारे देश में लोकतांत्रिक प्रणाली अवश्य है पर यहां की राज्य प्रबंध व्यवस्था वही है जो अंग्रेजों ने प्रजा को गुलाम बनाये रखने की भावना से अपनायी थी। उन्होंने इस व्यवस्था को इस सिद्धांत पर अपनाया था कि राज्य कर्मीं ईमानदार होते हैं और प्रजा को दबाये रखने के लिये उन्हें निरंकुश व्यवहार करना ही  चाहिये।  राजनीतिक रूप से देश स्वतंत्र अवश्य हो गया पर जिस तरह की व्यवस्था रही उससे देश में राज्य प्रबंध को लेकर हमेशा ही एक निराशा का भाव व्याप्त  दिखता रहा है।  इसी भाव के कारण  देश में अनेक ऐसे आंदोलन चलते रहे हैं जिनके शीर्ष पुरुष देश में पूर्ण स्वाधीनताा न मिलने की शिकायत करतेे है।

मनुस्मृति में कहा गया है कि

-------------

शरीकर्षात्प्राणाः क्षीयन्ते प्राणिनां यथा।

तथा राज्ञामपि प्राणाः क्षीयन्ते राष्ट्रकर्षणात्।।

     हिन्दी में भावार्थ-जिस प्रकर शरीर का अधिक शोषण करने से प्राणशक्ति कम होती उसी तरह जिस राज्य में प्रजा का अधिक शोषण होने वहां अशांति फैलती है।

राज्ञो हि रक्षाधिकृताः परस्वादयिनः शठाः।

भृत्याः भवन्ति प्रायेण तेभ्योरक्षेदियाः प्रजाः।।

     हिन्दी में भावार्थ-प्रजा के लिये नियुक्त कर्मचारियों में स्वाभाविक रूप से धूर्तता का भाव आ ही जाता है। उनसे निपटने का उपाय राज्य प्रमुख को करना ही चाहिए।
      देश की अर्थव्यवस्था को लेकर अनेक विवाद दिखाई देते हैं।  यहां ढेर सारे कर लगाये जाते हैं।  इतना ही नहीं करों की दरें जिस कथित समाजवादी सिद्धांत के आधार पर तय होती है वह कर चोरी को ही प्रोत्साहित करती है।  इसके साथ ही  कर जमा करने तथा उसका विवरण देते समय करदाता  इस तरह  अनुभव करते हैं जैसे कि उत्पादक नागरिक होना जैसे एक अपराध है।  देश के कमजोर, गरीब तथा अनुत्पादक लोगों की सहायता या कल्याण करने का सरकार को करना चाहिये पर इसका यह आशय कतई नहीं है कि उत्पादक नागरिकों पर बोझ डालकर उन्हें करचोरी के लिये प्रोत्साहित किया जाये।      यह हैरानी की बात है कि कल्याणकारी राज्य के नाम करसिद्धांत अपनाये गये कि गरीब लोगों की भर्लाइै के लिये उत्पादक नागरिकों पर इतना बोझ डाला जाये कि वह अमीर न हों पर इसका परिणाम विपरीत दिखाई दिया जिसके अनुसार  पुराने पूंजीपति जहां अधिक अमीर होते गये वहीं मध्यम और निम्न आय का व्यक्ति आय की दृष्टि से नीचे गिरता गया।  इतना ही नहीं  ऐसे नियम बने जिससे निजी व्यवसाय या लघु उद्यमों की स्थापना कठिन होती गयी।
            हालांकि अब अनेक विद्वान यह अनुभव करते हैं कि राज्य प्रबंध की नीति में बदलाव लाया जाये। इस पर अनेक बहसें होती हैं पर कोई निर्णायक कदम इस तरह उठाया नहीं जाता दिख रहा है जैसी कि अपेक्षा होती है।  हालांकि भविष्य में इसकी तरफ कदम उठायेंगे इसकी संभावना अब बढ़ने लगी है।  एक बात तय है कि कोई भी राज्य तभी श्रेष्ठ माना जाता है जहां प्रजा के अधिकतर वर्ग खुश रहते हैं।

दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 

Saturday, September 6, 2014

विषयों में भाव का त्याग करने से ही सहज योग संभव-पतंजलि योग साहित्य के आधार पर चिंत्तन(vishayon mein bhav ka tyag karne se hee sahaj yog sambhav-A essay though based on patanjali yog scince or vighan)



            हमारा योग दर्शन अत्यंत पुराना है और उसका मूल स्वरूप आत्म नियंत्रण के लिये  आंतरिक क्रियाओं से जुड़ा है। उसमें आसनों साथ व्यायाम जुड़ा नहंी दिखता। हालांकि वर्तमान काल में जब लोगों का जीवन अत्यंधिक श्रमवान नहीं है तब इन व्यायामों की आवश्यकता है और नये योग शिक्षकों नेे इस विषय के  साथ सूर्यनमस्कार, वज्रासन और पद्मासन जैसी प्रभावशील क्रियाओं को जोड़ा है तो अच्छा ही किया है।  चूंकि देह की सक्रियता इन आसनों से दिखती है तो करने और देखने वाले को अच्छी लगती है।  यही कारण है कि प्राचीन योग के साथ नया स्वरूप उसे लोकप्रिय बना रहा है। यह अलग बात है कि लोग बाह्य रूप पर अधिक ध्यान दे रहे हैं पर उसके आंतरिक प्रभाव का ज्ञान उन्हें नहीं है। दरअसल योग का मूल आशय सांसरिक विषयों से परे होकर साधना करने से है। अभ्यास से ऐसी स्थिति हो जाती है कि आदमी संसार के विषयों में कार्यरत दिखता है पर उसमें आसक्ति नहीं रह जाती। यह कर्मयोगी का श्रेष्ठ रूप होता है।
पतंजलि योग साहित्य में कहा गया है कि

-----------------

बाह्याभ्यन्तरविषयाक्षेपी चतुर्थः।

ततः क्षीयते प्रकाशवरणाम्।।

धारणासु च योग्यता मनसः।।

स्वविषयास्प्रयोग चित्तस्वरूपानुकार इवेन्द्रियाणां प्रत्याहारः।

            हिन्दी में भावार्थ-बाहर और भीतर के विषयों के चिन्त्तन का त्याग कर देना अपने आप में चौथा प्राणायाम है। उससे सांसरिक प्रकाश का आवरण क्षीण हो जाता है। ज्ञान की धारणा से मन योग्य हो जाता है। अपने विषयों से रहित हो जाने पर इंद्रियों का चित्त से जो संपर्क होता है वही प्रत्याहार है।
            हमने देखा है कि अनेक लोग प्रचार माध्यमों में योग के बारे में पढ़ और सुनकर समूह बनाकर  साधना करते हैं। इस दौरान वह सांसरिक विषयों पर बातचीत करते हैं।  कहीं पार्क में बैठ गये और हाथ पैर हिलाने लगे।  दावा यह कि योग कर रहे हैं। वैसे प्रातः घर से बाहर निकलना ही अपने आप में एक अच्छी किया है जिसका लाभ अवश्य होता है पर इस दौरान वार्तालाप में अपनी ऊर्जा नष्ट करना ठीक नहीं है। उससे ज्यादा महत्वपूर्ण बात यह कि जिन सांसरिक विषयों से बाद में जुड़ना उनका स्मरण करना प्रातःकाल सैर करने पर मिलने वाले मानसिक लाभ से वंचित करता है।  अनेक लोग समूह में बैठकर हाथ पैर हिलाकर योग कर का दावा अवश्य करें पर उनको यह मालुम नहीं है कि वह स्वयं को ही धोखा दे रहे हैं।
            भारतीय योग संस्थान योग साधना का अभ्यास कराने के लिये निशुल्क शिविर चलाता है। उसके शिविर में योग का जो अभ्यास कराया जाता है पर अभी तक विधियों में अत्यंत श्रेष्ठ है। श्रीमद्भागवत में त्रिस्तरीय आसन की चर्चा होती है। पहले कुश फिर उस पर मृगचर्म और फिर वस्त्र बिछाकर सुख से बैठना ही आसन बताया गया है।  भारतीय योग संस्थान के शिविरों  उसकी जगह प्लस्टिक की चादर, दरी और फिर कपड़े की चादर को आसन बनाकर योगाभ्यास कराया जाता है। इस तरह के अभ्यास से देह, मन और विचारों में शुद्धि आती है।
            इस तरह के अभ्यास के बाद श्रीमद्भागवत गीता के एक दो श्लोक का अध्ययन अवश्य करना चाहिये।  उससे यह बात समझ में आ जायेगी के वास्तव में विषयों का त्यागकर अभ्यास करना ही योग है। अगर आसन तथा प्राणायाम के समय भी विषयों के प्रति आसक्ति बनी रहे तो समझ लेना चाहिये कि हमें अधिक आंतरिक अभ्यास की जरूरत है।


दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 

समस्त ब्लॉग/पत्रिका का संकलन यहाँ पढ़ें-

पाठकों ने सतत अपनी टिप्पणियों में यह बात लिखी है कि आपके अनेक पत्रिका/ब्लॉग हैं, इसलिए आपका नया पाठ ढूँढने में कठिनाई होती है. उनकी परेशानी को दृष्टिगत रखते हुए इस लेखक द्वारा अपने समस्त ब्लॉग/पत्रिकाओं का एक निजी संग्रहक बनाया गया है हिंद केसरी पत्रिका. अत: नियमित पाठक चाहें तो इस ब्लॉग संग्रहक का पता नोट कर लें. यहाँ नए पाठ वाला ब्लॉग सबसे ऊपर दिखाई देगा. इसके अलावा समस्त ब्लॉग/पत्रिका यहाँ एक साथ दिखाई देंगी.
दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका


इस लेखक की लोकप्रिय पत्रिकायें

आप इस ब्लॉग की कापी नहीं कर सकते

Text selection Lock by Hindi Blog Tips

हिंदी मित्र पत्रिका

यह ब्लाग/पत्रिका हिंदी मित्र पत्रिका अनेक ब्लाग का संकलक/संग्रहक है। जिन पाठकों को एक साथ अनेक विषयों पर पढ़ने की इच्छा है, वह यहां क्लिक करें। इसके अलावा जिन मित्रों को अपने ब्लाग यहां दिखाने हैं वह अपने ब्लाग यहां जोड़ सकते हैं। लेखक संपादक दीपक भारतदीप, ग्वालियर

विशिष्ट पत्रिकायें

Blog Archive

stat counter

Labels