Tuesday, September 9, 2008

विदुर नीतिः विद्वानों के प्रति आक्रोश प्रकट नहीं करना चाहिए

1.पांच विषयों की तरफ आकर्षित होने वाली अपनी पांच इंद्रियों को जो वश में नहीं करता तो वह उसकी शत्रु हो जाती हैं और मनुष्य चारों तरफ से संकट में घिर जाता है।
2.गुणों में दोष न देखना, हृदय में सहज भाव, आचरण में पवित्रता, संतोष, मधुर वाणी, आत्म निंयत्रण, सत्य बोलना, तथा विचारों में स्थिरता ये कभी भी मूर्ख और दुरात्मा व्यक्ति में नहीं होते।
3.आत्मज्ञान, खिन्नता का अभाव, सहनशीलता, धर्मपरायणता, अपने वचन का निर्वाह तथा दान करने जैसे गुर्ण अधम पुरुष में नहीं होते।
4. विद्वानों के लिये अभद्र शब्द प्रयोग करते हुए उनकी अज्ञानी लोग निंदा करते हैं। विद्वान लोगों से अभद्र और आक्रोशित व्यवहार करने वाला मनुष्य पाप का भागी होता है और क्षमा करने वाला व्यक्ति पाप से मुक्त हो जाता है।
5.दुष्ट लोगों को त्याग न कर उनके साथ होने पर निरपराध होने पर भी सज्जन को दंड भोगना पड़ता है, जैसे सूखी लकड़ी में मिल जाने पर गीली लकड़ी भी जल जाती है। इसलिये दुष्ट लोगों की संगत कभी नहीं करना चाहिए।

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