Saturday, May 10, 2008

रहीम के दोहे:जो सुलगे वह बुझ गए, जो बुझे वह सुलगे नहीं

जे रहीम विधि बड़ किए, को कहि दूषण काढि
चंद्र दूबरो कूबरो, तऊ नखत तें बाढि
कविवर रहीम कहते हैं कि परमात्मा ने जिन्हें महान बनाया है, उनके दोष कोई नहीं देखता। जैसे चंद्रमा दुर्बल और कुबड़ा होने पर भी आकाश में नक्षत्रों से आगे बढ़ जाता है।

जे सुलगे ते बुझि गए, बुझे ते सुलगे नाहिं
रहिमन दोहे प्रेम के, बुझि बुझि कै सुलगाहिं


कविवर रहीम कहते है कि जो सुलगे वह बुझे जो बुझे वह फिर नहीं सुलगे। रहीम के दोहे बुझ बुझ के सुलगा देते हैं।

वर्र्तमान संदर्भ में व्याख्या-कविवर रहीम कहते हैं कि जो अनेक व्यक्ति यहां महानता को प्राप्त हुए पर वह भी नष्ट हो गये जो तुच्छ थे वह भी अपना प्रभाव दिखाये बिना समाप्त हो गये पर उनके दोह तो प्रज्जवलित अग्नि की तरह हैं जो लोगों में चेतना जाग्रत करते रहते हैं। यहां उन्होंने रचनाकर्म का प्रधानता दी है। सामान्य व्यक्ति अपने परिवार और कुल के लिये अनेक प्रकार की संपत्तियों का संचय यह सोचकर करते हैं कि वह हमारे बाद हमारे नाम को चलायेंगे। जब उनके जीवन का अंत होता है तो फिर उनका कोई नाम लेवा भी नहीं होता। उसी तरह राजा लोग अपने राज्य के विस्तार में यह सोचकर लगे रहते हैं कि उनके बाद प्रजा उनको याद करेगी। उनके स्वर्ग सिधारने के बाद प्रजा भी उनको भुला देती हैं। जो लोग अपने जीवन के अनुभव और अनुभूतियों लोगों को बांटने के लिये शब्दों में सृजन करते हैं वह प्रज्जवलित र्अिग्न के समान सदैव लोगों में चर्चा का विषय बने रहते हैं। कितनी अजीब बात है कि रहीम आज देह के साथ हमारे बीच नहीं है पर उनके दोह रह रहकर लोगों की जुबान पर आते हैं। अंतर्जाल पर अनेक लोग आज उन पर लिखते और पढ़ते है।

इससे संदेश यही मिलता है कि हमें अपने जीवन के सामान्य कर्मों के साथ ऐसा रचनाकर्म भी करना चाहिए जिससे हमारे बाद भी उसका अस्तित्व बना रहे।

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