Saturday, October 16, 2010

श्रीगुरुग्रंथ साहिब से-ईश्वर ही सच्चा मित्र हो सकता है (shri gurugranth sahib-sachcha mitra eeshwar)

नानक मित्राई तिसु सिउ, सभी किछु जिस कै हाथि।
कुमित्रा सेई कांढीअहि, इक व्रिख न चलहि साथि।।
हिन्दी में भावार्थ-
श्रीगुरुवाणी के अनुसार मनुष्य का सच्चा मित्र केवल ईश्वर ही हो सकता है जो बुरे मित्रों और शत्रुओं से बचाने की शक्ति रखता है।
दुस्टा नालि दोस्ती संता वैरु करंनि।
आपि डूबे कुटंब सिउ सगाले कुल डोबंनि।।
हिन्दी में भावार्थ-
दुष्टों से मित्रता करने तथा साधुओं के प्रति बैर रखने वाले स्वयं तो डूबते हैं अपने परिवार का भी सत्यानाश करते हैं।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-दोस्ती, प्यार और वफादारी के उम्मीद में इंसान इधर से उधर भटकता है। फिल्म और साहित्य में सक्रिय रचनाकर इंसान को इंसानों में ऐसी चीजें ढूंढने के लिये प्रेरित करते हैं जो मनुष्य देहधारियों में होना संभव ही नहीं है। हर इंसान पंच तत्वों से बना है और उसके स्वयं के स्वार्थ का कहीं अंत नहीं है। ऐसे विरले ही महामनस्वी होते हैं जो निष्काम भक्ति, योगसाधना, स्वाध्याय अथवा तप से तत्व ज्ञान प्राप्त कर समाज का भला करते हैं। उनके दर्शन करना भी अपने आप में पुण्य का काम है और यह तभी संभव है जब किसी मनुष्य में सत्संग के माध्यम से मन की शांति तथा भक्ति प्राप्त करने का संकल्प हो। ऐसे महात्मा लोग किसी इंसान का भला कर सकते हैं पर वह उससे कोई आशा नहीं करते। न ही ईश्वर के अलावा किसी अन्य को मित्र समझते हैं।
इंसान में ईश्वर ढूंढना एक व्यर्थ का काम है पर ईश्वर के बने इंसानों के प्रति प्रेम और अहिंसा का भाव अवश्य रखना चाहिए जो कि धर्म का ही काम है। अपने से गरीब और बेसहारा को सहारा देना अच्छी बात है। मगर मित्रता और प्रेम के नाम पर किसी से कोई आशा नहीं करना चाहिए। दैहिक प्रेम काम, लोभ तथा कामना से उपजा एक व्यसन है जिसका दुष्प्रभाव होता है। ईश्वर को ही सच्चा प्रेमी और मित्र समझना चाहिए जो कि बुरे और स्वार्थी मित्रों के जाल तथा शत्रुओं की चाल में फंसने से बचाने की बुद्धि प्रदान करता है।
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संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com

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