Saturday, April 21, 2012

मलूकदास का दर्शन-प्रभुता को सब मरे जा रहे हैं (malukdas ke dohe-prabhuta ko sab mare ja rahe hain)

          पंचतत्वों से बनी मनुष्य देह में जितनी बुद्धि और विवेक की शक्ति है उतना ही उसमें अहंकार भरा पड़ा है जिससे प्रेरित हर कोई अपने आपको श्रेष्ठ कहलाना चाहता है। देखा जाये तो अध्यात्म को विषय जहां अकेले में चिंत्तन करने का विषय है तो धार्मिक कर्मकांड भी किसी स्थान विशेष पर करने के लिये होते हैं। अगर कोई व्यक्ति अकेले में करे तो बात समझ में आती है पर देखा यह जाता है कि कुछ श्रेष्ठता के मोह में फंसे कुछ लोग गुरु की पदवी धारण कर सार्वजनिक रूप से यह काम करते हैं। कोई यज्ञ करा रहा है तो कोई प्रवचन का आयोजन कर रहा है। इतना ही नहीं कहीं गरीबों को सामूहिक रूप से खाना खिलाने का पाखंड भी हो्रता है जो कि अधर्म का ही प्रमाण है। कहा जाता है कि अपने दान और धर्म का प्रचार नहीं्र करना चाहिए। इतना ही नहीं दान देते समय आंखें झुका लेना चाहिए ताकि लेने वाले व्यक्ति के मन में हीनता न आये। जबकि सार्वजनिक रूप से धर्म का विषय बनाने वाले इन सब बातों से दूर रहकर आत्मप्रचार में लिप्त दिखते हैं।  
दास मलुक कहते हैं कि 
------------ 
प्रभुता ही को सब मरै, प्रभु को मरै न कोय। 
जो कोई प्रभु को मरै, तो प्रभुता दासी होय।। 
           ‘‘इस संसार में सभी लोग प्रभुता को मरे जा रहे हैं पर प्रभु के लिये किसी के मन में जगह नहीं है। जिस मनुष्य के मन में परमात्मा विराजते हैं प्रभुता उसकी दासी हो जाती है।’’ 
सुमिरन ऐसा कीजिए, दूजा लखै न कोय। 
ओंठ न फरकत देखिये, प्रेम राखिये गोय।। 
‘‘प्रभु के नाम का स्मरण दिखावे के लिये न करें।  इस तरह नाम जपिये कि कोई ओंठ का फड़कना भी न देख सके और हृदय के अंदर प्रभु का प्रकाशदीप जलता रहे।’’ 
           लाउडस्पीकरों के साथ भीड़ में परमात्मा के नाम का जोर जोर से स्मरण करना भी एक तरह का पाखंड है। नाम हमेशा मन में लिया जाना चाहिए। इस तरह कि कोई ओंठों का हिलना भी न देख सके। कहने का अभिप्राय यह है कि अध्यात्म और धर्म नितांत निजी विषय हैं और इनसे दैहिक और मानसिक लाभ तभी मिल सकता है जब हम उसका दिखावा न करें। यहां तक कि अपनी गतिविधि दूसरों को न बतायेे। अगर ऐसा करते हैं तो सारा लाभ अहंकार की धारा में बह जाता है।
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 

समस्त ब्लॉग/पत्रिका का संकलन यहाँ पढ़ें-

पाठकों ने सतत अपनी टिप्पणियों में यह बात लिखी है कि आपके अनेक पत्रिका/ब्लॉग हैं, इसलिए आपका नया पाठ ढूँढने में कठिनाई होती है. उनकी परेशानी को दृष्टिगत रखते हुए इस लेखक द्वारा अपने समस्त ब्लॉग/पत्रिकाओं का एक निजी संग्रहक बनाया गया है हिंद केसरी पत्रिका. अत: नियमित पाठक चाहें तो इस ब्लॉग संग्रहक का पता नोट कर लें. यहाँ नए पाठ वाला ब्लॉग सबसे ऊपर दिखाई देगा. इसके अलावा समस्त ब्लॉग/पत्रिका यहाँ एक साथ दिखाई देंगी.
दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका


इस लेखक की लोकप्रिय पत्रिकायें

आप इस ब्लॉग की कापी नहीं कर सकते

Text selection Lock by Hindi Blog Tips

हिंदी मित्र पत्रिका

यह ब्लाग/पत्रिका हिंदी मित्र पत्रिका अनेक ब्लाग का संकलक/संग्रहक है। जिन पाठकों को एक साथ अनेक विषयों पर पढ़ने की इच्छा है, वह यहां क्लिक करें। इसके अलावा जिन मित्रों को अपने ब्लाग यहां दिखाने हैं वह अपने ब्लाग यहां जोड़ सकते हैं। लेखक संपादक दीपक भारतदीप, ग्वालियर

विशिष्ट पत्रिकायें

Blog Archive

stat counter

Labels