किसी की हमारे घर पर
नज़र लगी है
आओ मुट्ठी भींचे
डर से बचने का
यह भी एक उपाय है।
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वह कौन है
जो हमारा आशियाना हिला रहा है।
सतर्क रहना
अपना चेहरा छिपा रहा
मुखौटे के पीछे
जुबान स्वयं हिला रहा है।
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भलाई का सौदागर
दोपहर में कर रहा
साथ निभाने की बात
रात्रि में करेगा पीठ पर घात
यकीन करो आदर्शवाद में
खंजर की सोच वह मिला रहा है।
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फटेहाल गरीबों के
बने चित्र
यूं ही नहीं महंगे
बिक जाते हैं।
क्योंकि अमीर के घर की
चमकदार दीवारों पर
मजबूती से टिक पाते हैं।
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शहर में सन्नाटा है
हैरानी है
यह अमन किसने बांटा है।
शायद सपनों की राख से
किसी ने
प्यार का पैगाम छांटा है।
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दिल के सुराग
लाश की राख में
ढूंढते हैं।
टूटे सपनों के टुकड़े
बिखरे ख्याल की खाक में
ढूंढते हैं।
जिंदा इंसान से बेरुखी
मुर्दे में वीरगाथा
ढूंढते हैं।
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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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