Saturday, July 17, 2010

संत कबीर वाणी-मनुष्य धन बटोरने के काम से थकता नहीं है (manushya ke dhan ki bhookh)

            प्रकृति में उत्पन्न समस्त जीवों में मनुष्य सबसे अधिक बुद्धिमान माना गया है और विचित्र बात यह है कि जहां अन्य जीव सीमित आवश्यकताओं के कारण अपना जीवन सामान्य रूप से गुजार लेते हैं जबकि मनुष्य असीम लालच और लोभ को अपने मन में स्थान देता है और सदैव संकट बुलाता है। संत कबीर दास जी ने अपने संदेशों में इसी तरफ इंगित किया है।
कबीरा औंधी खोपड़ी, कबहूं धापै नाहिं|
तीन लोक की सम्पदा, कब आवै घर माहिं||
      संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि मनुष्य की खोपड़ी उल्टी होती है क्योंकि वह कभी भी धन प्राप्ति से थकता नहीं है। वह अपना पूरा जीवन इस आशा में नष्ट कर देता है कि तीनों लोकों की संपदा उसके घर कब आयेगी।
     वर्तमान संदर्भ में व्याख्या-इस दुनिया में मनुष्य ही एक ऐसा जीवन जिसके पास बुद्धि में विवेक है इसलिये वह कुछ नया निर्माण कर सकता है। अपनी बुद्धि की वह से ही वह अच्छे और बुरे का निर्णय कर सकता है। सच तो यह कि परमात्मा ने उसे इस संसार पर राज्य करने के लिए ही बुद्धि दी है पर लालच और लोभ के वश में आदमी अपनी बुद्धि गुलाम रख देता है। वह कभी भी धन प्राप्ति के कार्य से थकता नहीं है। अगर हजार रुपये होता है तो दस हजार, दस हजार से लाख और लाख से दस लाख की चाहत करते हुए उसकी लालच का क्रम बढ़ जाता है। कई बार तो ऐसे लोग भी देखने में आ जाते है जिनके पेट में दर्द अपने खाने से नहीं दूसरे को खाते देखने से उठ खड़ा होता है।
अनेक धनी लोग जिनको चिकित्सकों ने मधुमेह की वजह से खाने पर नियंत्रण रखने को कहा होता है वह गरीबों को खाता देख दुःखी होकर कहते भी हैंदेखो गरीब होकर खा कैसे रहा है। इतना ही नहीं कई जगह ऐसे अमीर हैं पर निर्धन लोगों की झग्गियों को उजाड़ कर वहां अपने महल खड़े करना चाहते हैं। आदमी एक तरह से विकास का गुलाम बन गया है। भक्ति भाव से पर आदमी बस माया के चक्कर लगाता है और वह परे होती चली जाती है। सौ रुपया पाया तो हजार का मोह आया, हजार से दस हजार, दस हजार से लाख और लाख से दस लाख के बढ़ते क्रम में आदमी चलता जाता है और कहता जाता है कि अभी मेरे पास कुछ नहीं है दूसरे के पास अधिक है। मतलब वह माया की सीढियां चढ़ता जाता है और वह दूर होती जाती है। इस तरह आदमी अपना पूरा जीवन नष्ट कर देता है।
   आजकल तो जिसे देखो उस पर विकास का भूत चढ़ा हुआ है। कहते हैं कि इस देश में शिक्षा की कमी है पर जिन्होने शिक्षा प्राप्त की है तो इसका मतलब यह कदापि नहीं है कि उन्होंने ज्ञान भी प्राप्त कर लिया है। इसलिये शिक्षित आदमी तो और भी माया के चक्कर में पड़ जाता है और उसे तो बस विकास की पड़ी होती है पर उसका स्वरूप उसे भी पता नहीं होता। लोगों ने केवल भौतिक उपलब्धियों को ही सबकुछ मान लिया है और अध्यात्म से दूर हो गये हैं उसी का परिणाम है कि सामाजिक वैमनस्य तथा मानसिक तनाव बढ़ रहा है। अत: जितना हो सके उतना ही अपनी पर नियंत्रण रख्नना चाहिये।
--------------------संकलक, लेखक एवं संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://deepkraj.blogspot.com

-------------------------
यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘शब्दलेख सारथी’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द लेख पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का चिंतन

समस्त ब्लॉग/पत्रिका का संकलन यहाँ पढ़ें-

पाठकों ने सतत अपनी टिप्पणियों में यह बात लिखी है कि आपके अनेक पत्रिका/ब्लॉग हैं, इसलिए आपका नया पाठ ढूँढने में कठिनाई होती है. उनकी परेशानी को दृष्टिगत रखते हुए इस लेखक द्वारा अपने समस्त ब्लॉग/पत्रिकाओं का एक निजी संग्रहक बनाया गया है हिंद केसरी पत्रिका. अत: नियमित पाठक चाहें तो इस ब्लॉग संग्रहक का पता नोट कर लें. यहाँ नए पाठ वाला ब्लॉग सबसे ऊपर दिखाई देगा. इसके अलावा समस्त ब्लॉग/पत्रिका यहाँ एक साथ दिखाई देंगी.
दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका


इस लेखक की लोकप्रिय पत्रिकायें

आप इस ब्लॉग की कापी नहीं कर सकते

Text selection Lock by Hindi Blog Tips

हिंदी मित्र पत्रिका

यह ब्लाग/पत्रिका हिंदी मित्र पत्रिका अनेक ब्लाग का संकलक/संग्रहक है। जिन पाठकों को एक साथ अनेक विषयों पर पढ़ने की इच्छा है, वह यहां क्लिक करें। इसके अलावा जिन मित्रों को अपने ब्लाग यहां दिखाने हैं वह अपने ब्लाग यहां जोड़ सकते हैं। लेखक संपादक दीपक भारतदीप, ग्वालियर

विशिष्ट पत्रिकायें

Blog Archive

stat counter

Labels