अन्यथा वेदपाण्डित्यं शास्त्रमाचारमन्यथा।
अन्यथा कुवचः शान्तं लोकाः क्लिश्यन्ति चान्यथा।।
हिन्दी में भावार्थ-वेदों के तत्वज्ञान, शास्त्रों के विधान तथा उत्तम पुरुषों के चरित्र को मिथ्या कहने वाले लोग लोक परलोक दोनों में कष्ट उठाते हैं।
अन्यथा कुवचः शान्तं लोकाः क्लिश्यन्ति चान्यथा।।
हिन्दी में भावार्थ-वेदों के तत्वज्ञान, शास्त्रों के विधान तथा उत्तम पुरुषों के चरित्र को मिथ्या कहने वाले लोग लोक परलोक दोनों में कष्ट उठाते हैं।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-देश में घोटालों, भ्रष्टाचार तथा अपराधों की बाढ़ आयी हुई है। टीवी चैनल देखने तथा अखबार पढ़ने से तो यही लगता है कि देश में नरक बन गया है। हैरानी की बात है कि अनेक विद्वान तथा समाज सेवक भ्रष्टाचार के विरुद्ध अभियान छेड़े हुए हैं पर परिणाम शून्य दिखाई दे रहा है। इसका कारण यह है कि भारतीय अध्यात्म का वही लोग मज़ाक उड़ा रहे हैं जो आधुनिक शिक्षा से शिक्षित हैं और उनके पास ही समाज और राज्य संचालन का दायित्व भी है। वह अपने प्रति शिष्टाचार का भाव की अभिव्यक्ति के रूप में प्रस्तुत उपहारों का भ्रष्टाचार की परिधि में ही नहीं मानते।
कहीं राम पर तो कहीं कृष्ण के चरित्र पर आक्षेप होते हैं। वेदों का मज़ाक उड़ाया जाता है तो रामायण में भी अप्रमाणिक उत्तर रामायण के हिस्से लेकर समाज पर आक्षेप किये जाते हैं। पूरा भारतीय विद्वान जगत विचारधाराओं में बंटा हुआ है पर अपने ही अध्यात्म ज्ञान से अनभिज्ञ है। भारतीय अध्यात्म का मज़ाक उड़ाने वाले तो अज्ञानी है पर उनका प्रतिकार करने वाले भी तत्व ज्ञान नहीं जानते इसलिये बहस में कमजोर पड़ जाते हैं। यही कारण है कि कुछ अल्पज्ञानी गाहे बगाहे भारतीय अध्यात्म का मज़ाक उड़ाते हैं।
हालांकि हमारे देश में धर्म के प्रति जनमानस में गहरा लगाव है पर उनके कुछ कर्मकांड अंधविश्वास की परिधि में आते हैं, पर इसी आधार पर पूरे अध्यात्म दर्शन का मखौल उड़ाना भी कम अज्ञान का प्रमाण नहीं है। मनुस्मृति को लेकर अनेक लोग बवाल करते हैं पर वह कौन हैं? क्या उन्होंने राजकीय भ्रष्टाचार पर कभी मनु संदेशों का अध्ययन किया गया है। भ्रष्टाचारियों पर दंड के विधान का मनुस्मृति समर्थन करता है पर कभी उस पर नज़र नहीं डाली गयी। कहा जाता है कि मनुस्मृति में महिलाओं और निम्न जातियों के लिये अपमान जनक संदेश है
जबकि सच तो यह है कि मनु ने यह कहा है कि जिन घरों में महिलाओं का सम्मान नहीं होता उनका जल्दी विनाश हो जाता है। योग्यता के अनुसार सभी को सम्मान देने की बात भी उसमें कही गयी है। हम अगर आज के कथित आधुनिक समाज को देखें तो क्या पश्चिमी राह पर भी चलकर क्या औरतों और निम्न जातियों का सम्मान करने लायक बन पाया?
भ्रष्टाचार में डूबे लोग और उनकी अभिव्यक्ति को शाब्दिक रूप देने वाले लिपिक कभी भी भारतीय अध्यात्म का रहस्य नहीं समझ पाये। जिनका रोम रोम भ्र्रष्टाचार और अहंकार से भरा है वही भारतीय अध्यात्म पर प्रतिकूल टिप्पणियां करते हैं। वह नहीं जानते कि समय के अनुसार बदलने की प्रेरणा केवल भारतीय अध्यात्म दर्शन में ही मिलता है।
----------
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द लेख पत्रिका
2.शब्दलेख सारथि
3.दीपक भारतदीप का चिंतन