Thursday, July 24, 2008

संत कबीर वाणीःकर्तापन का अहंकार राम की भक्ति में बाधक

पद गावै मन हरषि के, साखी कहै अनंद
राम नाम नहिं जानिया, गल में परिगा फंद

संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि ऐसे कई लोग हैं जो प्रसन्न होकर भजन गाते है और साखी कहते हैं पर वह राम का नाम और उसका महत्व नहीं समझते। अतः उनके गले में मृत्यु का फंदा पड़ा रहता है।
राम नाम जाना नहीं, जपा न अजपा जाप
स्वामिपना माथे पड़ा ,कोइ पुरबले पाप

संत शिरोमणि कबीरदास जी कि मनुष्य ने राम का नाम जाना नहीं और कभी जपा तो कभी नहीं जपा। मन में अहंकार है और अपने स्वामी होने के अनुभव से मनुष्य पाप करता हुआ फिर उसके परिणाम स्वरूप दुःख भोगता है।

वर्तमान संदर्भ में व्याख्या- भगवान राम के चरित्र और जीवन पर व्याख्या करने वाले अनेक कथित संत और साधु हैं जो भक्तों को सुनाते हैं पर यह उनका व्यवसाय है। अनेक लोग भगवान राम के भजन गाते हैं। उनके वीडियो और आडियो कैसिट जारी होते हैं पर यह कोई उनके भक्ति का प्रमाण नहीं है। इस तरह कथायें सुना और भजन गाकर व्यवसायिक संत और गायक अपनी छबि एक भक्त के रूप में समाज में बना लेते हैं पर यह लोगों का भ्रम हैं। राम के चरित्र पर अनेक लोग अपने हिसाब से व्याख्यायें करते हैं पर वह भगवान श्रीराम के नाम का महत्व नहीं जानते। भगवान राम तो अपने भक्तों के हृदय में बसते हैं पर उनका नाम लेकर जो व्यापार करते हैं वह तो अपने अहंकार में होते हैं। दिखाने को कभी कभार वह भी भगवान का नाम लेते हैं पर वह उनके व्यवसाय का हिस्सा होता है। राम के नाम हृदय में धारण करने के बाद आदमी उसका दिखावा नहीं करता और वह इस संसार के दुःख से मुक्त हो जाता है। केवल जुबान लेने पर उसे हृदय में न धारण करने वाले तो हमेशा विपत्ति में पड़े रहते हैं क्योंकि उन्हें अपने कर्तापन का अहंकार होता है।
संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप

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