Saturday, August 8, 2009

श्री गुरु ग्रंथ साहिब-नाचने कूदने से भक्ति नहीं होती (shri guru granth sahib)

नचिअै टपिअै भगति न होइ।
सब्दि मरै भगति पाए जन सोइ।।
हिंदी में भावार्थ-
श्री गुरु ग्रंथ साहिब वाणी के अनुसार नाचने और कूदने से भक्ति नहीं होती। गुरु के शब्द अनुसार ही चलने वाला व्यक्ति ही भक्ति को प्राप्त होता है।
मूत पलीती कपड़ु होइ। दे साबुण लइअै उहु धोइ।।
भरीअै मति पापा के संगि। उहु धोपैं नावे कै रंगि।।
हिंदी में भावार्थ-
मल मूत्र से मलिन वस्त्र साबुन से साफ हो जाते हैं पर जो मन में विकारों की गंदगी है उन्हें तो ईश्वर का नाम स्मरण कर ही धोया जा सकता है।
वर्तमान संदर्भ में व्याख्या-भक्ति का भाव किसी को दिखाना संभव नहीं है। जब हम सभी को दिखाने के लिये नाचते कूदते हुए भगवान का नाम लेते हैं तो इसका आशय यह है कि हमारे हृदय में भगवान नहीं बल्कि वह लोग स्थित हैं जिनको हम प्रभावित करने का प्रयास करते हैं। नाम जुबान पर भगवान का होता है पर हृदय में यह भाव होता है कि लोग हमें भक्त समझकर सम्मान दें। इस तरह का ढोंग या पाखंड करने वाले कहीं भी देखे जा सकते हैं। अनेक धार्मिक कार्यक्रमों में संत गीत गाते हैं और उनके भक्त जोर जोर से गाते हुए नाच कर ऐसा दिखाते हैं गोया कि वह भक्ति में लीन हों। यह एक तरह से दिखावा है।

सच तो यह है कि जब आदमी भक्ति के चरम पर होता है उस समय उसका अपने अंगों पर से नियंत्रण समाप्त हो जाता है और वह कहीं मूर्तिमान होकर बैठा रहता है। उसके हाथ कहीं फैले रहते हैं तो सिर कहीं लटका होता है। वैसे भी भक्ति एकांत में की जाने वाली साधना है। भीड़ में तो केवल दिखावा ही हो सकता है।

तन और उस पर पहने जाने वाले कपड़े तो साबुन से साफ हो जाते हैं पर मन के मैले कुचले विचारों का ध्यान, योग साधना तथा हृदय से भगवान का नाम स्मरण किये बिना शुद्ध होना संभव नहीं है। कुछ लोग कहते हैं कि हम तो अपना कर्म ही धर्म समझते हैं पर अपनी आजीविका के लिये कर्म तो सभी जीव करते हैं। मनुष्य यौनि में ही यह सौभाग्य प्राप्त होता है कि हम भगवान का नाम स्मरण कर सकें। इसलिये यह जरूरी है कि हम अपने मन की शांति के लिये नित्य कुछ समय प्राणायम और भक्ति के लिये निकालें।
..................................
यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘शब्दलेख सारथी’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द लेख पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप

समस्त ब्लॉग/पत्रिका का संकलन यहाँ पढ़ें-

पाठकों ने सतत अपनी टिप्पणियों में यह बात लिखी है कि आपके अनेक पत्रिका/ब्लॉग हैं, इसलिए आपका नया पाठ ढूँढने में कठिनाई होती है. उनकी परेशानी को दृष्टिगत रखते हुए इस लेखक द्वारा अपने समस्त ब्लॉग/पत्रिकाओं का एक निजी संग्रहक बनाया गया है हिंद केसरी पत्रिका. अत: नियमित पाठक चाहें तो इस ब्लॉग संग्रहक का पता नोट कर लें. यहाँ नए पाठ वाला ब्लॉग सबसे ऊपर दिखाई देगा. इसके अलावा समस्त ब्लॉग/पत्रिका यहाँ एक साथ दिखाई देंगी.
दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका


इस लेखक की लोकप्रिय पत्रिकायें

आप इस ब्लॉग की कापी नहीं कर सकते

Text selection Lock by Hindi Blog Tips

हिंदी मित्र पत्रिका

यह ब्लाग/पत्रिका हिंदी मित्र पत्रिका अनेक ब्लाग का संकलक/संग्रहक है। जिन पाठकों को एक साथ अनेक विषयों पर पढ़ने की इच्छा है, वह यहां क्लिक करें। इसके अलावा जिन मित्रों को अपने ब्लाग यहां दिखाने हैं वह अपने ब्लाग यहां जोड़ सकते हैं। लेखक संपादक दीपक भारतदीप, ग्वालियर

विशिष्ट पत्रिकायें

Blog Archive

stat counter

Labels