Sunday, October 16, 2011

ऋग्वेद से संदेश-ज्ञानी लोग मन प्रसन्न रखने वाले ही काम करते हैं (rigved se sandesh-gyani log man ko prasanna rakhne vale kam karte hain)

             सामान्य मनुष्य अनेक बार परिवार, मित्र तथा समाज के दबाव में अनेक बार ऐसे कार्य करते हैं जिससे उनका स्वयं का मन उद्विग्न हो उठता है। इसके विपरीत ज्ञानी हमेशा ही अपने मन को प्रसन्न करने वाले ही कर्म करते हैं। यह बात हम धार्मिक कर्मकांडों अवसर पर देख सकते हैं जब परिवार, समाज तथा मित्रों के दबाव में आदमी उनका निर्वाह करता है यह जानते हुए भी यह ढकोसला है। खासतौर से विवाह, गमी तथा अन्य कार्यक्रमों के समय दिखावे के लिये ऐसे अनेक कर्मकांड रचे गये हैं जिनको केवल दिखावे के लिये ही धर्म का प्रतीक माना जाता है। हमारे अनेक महान विद्वानों ने धार्मिक कर्मकांडों तथा अध्यात्मिक ज्ञान के अंतर को स्पष्ट किया है। यह अलग बात है कि समाज में उनका नाम को सम्मान दिया जाता है पर उनके संदेश कोई नहीं मानता। यही कारण है कि जब किसी के घर में शादी या गमी का अवसर आता है तो वह अपना सुख दुःख भूलकर केवल अपनी जिम्मेदारी निभाने का तनाव झेलता है। उसके मन में यही ख्याल आता है कि ‘अगर मैंने यह नहीं किया तो लोग क्या कहेंगे’।
ऋग्वेद में कहा गया है कि
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श्रिय मनांसि देवासो अक्रन्
‘‘ज्ञानी निज अपने हृदय को प्रसन्न करने वाले कर्म करते हैं।’’
सुवीर्यस्य पतयः स्याम।
‘‘हम उत्तम बल के स्वामी बनें।’’
अगर मनुष्य चाहे तो स्वयं को योगसाधना तथा अध्यात्मिक ग्रंथों के अध्ययन से मानसिक रूप से दृढ़ होने के साथ ही दैहिक रूप से बलवान भी बना सकता है। हमारे हिन्दू धर्म की पहचान उसके कर्मकांडों से नहीं वरन् उसमें वर्णित तत्वज्ञान से है जिसका लोह आज पूरा विश्व मानता है। अगर हम अपने अंदर कर्मकांडों के निर्वहन का तनाव पालेंगे तो कभी शक्तिशाली नहीं बन सकते। जहां धर्म से कुछ पाने का मोह है वहां सिवाय तनाव के कुछ नहीं आता। मन में धर्म के प्रति त्याग का भाव हो तो स्वतः मन स्फूर्त हो जाता है। इस त्याग को भाव को तभी समझा जा सकता है जब हम परोपकार, ज्ञान संग्रह तथा हृदय से भगवान की भक्ति करेंगे।
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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