Sunday, January 20, 2008

रहीम के दोहे:अक्षर हैं कम पर अर्थ है गहरा

दीरघ दोहा अरथ के, आखर थोरे आहिं
ज्यों रहीम नट कुंडली, सिमिट कूदि चढिं

कविवर रहीम कहते हैं की जैसे खेल दिखाते हुए नत कूद-कूदकर अपने आपको सावधानी से संभालता हुआ शीघ्रता से ऊपर की नोंक पर कूद-कूदकर अपने आपको सावधानी से संभालता हुआ शीघ्रता से ऊपर बांस की नोंक पर कुंडली मारकर चढ़ जाता है, उसी प्रकार रहीम के दोहों में शब्द तो कम हैं परन्तु अर्थ बहुत गहरा है.

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