एक वर्ष पूर्व की रचभावनाओं के सौदागर अनेक स्वांग रचकर आम मनुष्य का हृदय विभिन्न रसों में बहलाकर अपनी हित साधते हैं क्योंकि वह जानते हैं मनुष्य का मन बुद्धु है। मनुष्य का मन अगर बुद्धू न होता तो भावनाओं के खिलाड़ी फिल्म, क्रिकेट, साहित्य, चित्रकारी तथा नाटक के खेलों में रस भरकर कमाई नहीं कर पाते। मनुष्य का मन जहां बुद्धू हो जाता है वहीं से भावनाओं के व्यापारियों का ऐसा खेल प्रारंभ होता है जिसे सामान्य भाषा में मनोरंजन कहा जाता है।
मनुस्मृति न पढ़ना है मत पढ़ो। कार्ल मार्क्स की पूंजी किताब व लेनिन के भाषण पढ़कर कौन तीर मार लिये? मनुस्मृति पढ़ने से फिर भी धर्म व अधर्म की पहचान हो जाती है जबकि विदेशी विचार तो केवल स्वर्ग का मार्ग दिखाते हैं। कार्लमार्क्स के शिष्य शायद मनुस्मृति का विरोध इसलिये करते हैं क्योंकि अज्ञान फैलाकर स्वयं नायक बनना है। मनुस्मृति के विरोधी अंधेरे में प्रकाश के लिये राज्य की तरफ ताकते हैं जबकि मनुस्मृति स्वयं दिया जलाने की प्रेरणा देती हैं।
मनुस्मृति में कहा गया है कि
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संतुष्टोभार्वथा भर्त्ता भत्री भायी तथैव च।
यस्मिनैव कुले नित्यं कल्याणं तत्र वैधुवम्।।
हिन्दी में भावार्थ-जिस परिवार में पति पत्नी एक दूसरे से प्रसन्न रहते हैं वह सदैव प्रसन्न तथा सुखी रहता है।
मनुस्मृति के विरोधी तो यह मानते हैं कि सभी पुरुष तो परमात्मा से हमेशा प्रसन्न रहने का वरदान लेकर पैदा हुए हैं जबकि महिलायें कष्ट पाने के लिये शापित हैं। जबकि सच यह है कि हमारा अध्यात्मिक दर्शन मानता है कि स्त्री पुरुष अगर दोनों ही प्रसन्न रहेंगे तभी परिवार व समाज में शांति से रह सकता है।